Wife has illicit relationship virginity test should be done Chhattisgarh HC said demand is unconstitutional against the dignity of women petition dismissed
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक पति की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अपनी पत्नी का कौमार्य परीक्षण(Virginity Test) करवाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि ऐसी मांग महिलाओं के गरिमा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है और यह असंवैधानिक है।
जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा ने क्रिमिनल रिवीजन नंबर 16 ऑफ 2025 की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। यह याचिका पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी, जिसमें पत्नी के कौमार्य परीक्षण की अंतरिम मांग को खारिज कर दिया गया था।
दरअसल, पूरा मामला रायगढ़ जिले का है। जहां 2 जुलाई 2024 को पारिवारिक न्यायालय में केस दर्ज हुआ था, जिसमें पत्नी ने ₹20,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण की मांग की थी।
दोनों की शादी 30 अप्रैल 2023 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी, लेकिन वैवाहिक संबंध जल्द ही बिगड़ गए। पत्नी ने अपने परिवार को बताया कि पति नपुंसक है और शारीरिक संबंध स्थापित करने से इनकार करता है। इसके जवाब में पति ने आरोप लगाया कि पत्नी का अपने बहनोई(जीजा) से अवैध संबंध है और इस आधार पर पत्नी का कौमार्य परीक्षण कराने की मांग की। पति की ओर से अधिवक्ता अनिकेत वर्मा ने पैरवी की, जबकि पत्नी ने स्वयं कोर्ट में प्रस्तुत होकर अपना पक्ष रखा।
हाईकोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या किसी महिला को जबरन कौमार्य परीक्षण के लिए मजबूर करना संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उसके जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।
“याचिकाकर्ता द्वारा पत्नी का कौमार्य परीक्षण करवाने की मांग असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो महिला की गरिमा के अधिकार को सम्मिलित करता है।”
“यह महिला की बुनियादी गरिमा और शालीनता के अधिकार का उल्लंघन है। अनुच्छेद 21 को मौलिक अधिकारों का हृदय कहा जाता है। कौमार्य परीक्षण महिला की गरिमा के विपरीत है।”
कोर्ट ने सुझाव दिया कि यदि पति खुद पर लगे नपुंसकता के आरोप को गलत सिद्ध करना चाहता है, तो वह खुद का मेडिकल परीक्षण करा सकता है या अन्य वैधानिक साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है — लेकिन पत्नी के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकता।
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