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From the pen of senior journalist Dr Shireesh Chandra Mishra 18th edition of Show Must Go On Bhupesh and Defeat
भाजपा ने भूपेश बघेल पर जो आरोप चस्पा किए थे लगता है वो आरोप स्थायी रुप से चिपक गए हैं। ये बात उस दौर की है जब भूपेश बघेल मुख्यमंत्री थे और बतौर स्टार प्रचारक असम, उत्तरप्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए जाते थे। तब भाजपा ने उन पर आरोप लगाया था कि बघेल जहां भी जाते हैं वहां कांग्रेस चुनाव हार जाती है। भूपेश उस दौर में रमन सिंह पर प्रहार करते हुए कहते थे कि रमन सिंह को भाजपा कहीं चुनाव प्रचार में नहीं बुलाती है। लेकिन छत्तीसगढ़ के विधानसभा के चुनाव में रमन सिंह को आगे लाकर भाजपा सत्ता में आ गयी और...भूपेश है तो भरोसा है…वाली कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी। रायपुर दक्षिण में भी भूपेश के खास सिपहसलार के दामाद को टिकट मिली और यहां भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। और तो और महाराष्ट्र में विदर्भ के कुछ क्षेत्रों में भूपेश को प्रभारी बनाया गया और सत्ता आने की आहट के चलते सरकार गठन के लिए पर्यवेक्षक भी बनाया गया, लेकिन नतीजा वही जो भाजपा कहती थी।
अब बात करते हैं छत्तीसगढ़ के नेताओं की; महाराष्ट्र और झारखंड में उनकी भूमिकाओं की। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के तीन मंत्री झारखंड में लगातार डेरा डाले रहे और संगठन के विभिन्न पदाधिकारी और विधायक-पूर्व विधायक तक लगातार कैम्प कर रहे थे। उसी तरह कांग्रेस के दो दिग्गज नेता भूपेश बघेल और टी एस सिंह को महाराष्ट्र के अलग-अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी मिली थी। इसके अलावा मोहन मरकाम को भी कुछ इलाकों की जिम्मेदारी थी। लेकिन भाजपा के नेताओं के प्रचार और रणनीति का पार्टी को झारखंड में कोई फायदा नहीं हुआ, इसी तरह कांग्रेस के नेताओं की तैनाती का भी कांग्रेस को महाराष्ट्र में कोई लाभ नहीं हुआ। ये जरुर है कि झारखंड में इंडिया गठबंधन जीत गया, बिना छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं के सहयोग के और इसी तरह एनडीए जीत गया, महाराष्ट्र में बिना छत्तीसगढ़ के नेताओं के सहयोग के। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ के भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के पास जश्न मनाने की कोई वजह नहीं है।
रायपुर दक्षिण के उप-चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सुनील सोनी 46167 मतों से जीत गए, जो बृजमोहन के 2023 में विधानसभा चुनाव की जीत से करीब 21 हजार मत कम है। लेकिन ये जीत भाजपा की ना होकर बृजमोहन अग्रवाल की है। बृजमोहन ने जिद करके टिकट लायी थी और अपनी जिद को सही साबित किया। बृजमोहन कैम्प के एक शख्स ने फेसबुक पर लिखा था कि यह पहला चुनाव देखा जब लोगों ने गाली दी और वोट भी। फेसबुक पर लिखी बात सही साबित हुई। अब बृजमोहन अग्रवाल का प्रयास होगा कि सुनील सोनी को मंत्रिमंडल में स्थान दिलाया जाए, क्योंकि राजधानी रायपुर से अभी कोई मंत्री नहीं है । सुनील सोनी ओबीसी भी हैं और अनुभवी भी हैं। स्वाभाविक रुप से मंत्री पद के दावेदार होंगें और बृजमोहन का सपोर्ट मंत्री बनने में बहुत कारगर साबित हो सकता है।
शासकीय रेल पुलिस के सिपाही के पास 75 लाख रुपये की विदेशी बाइक मिली है। इसके अलावा उसके पास कई और मंहगे वाहन ,घर और प्लॉट्स हैं। 75 लाख की बाइक वाले सिपाही सहित 4 पुलिस कर्मियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। इन पर गांजे की तस्करी का आरोप है। 45 खातों में 15 करोड़ से अधिक का लेनदेन सामने आया है। गांजे की तस्करी रोकते-रोकते खुद गांजे के तस्कर बनकर काम करने लगे थे । इस काम में अपने आका और आला अधिकारी को भी शामिल कर लिया था। जिसके कारण खेल खुलकर हो रहा था। आका ने भी अपने एकाउन्ट में इनसे पैसे लिए हैं। इन लोगों में इतनी हिम्मत थी कि खुफिया विभाग के अधिकारी ने जब इनसे प्रारंभिक पूछताछ शुरु की तो अपने आला अधिकारी से फोन करवा कर उन्हे चमकाने की कोशिश की, लेकिन खुफिया विभाग ने किसी की नहीं सुनी, नतीजतन सबको बर्खास्त होना पड़ा। खबर है कि आला अधिकारी पर कार्रवाई के बजाय उसे बचाने के लिए जांच बैठा दी गयी है। ताकि उस पद पर बैठे व्यक्ति की फेस सेविंग की जा सके।
