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Amit Shah said on the 150th anniversary of Vande Mataram that Congress's "division of verses" contributed to the partition of the country
BREAKING NEWS: 2025 में वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में संसद में विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस गीत को पहली बार 7 नवंबर 1875 में प्रकाशित किया गया था और बाद में इसे बंकाल के उपन्यास आनंदमठ (1882) में शामिल किया गया। स्वतंत्रता सेनानियों और देशभक्तों के लिए यह गीत आज़ादी और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक रहा है।
अमित शाह का बयान
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम सिर्फ बंगाल का गीत नहीं, बल्कि पूरे भारत का राष्ट्रीय गीत है। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए बताया कि जब वंदे मातरम के 50 साल पूरे हुए, तब देश आज़ाद नहीं था। उनके अनुसार, बाद में कांग्रेस ने इस गीत के कुछ हिस्से — अर्थात् कुछ छंद — हटा दिए। शाह ने दावा किया कि अगर यह “छंदों का विभाजन” नहीं किया गया होता, तो देश का विभाजन नहीं होता और भारत आज “पूरा” होता। उन्होंने वंदे मातरम को केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान, आज़ादी की लड़ाई और स्वदेशी चेतना का प्रतीक बताया।
वैचारिक और राजनीतिक विवाद
150 साल की यह वर्षगांठ वंदे मातरम को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र भी बनी है। कुछ लोग इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक मानते हैं, तो आलोचक इसे विवादास्पद बताते हुए कहते हैं कि इसे ‘राष्ट्रवाद’ और ‘सांप्रदायिकता’ के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे देश में असहिष्णुता और विभाजन की भावनाएं बढ़ सकती हैं। समर्थक इसे स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हुए इसे पूरे देश में अपनाने की वकालत कर रहे हैं।
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में महत्व
वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ केवल गीत का इतिहास नहीं, बल्कि आज की राजनीति, सामाजिक पहचान और राष्ट्रीयता पर विचारों का पुनरावलोकन बन गई है। सरकार और विपक्ष दोनों इसे अपने-अपने दृष्टिकोण को स्थापित करने के लिए उपयोग कर रहे हैं। आम नागरिकों के लिए यह अवसर देश के इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम और वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक हालात पर सोचने का समय है।