

Copyright © 2025 rights reserved by Inkquest Media
अन्य समाचार

72nd edition of 'Show Must Go On' from the pen of senior journalist Dr. Shirish Chandra Mishra - Will the ministers change?
भाजपा की विष्णुदेव सरकार के 13 दिसम्बर को दो साल पूरे होने जा रहे हैं। सरकार ने राज्य स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में रजत जयन्ती महोत्सव का आयोजन किया। एक ही माह में प्रधानमंत्री के दो दौरे हुए जिसमें प्रधानमंत्री ने दो रातें भी छत्तीसगढ़ में गुजारी। अभी विधानसभा चुनाव को तीन साल बाकी हैं फिर भी पीएम के लगातार दौरों से राज्य के महत्व को समझा जा सकता है। अब समय आ गया है जब राज्य सरकार अपने कार्यों का मूल्यांकन करेगी। साथ ही मंत्रिमंडल के सदस्यों के रिपोर्ट कार्ड के आधार यह तय होगा कि कौन-कौन मंत्री अगले तीन सालों तक कैबिनेट में रहेंगे। किसको बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा। कुछ मंत्रियों के कार्यकलापों पर राज्य संगठन के अलावा राष्ट्रीय संगठन की भी नजर है। केन्द्रीय संगठन करीब आधा दर्जन मंत्रियों के कामकाज से नाखुश बताया जाता है। कई मंत्रियों, उनके स्टॉफ और परिजनों के कारण सरकार को कई बार असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में नये साल में मंत्रिमंडल के आधे चेहरे बदल जायें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
ये बंदा जाने कौन था जिसे एयरपोर्ट पर लगी फोर्स ने समझा कि यह देश के गृह राज्यमंत्री बी.संजय है। सुरक्षा में लगी फोर्स उसे एस्कॉट करके एयरपोर्ट से बाहर तक ले आयी। बाहर खड़े मीडियाकर्मियों को लगा कि यही गृह राज्यमंत्री हैं तो सबने माइक लगा दिए। पत्रकारों ने सवाल दाग दिए और पूछा कि क्या आप पहले भी रायपुर आए हैं तो वो बोले कि हां पहले भी आया हूं। चूंकि नवा रायपुर में डीजी कॉन्फ्रेन्स होने वाली थी तो मीडिया का अगला सवाल था कि मीटिंग कैसी होगी तो वे बोले कि यस इट इज गुड। कुछ लोगों ने उन्हें फूलमाला भी पहना दी। वो तो खैर थी कि उसे रिसीव करने वालों ने गृह राज्यमंत्री के लिए खड़ी टाटा सफारी में सवार होने के पहले ही अपने साथ ले लिया। तब वहां मौजूद मीडिया और सुरक्षा कर्मियों को समझ में आया कि कुछ गड़बड़ है तो सभी नदारत हो गए। वैसे जिन्हें गृह राज्यमंत्री बी.संजय समझा जा रहा था वो आध्यात्मिक गुरु ..महात्रया... थे।
भाजपा में इन दिनों शादियों का मौसम चल रहा है। मुख्यमंत्री तक को एक ही दिन में प्रदेश के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग नेताओं के परिवारों की शादियों में शामिल होना पड़ रहा है। हर नेता और कार्यकर्ता की चाहत होती है कि उसके परिवार के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शामिल हों। सीएम साय ने सभी को खुश कर दिया। रायपुर- भाटापारा से लेकर बिलासपुर ,दुर्ग और कोरबा तक दनादन शादी समारोहों में शामिल हुए। कहीं पार्टी संगठन के किसी मोर्चे के पदाधिकारी ,कहीं मंत्री ,कहीं पूर्व विधायक ,कहीं प्राधिकरण के अध्यक्ष औऱ कहीं सांसद के परिवार में शादी थी। आम तौर पर जब पार्टी सत्ता में होती है तो सत्ताधारी दल से जुड़े नेता ऐसे समारोहों में पुलिस-प्रशासन का भरपूर उपयोग करते हैं। लेकिन एक नेता जी ने तो हदें पार कर दीं। अपने क्षेत्र के लोगों को विवाह-समारोह स्थल तक लाने के लिए निजी स्कूलों की बसों का कथित अधिग्रहण कर लिया। फिर इन्हीं बसों में गांव-गांव से लोगों को भरकर समारोह स्थल तक पहुंचाया और वापस घर छोड़ा गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में दो रात रुके। डीजी कॉन्फेन्स में शामिल होने आए पीएम ने घंटों लगातार मीटिंग्स भी की। पीएम के रुकने के लिए नवा रायपुर में विधानसभा अध्यक्ष के लिए बने बंगले एम-1 को आरक्षित किया गया था। बताया जाता है कि पीएम से मिलने के लिए मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष सहित मंत्रियों और संगठन के प्रमुख लोगों ने अपनी अर्जी लगायी थी। इसके लिए बकायदा मंत्रियों ने अपने परिवारों को रायपुर में बुला लिया था। सबके परिवार स्टैण्ड बाय मोड पर थे। लेकिन मौका सिर्फ मुख्यमंत्री औऱ विधानसभा अध्यक्ष को ही मिला। जहां सीएम साय औऱ डॉ रमन सिंह ने अपने पूरे परिवार के साथ मुलाकात की । सौजन्य मुलाकात में प्रधानमंत्री ने दोनों परिवारों के साथ क्वॉलिटी टाइम स्पेण्ड किया। राज्योत्सव के मौके पर आए प्रधानमंत्री ने विधानसभा अध्यक्ष की धर्मपत्नी श्रीमती वीणा सिंह से कहा था कि जब अगली बार आयेंगें तो आपसे मिलकर चर्चा करेंगें। पीएम ने जो वादा किया था उसे निभाया भी।
प्रधानमंत्री के रायपुर पहुंचने के एक दिन पहले केन्द्रीय गृह मंत्री रायपुर पहुंच चुके थे। डीजी कॉन्फ्रेन्स के एक दिन पहले देर शाम प्रधानमंत्री पहुंचे। प्रधानमंत्री के एम-1 में पहुंचने के बाद पुलिस-प्रशासन ने राहत की सांस ली। व्यवस्था सम्हाल रहे बड़े अधिकारियों को लगा कि अब दोनों नेता अपने-अपने आवासों में आराम करेंगें। लेकिन पीएम के पहुंचने के कुछ समय बाद अमित शाह ने जब एम-1 की ओर रुख किया तो सुरक्षा व्यवस्था सम्हाल रहे अधिकारी हरकत में आये। गृहमंत्री ने प्रधानमंत्री के साथ करीब 3 घंटे की लम्बी मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच इतनी लम्बी मीटिंग के मायने निकाले जा रहे हैं। निश्चित रुप से दोनों के बीच डीजी कॉन्फ्रेन्स तो मुद्दा थी ही लेकिन जब दोनों नेता साथ बैठे थे तो नक्सलवाद को लेकर भी चर्चा हुई होगी। साथ ही राज्य सरकार के कामकाज पर भी विचार-मंथन हुआ होगा।
