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From the pen of senior journalist Dr Shireesh Chandra Mishra 22nd edition of Show Must Go On Who is the thief
विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार कर सदन के बाहर गांधी जी की प्रतिमा के सामने बैठे नेताजी और उनके समर्थकों के लिए उस समय अप्रिय स्थिति बन गयी। जब नेताजी ..चौकीदार चोर है... का नारा लगाकर विष्णुदेव सरकार के खिलाफ धरने पर बैठे थे।
अंग्रेजी में एक मुहावरा है ...लुक हू इज टॉकिंग.... जिन नेताजी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में सीबीआई को बैन कर रखा था। अब सत्ता गंवाने के बाद अचानक से सीबीआई के प्रति विश्वास और प्रेम बढ़ गया है। नेता जी ने छत्तीसगढ़ में पुलिस भर्ती में फर्जीवाड़े का आरोप लगाकर मुख्यमंत्री से सीबीआई जांच की मांग की है। यही मांग तो भाजपा के लोग कर रहे थे जब पिछली सरकार ने पीएससी में गड़बड़ियों को अंजाम देकर युवाओं का भविष्य बर्बाद करने का काम किया था। तब नेताजी का तर्क था कि आईएएस और राजनेता के परिवार से होना गड़बड़ी का आधार नहीं हो सकता। सीबीआई ने तत्कालीन चेयरमेन सहित अन्य लोगों को गिरफ्तार कर जो मनी ट्रेल पकड़ा है उससे ही साबित हो गया है कि पिछली सरकार के मुखिया से जुड़े संविधानेत्तर सत्ता के केन्द्रों ने कैसे-कैसे फार्मूले इजाद किए थे भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों को अंजाम देने के लिए। सत्ता जाते ही कैसे नेताजी का अपने प्रदेश की पुलिस और जांच एजेन्सियों से भरोसा उठ गया।
केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर गये वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की अपने मूल कैडर वाले राज्य में वापसी हो रही है। पुलिस से सेवानिवृत्त किए गए डीजी रैंक के आईपीएस अधिकारी की सेवा बहाली का आदेश भी राज्य सरकार ने जारी कर दिया है। अधिकारियों की आमद के साथ ही प्रशासनिक खास तौर पर सचिव स्तर पर बड़े परिवर्तन दिखाई देना शुरु हो गए हैं। मीडिया जगत में भी अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। उधर डीजी रैंक की सेवा बहाली के साथ ही पुलिस मुख्यालय में भी बड़ा फेरबदल होने के आसार हैं। वर्तमान डीजीपी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद छह माह की सेवावृद्धि भी फरवरी में खत्म होने जा रही है। राज्य सरकार ने तीन नामों का पैनल केन्द्र सरकार को भेजा हुआ है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही पैनल के नामों पर केन्द्र की मुहर लग जायेगी। वहीं मुख्य सूचना आयुक्त का विज्ञापन जारी होने के साथ ही मुख्य सचिव के पुनर्वास की खबरें भी आम चर्चा में हैं साथ ही अगले सीएस के बारें में भी दिल्ली से आने वाले अधिकारी का नाम भी मीडिया गलियारों में चल रहा है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार नये साल में नये डीजीपी और सीएस की नियुक्ति कर देगी। वैसे भी जो लोग अभी इन पदों पर कार्य कर रहे हैं उनकी कार्यप्रणाली कैसी रही है ये बताने के लिए पिछले साल हुए विधानसभा के चुनाव परिणाम और जेल में बंद अधिकारियों की संख्या काफी है।
