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A solid strategy to deal with Naxalism was initiated during Manmohan Singh's tenure
नई दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक देश को नक्सल समस्या से पूरी तरह मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया है, लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए ठोस रणनीति की शुरुआत पहले ही मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते की गई थी। गृह मंत्री के रूप में पी. चिदंबरम ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कड़ी कार्रवाई की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिसमें नक्सलियों के खिलाफ एकीकृत कार्ययोजना, राज्यों के बीच बेहतर समन्वय और थानों की किलेबंदी की योजना शामिल थी।
नक्सलवाद के खिलाफ पहली बड़ी कार्रवाई
अप्रैल 2006 में, मनमोहन सिंह ने नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित करते हुए नक्सलवाद के वैचारिक विघटन की बात की और इसके खिलाफ पूरी ताकत से कार्रवाई करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस दौरान लगभग 400 नक्सल प्रभावित थानों की सुरक्षा किलेबंदी के लिए केंद्र से दो-दो करोड़ रुपये की सहायता प्रदान की गई।
राज्य और केंद्र का बेहतर तालमेल
2008 में नक्सल विरोधी अभियान को और प्रभावी बनाने के लिए पहली बार राज्यों और केंद्रीय बलों के समन्वय से नक्सलियों के खिलाफ संयुक्त ऑपरेशन की रणनीति तैयार की गई। हालांकि, इस दौरान नक्सलियों ने अपनी ताकत को दर्शाते हुए 2010 में दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 75 जवानों की हत्या और 2013 में झीरम घाटी में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम दिया। फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही नक्सलवाद के अंत की शुरुआत हो चुकी थी।
मूलभूत सुविधाओं की सुदृढ़ता
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास की दिशा में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। एकीकृत कार्ययोजना के तहत, नक्सल प्रभावित हर जिले को बिजली, सड़क, स्कूल, और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए 25-25 करोड़ रुपये की सहायता प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त, 2009 में कोबरा बटालियन के गठन का निर्णय लिया गया, और 10 बटालियन तैयार करने की प्रक्रिया को हरी झंडी दी गई।