कौन सांसद है वो जिसे तोमर बंधुओं ने 5 करोड़ रुपये की रकम दी थी। तोमर बंधु जो कुछ माह पहले तक राजधानी रायपुर में सूदखोरी और आतंक के पर्याय बने हुए थे। खुद को एक जाति संगठन और हिन्दुत्व के झंडाबदार के रुप में पेश कर गुंडागर्दी, वसूली और सूदखोरी जैसे कामों को अंजाम दे रहे थे। यहां तक कि एक शंकराचार्य को भी अपने भाठागांव स्थित निवास में ठहरा चुके थे। एक्सटोर्शन की कमाई के सहारे राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले दोनों तोमर भाईयों का कई मंत्रियों के घर आना-जाना भी था। जहां इन दोनों खासकर बड़े भाई वीरेन्द्र उर्फ रूबी तोमर का कई मंत्रियों ने अपने आवास पर शाल आदि ओढ़ाकर सम्मान भी किया था। पुलिस भी इन पर हाथ डालने से बचती थी। कई थानों में मुकदमे दर्ज होने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही थी। अन्तत: पुलिस ने इनके आतंक का अंत किया। सड़क पर जुलूस निकाला । इनके समर्थन में एक कथित सेना के लंबरदार ने एसपी के घर में घुसने की धमकी दी थी। जिसकी रायपुर पुलिस ने थाने में पगड़ी उतारवाकर पानी उतार दिया । अब तोमर ने नया शिकूफा छोड़ा है कि उसने एक सांसद को पांच करोड़ रुपये की रकम दी है। यदि इस बात में सच्चाई है तो पुलिस को पता लगाना चाहिए कि वो सांसद कौन है । ऐसे जनप्रतिनिधि के खिलाफ ऐसे गुंडातत्वों को संरक्षण देने का मामला भी दर्ज होना चाहिए।
महादेव बेटिंग एप सहित कई ज्वलंत मुद्दों को लेकर कांग्रेस की सरकार को जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। लेकिन बेटिंग एप के नाम पर नपे नेताओं और अधिकारियों से बाकी लोगों ने सबक नहीं लिया। भाजपा सरकार बदलने के बाद एक विधायक पर आरोप लगा था कि अब वो बेटिंग एप के पैनल ऑपरेटर्स को संरक्षण दे रहे हैं। लेकिन अब कहानी में ट्विस्ट है। अब एक जिला पंचायत अध्यक्ष के परिवार पर बेटिंग एप के पैनल ऑपरेटर्स को संरक्षण देने का आरोप लग रहा है। जिस जिला पंचायत अध्यक्ष के परिवार के सदस्य पर ये आरोप लग रहा है। उस अध्यक्ष को भारी सिक्योरिटी मिली हुई है। उनके साथ पूरे समय तीन-तीन पुलिस के गनमैन रहते हैं। लोगों के बीच यह चर्चा का विषय है कि जिला पंचायत अध्यक्ष में ऐसा क्या खास है कि उन्हें इतनी सिक्योरिटी दी गयी है। जिला पंचायत अध्यक्ष पर किसी बड़े नेता का वरदहस्त बताया जाता है। उधर एक औऱ बेटिंग एप को लेकर ठंड में कंपकंपा रही दिल्ली का राजनीतिक तापमान गर्म होने लगा है।
रजिस्ट्री के रेट्स में अचानक से वृद्धि होने के बाद सरकार को दो-दो फ्रंट पर जूझना पड़ रहा है। एक ओर कांग्रेस और बिल्डर्स ने मोर्चा खोला हुआ है तो दूसरी ओर पार्टी के ही सांसद ने वृद्धि दर को अव्यवहारिक औऱ जनविरोधी बताते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। जगह-जगह विरोध औऱ असंतोष की खबरें आ रही हैं। भाजपा के एक पूर्व मंत्री और विधायक प्रदेशभर में गाइडलाइन्स की कहां -कितनी वृद्धि हुई है उसका सर्वे करवा रहे हैं। ताकि पार्टी फोरम में और सरकार के सामने बात रखी जा सके। हाल ही हुई कैबिनेट मीटिंग में रजिस्ट्री के मुद्दे पर मंत्रिमंडल के सदस्यों को विस्तार से समझाने की जिम्मेदारी विभागीय मंत्री को दी गयी है। हालांकि ये वृद्धि लम्बे अरसे के बाद हुई है औऱ वृद्धि के सम्बन्ध में मंत्री जी की बात तर्कसंगत हो सकती है। लेकिन कहीं-कहीं भारी विरोधाभास की भी बातें सामने आ रही हैं जो वृद्धि की नयी दरों पर सवालिया