Allahabad Bar Association opposed the transfer of Justice Yashwant Verma got 15 crores from home
दिल्ली हाईकोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर का इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने शुक्रवार को विरोध किया है। एसोसिएशन ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट कोई "कूड़ादान" नहीं है। बता दें कि, जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। इसके बाद से वह विवादों में घिरे हैं।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा, "हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है।"
इस प्रस्ताव पर एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी के हस्ताक्षर हैं। प्रस्ताव में दावा किया गया है कि जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से 15 करोड़ रुपये की अवैध नकदी बरामद हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए तुरंत जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजने का निर्णय लिया। इस फैसले पर सवाल उठाते हुए एसोसिएशन ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का यह फैसला गंभीर प्रश्न खड़ा करता है कि क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट एक कूड़ादान है?"
एसोसिएशन ने कहा कि हाईकोर्ट पहले से ही जजों की भारी कमी से जूझ रहा है, जिससे नए मामलों की सुनवाई महीनों तक लंबित रहती है। इससे जनता का न्याय व्यवस्था पर से विश्वास कम होता जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से उनके मूल इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कॉलेजियम ने इस मामले में प्रारंभिक जांच भी शुरू कर दी है, जिसके तहत दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से एक प्रारंभिक रिपोर्ट मांगी गई है।
बता दें कि 56 वर्षीय जस्टिस यशवंत वर्मा ने 1992 में अधिवक्ता के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया था। उन्हें 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया था और 1 फरवरी 2016 को स्थायी जज के रूप में शपथ दिलाई गई थी। उनका जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) किया और फिर मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की।
उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में संवैधानिक, श्रम एवं औद्योगिक कानूनों के साथ-साथ कॉर्पोरेट कानून, कराधान और संबंधित कानूनों पर अभ्यास किया। वह 2006 से हाईकोर्ट के विशेष वकील और 2012 से 2013 तक उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख स्थायी अधिवक्ता भी रहे। 2013 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था।
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