भाजपा के विधायक धर्मजीत सिंह अपने भाषण शैली, आवाज और ड्रेसिंग सेंस के लिए जाने जाते हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में धर्मजीत सिंह का चैन वाला डार्क ग्रीन कोट काफी चर्चा में रहा। अपने कोट के कारण धर्मजीत सिंह ने काफी वाह-वाही बटोरी। वैसे यहां ये खुलासा करना जरुरी है कि करीब 25 साल पहले जब धर्मजीत सिंह कांग्रेस के विधायक थे तो उस दौरान भाजपा के एक नेता को अटल सरकार में राज्यमंत्री बनने का कॉल आया। भाजपा नेता के पास शपथ ग्रहण के लिये नया सूट नहीं था। भाजपा नेता और धर्मजीत सिंह जो कि उस दौर के मध्यावर्त (वर्तमान में छत्तीसगढ़ भवन ) में ठहरे हुए थे। भाजपा नेता ने मंत्री बनने की खुशी में धर्मजीत सिंह को मिठाई खिलाते हुए अपनी परेशानी बतायी तो धर्मजीत सिंह ने अपने नये सिले सूट जिसे उन्होंने एक बार भी नहीं पहना था, उसकी पेशकश की। उस सूट को पहनकर भाजपा नेता ने राज्यमंत्री पद की शपथ ली। बस उसके बाद से भाजपा नेता ने अपने राजनीतिक जीवन में 20 साल पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है। छत्तीसगढ़ में कम से कम कांग्रेस की राजनीति को देखकर तो यही कहा जा सकता है। वर्ष 2003 में सत्ता के अंहकारी बर्ताव से क्षुब्ध होकर एक राष्ट्रीय स्तर के दिग्गज राजनेता ने पार्टी को अलविदा कह दिया था। फिर कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ी पार्टी में प्रवेश कर विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे। इसके बाद भाजपा में प्रवेश कर लोकसभा चुनाव लड़ा।
हाल फिलहाल की परिस्थितियां ये बयां करने के लिए काफी हैं कि अगला विधानसभा चुनाव या विधानसभा बहुत बदली-बदली होगी। जैसे 15 साल पहले परिसीमन हुआ था तो कई नेताओं को नये ठौर ढूंढने पड़े थे। वैसा ही कुछ होने जा रहा है। लेकिन इसका सकारात्मक पक्ष ये है कि नया रायपुर में नया विधानसभा भवन लगभग पूर्णता की ओर है। स्पीकर हाउस भी जल्द ही साकार रुप ले लेगा। नई विधानसभा की सदस्य संख्या 120 हो सकती है। नये विधानसभा क्षेत्रों का सृजन हो सकता है। साथ ही महिला सदस्यों के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी हो सकती है। इसको देखते हुए ही नया विधानसभा भवन बन रहा है। ठीक ऐसा ही लोकसभा को लेकर भी 2029 में देखने को मिल सकता है जहां देश की राजनीति में महिलाओं की 33 प्रतिशत अनिवार्य भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है। नई संसद में भी बढ़ी हुई संख्या के लिहाज से बैठक व्यवस्था की गयी है।
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) में कथित दवाओं की सप्लाई की गड़बड़ी का मुद्दा विधानसभा में उठा । विभागीय मंत्री ने कथित गड़बड़ियों की जांच ईओडब्ल्यू से कराने की घोषणा की । सवाल जांच एजेन्सी का भी है और सरकार की मंशा का भी। पिछली सरकार की गड़बड़ी को ढांकने और उसे क्लियर कराने के लिए मंत्री सहित कई बड़े लोगों की इतनी रुचि क्यों है। इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। यदि सरकार की मंशा साफ है तो इतनी बड़ी गड़बड़ी की जांच केन्द्रीय एजेन्सी से क्यों नहीं करानी चाहिए। वैसे भी मंत्री जी की कार्यप्रणाली को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं।राज्य की एजेन्सी से जांच कराने का अर्थ ये भी निकाला जा रहा है कि कम्पनी को बचाने और उसके बिल को क्लियर करने की कवायद के चलते ही ऐसी घोषणा की गयी है।