निशान खड़े कर रही हैं। बताया जाता है कि कहीं-कहीं वास्तविक मूल्य से ज्यादा गाइड लाइन्स रेट हो गए हैं जबकि उन्हीं इलाकों की सड़क के दूसरे ओर की जमीन के वास्तविक मूल्य से चार गुना कम रजिस्ट्री रेट्स हैं। कहीं-कहीं कुछ जमीन के दलालों को मालूम था कि किस इलाके में बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए अधिग्रहण होना है ऐसे में इन लोगों ने उन क्षेत्रों में जमीन खरीद ली थी। उन्हें मुआवजे में करोड़ों का मुनाफा होने की संभावना जतायी जा रही है। अब देखने वाली बात होगी कि सरकार इस मुद्दे पर क्या स्टैण्ड लेती है। जिस तरह से सरकार ने बिजली की दरों में वृद्धि के मुद्दे का समाधान निकाला है शायद ऐसा ही कुछ समाधान रजिस्ट्री की गाइड लाइन्स को लेकर भी निकल सकता है।
छत्तीसगढ़ का नया और स्थायी विधानसभा बनकर तैयार है। प्रधानमंत्री उद्घाटन कर चुके हैं। अब बारी है विधानसभा के शीतकालीन सत्र की। नवा रायपुर के नये विधानसभा भवन की नयी रौनक के साथ बैठकों में नये मुद्दे उठेंगें। बिजली की दरों में वृद्धि फिर सरकार की रियायत, जमीनों की रजिस्ट्री दरों, धान खरीदी के अलावा नक्सलवाद के खात्मे की डैडलाइन के बीच जवानों पर शहादत पर सदन गर्म रहेगा। बिजली की दर और जमीन की रजिस्ट्री की दरों पर सदन में जोरदार बहस होने की बातें सामने आ रही हैं। नक्सलवाद के मोर्चे पर सरकार को मिल रही लगातार सफलताओं के बीच पिछले छह माह में जवानों औऱ पुलिस अधिकारियों की शहादत के मुद्दे विपक्ष सरकार को घेरने का प्रयास करेगा। केन्द्र के कुछ मुद्दे जैसे एसआईआर औऱ इंडिगों की सेवाओं में व्यवधान भी विपक्ष को अतिरिक्त फ्यूल देने का काम करेंगें।
नवा रायपुर के अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में खेले गए वनडे मैच को लेकर राजधानी से लेकर पूरे प्रदेश में कहीं खुशी और कहीं गम जैसा माहौल था। चर्चा का मुद्दा स्टेडियम की लीज दरों के साथ संगठन विशेष के एकाधिकार से टिकटों को ब्लैक में बेचने तक था। कई बड़े औऱ प्रभावशाली लोगों को भी ब्लैक में टिकट खरीदने मजबूर होना पड़ा। भाजपा की पिछली सरकार के कार्यकाल में भी क्रिकेट मैच और केबीसी के कारण सरकार की खासी फजीहत हुई थी। खैर सरकार ने इस फजीहत से पिंड छुड़ाने के लिए क्रिकेट संघ को स्टेडियम की कमान सौंप दी। लेकिन संगठन ने जिस तरह से व्यवस्थाएं की उससे कई सवाल खड़े हो गए। मैच के पहले पुलिस की नाराजगी के बाद ही संघ ने टिकट मुहैया कराये। लेकिन जिन राज्यों में ऐसे मैच होते रहते हैं वहां परम्परा के अनुरुप 5 प्रतिशत टिकिटें पुलिस को दे दी जाती हैं। फिर पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि वो इन टिकिटों को अपने विभाग, प्रशासन ,राजनेताओं और प्रभावशाली लोगों के बीच वितरित करती है। लेकिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह से व्यवस्थाएं की गईं उससे लोगों में नाराजगी देखी गयी। रही सही कसर रायपुर में पहली बार टीम इंडिया की हार ने पूरी कर दी।