रेलवे के जिन 4 पुलिस कर्मियों को बर्खास्त किया गया है। उनमें से एक सिपाही को तो बहुत पहले से ही नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था। 75 लाख की बाइक खरीदने की क्षमता रखने वाले रेलवे पुलिस के सिपाही को रायपुर में ड्रग्स जैसे नशीली दवाओं के कारोबार में लिप्त होने के कारण गिरफ्तार किया गया था । ये बर्खास्त सिपाही डेढ़ साल तक जेल में रहा और सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर छूटा था। जेल में बंद रहने के दौरान ही उसे नौकरी से निकाल दिया जाना चाहिए था । लेकिन सिस्टम की मेहरबानी देखिए कि उसी सिपाही को नौकरी पर रखकर उसका पसंदीदा काम दे दिया गया । आला अधिकारी ने अपने पुलिस कर्मियों को गांजे की तस्करी में लगाकर अपना हिस्सा लेना शुरु कर दिया। जिस पुलिस का काम तस्करों को पकड़ना था वही तस्करी करने लगी । ये पुलिस वाले इतने बेखौफ हो चुके थे कि अपने एकाउन्ट्स में पैसे लेने और ट्रांसफर करने लगे थे।
राजधानी के आउटर के एक पूर्व मंत्री के फार्म हाउस में कांग्रेस के दिग्गज नेता और आला पुलिस अधिकारी की मीटिंग की चर्चा जोरों पर है। कहा जा रहा है कि आउटर के जिस फार्म हाउस में पूर्व मंत्री ने मीटिंग करवायी है उसकी पैतृक सम्पत्ति भी उसी इलाके में है। नेताजी उस वर्ग विशेष से आते हैं जो छत्तीसगढ़ के आधे विधानसभा क्षेत्रों में हार-जीत तय करता है। मीटिंग के साथ ही नेताजी और अधिकारी के बीच पिछले दो महीने से चली आ रही लड़ाई भी थमती नजर आ रही है। मीटिंग में तय हुआ है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हमला नहीं करेंगें।
पहले पीएससी फिर महादेव सट्टा और अब शराब में भी सीबीआई की एंट्री हो गयी है। पीएससी में सीबीआई से जांच भाजपा के चुनावी एजेण्डे का हिस्सा थी, लेकिन महादेव और उसके बाद शराब में सीबीआई की एन्ट्री के कई मायने निकाले जा रहे हैं। जैसे महादेव एप का मामला एक राज्य या देश का ना होकर दुबई तक जाता है वहीं शराब घोटाले में अरुणपति त्रिपाठी की भूमिका छत्तीसगढ़ तक ना सीमित होकर झारखण्ड तक फैली है। ऐसे में राज्य की एजेन्सी को जांच में कठिनाई से बचाने के लिए मामले सीबीआई को सौंपे जा रहे हैं। वहीं इन जांचों को सीबीआई को सौंपने के पीछे ठीक से जांच नहीं हो पाना और राज्य के अधिकारियों की संलिप्तता के कारण जांच में परेशानी भी कारण बताया जा रहा है।
राज्य की पुलिस की जो हालत है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि पूरे कुएं में भांग पड़ी है। पिछले छह महीने की घटनाओं पर गौर करें तो सीधे तौर पर पुलिस के आपराधिक गठजोड़ के चलते सारी घटनाएं हुईं हैं। जब शासकीय रेल पुलिस के आला अधिकारी गांजे की तस्करी करा सकते हैं , जब एसपी कबाड़ियों से दोस्ती गांठकर चोरी करवा सकते हैं ,तो कैसे उम्मीद की जा सकती है पुलिस ठीक से काम करेगी। गांजा तस्करी के बारे में जो जानकारी सामने आयी है वो यह बताने के लिए काफी है कि ये सब किसके कार्यकाल में और किसकी शह पर शुरु हुआ था। पिछली सरकार के कार्यकाल में पुलिस का जो अपराधीकरण हुआ उसका नतीजा थाने में वसूली के लिए अलग से व्यक्ति की नियुक्ति के कारण आत्महत्या , प्रदेश के अलग-अलग थानों मे पुलिस पर हमले जैसी वारदातें सामने आ रही हैं। बिगड़े सिस्टम को सुधारने में अभी वक्त लगेगा। पुलिस के ज्यादातर अधिकारियों-कर्मचारियो की आदतें बहुत खराब हो चुकी हैं।
फिल्म शोले के गब्बर सिंह का एक डॉयलाग काफी मशहूर हुआ कि..गब्बर के ताप से तुम्हें सिर्फ गब्बर ही बचा सकता है... यही बात प्रदेश के एक नामी वकील पर लागू हो रही है। उन्हें दो गब्बरों के ताप से सिर्फ दोनों गब्बर ही बचा सकते हैं। वकील साहब जब सत्ताधारी दल के सबसे बड़े सरकारी वकील हुआ करते थे तब उन्होंने देश के नामी वकील के साथ भरी अदालत जो बदसलूकी की थी तो उस वकील ने उसी समय चेतावनी दी थी। इसी तरह एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ मुकदमेबाजी कर इंटरपोल तक को शामिल करने का प्रयास किया था। बड़े वकील साहब अब खुद ऐसी अदालती कार्यवाही में फंस गए हैं कि उनका बचना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में अब वकील साहब को वो दोनो गब्बर ही बचा सकते हैं जिनके साथ उन्होंने अपने आका के कहने पर पंगा लेने का दुस्साहस किया था।