हालांकि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में मात्र 4 बैठकें ही हुईं लेकिन मुद्दों के लिहाज से ठंड में सदन से लेकर बाहर तक बहुत ज्यादा गर्मी महसूस की गयी। सदन के बाहर कांग्रेस के विधायकों ने वैसा ही कुछ करने का प्रयास किया जैसा उनकी पार्टी पर संसद में करने का आरोप भाजपा लगा रही है। इससे इतर सदन के अंदर बड़े और चर्चित मामले जो खबरों की सुर्खियां बने वो सब मामले भाजपा के ही वरिष्ठ लोगों ने उठाए । एक मामले में उपमुख्यमंत्री जिनके पास पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का भी जिम्मा है ,उनके और भाजपा के वरिष्ठ विधायक के बीच इतनी गर्मागर्म बहस हुई कि अध्यक्ष जी को खुद आसन से खड़े होकर दोनों को शांत कराना पड़ा। जिस मामले पर बहस हो रही थी , उसका कार्य को करने वाला विपक्षी पार्टी का ही जिलाध्यक्ष था। मामले में मंत्री जी को कई अधिकारियों को निलम्बित करने की घोषणा करना पड़ी। वहीं सीजीएमएससी मामले को भी भाजपा के ही वरिष्ठ विधायक ने उठाया औऱ मंत्री को जांच की घोषणा करना पड़ी।
मंत्रिमंडल में अभी दो मंत्रियों के पद खाली हैं। जानकारी के अनुसार मंत्रिमंडल के कम से कम दो मंत्रियों का प्रदर्शन बदतर है। तमाम तरह के आरोप उन पर चस्पा हो रहे हैं। कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय लोगों में उनके खिलाफ माहौल होता जा रहा है। ये जानकारी सरकार को भी है। मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से भी बेलेन्स नहीं दिखाई दे रहा है। मंत्रियों की कार्यप्रणाली पर संगठन और मुखिया दोनों की पैनी निगाहें हैं। अगले एक दो दिन में या तो ख़ाली पड़े दोनों पदों पर दो नये मंत्रियों की एन्ट्री हो जायेगी नहीं तो नये साल में नये मंत्रियों की ताजपोशी या फिर पुराने दो- तीन विकेट गिराकर 4-5 नये लोगों जिसमें पुराने चेहरे भी शामिल हो सकते हैं , उनकी एन्ट्री हो जायेगी। ख़ाली पड़े दो पदों पर रायपुर और दुर्ग की प्रबल दावेदारी दिखाई दे रही है। वहीं विकेट डाउन के साथ परिवर्तन में बिलासपुर और बस्तर से एक-एक पुराने चेहरे को लाया जा सकता है।
गांधी-नेहरु की विचारधारा वाले एक कुलपति जी की नियुक्ति पिछली सरकार के कार्यकाल में खेती-किसानी से जुड़े एक विश्वविद्यालय में हुई थी। सरकार बदलने के साथ ही कुलपति जी की कार्यप्रणाली का सत्ताधारी दल के छात्र और युवा विंग की इकाईयों ने विरोध शुरु कर दिया है। विरोध भी मंत्री जी की एनओसी मिलने के बाद ही शुरु हुआ । बढ़ते विरोध को देखते हुए अपनी कुर्सी बचाने की कवायद में कुलपति जी ने धड़ाधड़ एक के बाद एक आधा-दर्जन राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार, मेले और मड़ई आयोजित किए। हर आयोजन में मंत्री जी को बतौर मुख्य अतिथि भी बुलाया लेकिन इसके बाद भी बर्फ पिघलती दिखाई नहीं दे रही है। फिर कुलपति जी ने विपरीत विचारधारा के अपने मित्र शिक्षाविद का सहारा लेने का मन बनाया है इसके लिए पहले दो और अब एक और आयोजन में अपने मित्र शिक्षाविद को मुख्य अतिथि बनाकर कोशिश कर रहे हैं कि शायद मित्र ही उनकी नैया को पार करा दें।