Dismissal of chairman and members of State Scheduled Tribes Commission is correct Chhattisgarh HC
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की बर्खास्तगी को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार की इच्छा के अधीन नियुक्त व्यक्तियों को किसी भी समय बिना नोटिस, कारण या सुनवाई के हटाया जा सकता है। जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की सिंगल बेंच ने अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला जारी किया है। याचिकाकर्ताओं ने राज्य में नयी सरकार द्वारा अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए अर्जी दाखिल की थी जिसे खारिज कर दिया गया है।
इस मामले में चार याचिकाकर्ता भानु प्रताप सिंह (अध्यक्ष), गणेश ध्रुव, अमृत लाल टोप्पो और अर्चना पोर्टे (सदस्य)—शामिल थे, जिन्हें 16 जुलाई 2021 को पिछली सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग में नियुक्त किया था। ये नियुक्तियां छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग (संशोधन) अधिनियम, 2020 की धारा 3 के तहत हुई थीं, जिसमें कहा गया है कि अध्यक्ष और सदस्य “राज्य सरकार की इच्छा के अधीन” पद पर रहेंगे।
हालांकि, 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद नई सरकार ने 15 दिसंबर 2023 को एक आदेश जारी कर राजनीतिक नियुक्तियों को हटाने का निर्देश दिया। इसी आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं को भी उसी दिन बिना कोई नोटिस या सुनवाई के उनके पद से हटा दिया गया।
“याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति पिछली सरकार की इच्छा पर हुई थी, और उनकी विचारधारा वर्तमान सरकार की नीतियों के अनुरूप नहीं है, इसलिए उनकी बर्खास्तगी को उनके कार्य या चरित्र पर कलंक (stigma) नहीं माना जा सकता।”
इसके अलावा कोर्ट ने कहा, “नामित सदस्य को पद पर बने रहने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। यदि नियुक्ति नामांकन द्वारा हुई है, तो सरकार को अधिकार है कि वह ऐसी नियुक्ति को अपनी इच्छा पर समाप्त कर सके।”
हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ताओं की बर्खास्तगी को वैध ठहराया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
“सरकार की इच्छा के अधीन पदधारी को किसी भी समय, बिना नोटिस, बिना किसी कारण, और बिना किसी कारण की आवश्यकता के हटाया जा सकती है।”
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