New Delhi Supreme Court seeks answer from Central Government
नई दिल्ली। अगर कोई मुस्लिम परिवार में पैदा होने के बावजूद इस्लाम पर यकीन नही रखता है, तो वह शरीयत कानून मानने के लिए बाध्य होगा या फिर देश का सेकुलर सामान्य सिविल कानून उसपर लागू होना चाहिए। इस विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार से सवाल किया है, जिसके लिए कोर्ट ने जवाब दाखिल करने को लेकर केंद्र सरकार को केवल 4 सप्ताह का समय दिया है। बता दें कि, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई 5 मई को की जाएगी।
जानकारी के अनुसार, सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच मामले में सुनवाई कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, दिलचस्प बात यह है कि, उनकी केवल एक बेटी है और वह पूरी संपत्ति बेटी को देना चाहती हैं, लेकिन शरीयत कानून केवल 50% की अनुमति देता है।
वकील ने कहा कि, भाई ऑटिस्टिक है, वह उसकी देखभाल करना चाहती है. सीजेआई ने कहा कि अगर मैं गलत नहीं हूं तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत भी, यदि आप धर्म परिवर्तन करते हैं, तो आपके अधिकार छीन लिए जाते हैं। एसजी ने कहा कि, मर्जी से नहीं। सीजेआई ने कहा कि, अगर हम एक आस्था पर लागू होते हैं, तो यह सभी आस्थाओं पर लागू होगा, स्पेशल मैरिज एक्ट में भी है कुछ प्रतिबंध हैं।
एसजी ने कहा कि, स्पेशल मैरिज में नहीं, हिन्दू मैरिज एक्ट में है। पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि, कानून में इसको लेकर प्रावधान है। जहां तक समान नागरिक संहिता का सवाल है तो, सरकार इस पर विचार कर रही हैं। एएसजी भाटी ने कहा था कि, यूसीसी आएगा या नहीं अभी कुछ नही कह सकते। यह याचिका केरल की सफिया पीएम नाम की एक महिला की ओर से दायर की गई है। सफिया ने याचिका में मांग की गई है कि, मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते, उनपर भारतीय उत्तराधिकार एक्ट 1925 लागू होना चाहिए। सफिया ने याचिका में कहा है कि, वह और उनके पिता दोनों ही आस्तिक मुस्लिम नहीं है, इसलिए पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते। लेकिन चूंकि वो जन्म से मुस्लिम है, इसलिए शरीयत कानून के मुताबिक उनके पिता चाहकर भी उन्हें एक तिहाई से ज्यादा संपत्ति नहीं दे सकते है। बाकी दो तिहाई संपत्ति याचिकाकर्ता के भाई को मिलेगी।
सफिया का कहना है कि, उनका भाई डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होने के चलते असहाय है। वो इसकी भी देखभाल करती है। पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा था कि, संविधान का अनुच्छेद लोगों को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है। यही अनुच्छेद इस बात का भी अधिकार देता है कि, कोई चाहे तो नास्तिक हो सकता है। इसके बावजूद सिर्फ किसी विशेष मजहब को मानने वाले परिवार में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब का पर्सनल लॉ मानने के लिए बाध्य नही किया जाना चाहिए।
वकील ने यह भी कहा था कि, अगर याचिकाकर्ता और उसके पिता लिखित में यह कह देते है कि, वह मुस्लिम नहीं है, तब भी उनकी संपत्ति पर उनके रिश्तेदारों के दावा बन सकता है। याचिकाकर्ता का कहना था कि, सबरीमाला मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर चुका है कि, संविधान के अनुच्छेद 25 जहां लोगों को धर्म के पालन करने की आजादी देता है, वही इस बात का भी अधिकार देता है कि, अगर वो चाहे तो नास्तिक हो सकते है।
ऐसे में सिर्फ किसी विशेष मजहब में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब के पर्सनल लॉ को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। शरीयत कानून के अनुसार, जिसने इस्लाम छोड़ दिया है, वह विरासत का अधिकार खो देगा। धर्म छोड़ने के बाद विरासत के अधिकार के लिए कोई प्रावधान नही होने से खतरनाक स्थिति हो जाएगी, क्योंकि न तो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और न ही शरिया कानून उसकी रक्षा कर सकेंगे।
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