From the pen of senior journalist Dr Shireesh Chandra Mishra 37th edition of weekly column Show Must Go On
महादेव की महिमा अपरम्पार है। लॉक डाउन ने दो लोगों को बेरोजगार किया फिर उन दोनों ने ऐसा कुछ किया कि सबकी गरीबी और रोजगार की समस्या का समाधान हो गया। तत्कालीन सरकार पर आरोपियों और सट्टा की गतिविधियों को संरक्षण देने का आरोप है। लेकिन उस समय की सरकार के मुखिया का कहना है कि हमने ही कार्रवाई की और केन्द्र सरकार से प्रतिबंध के लिए लगातार पत्राचार किया। लेकिन ये बात समझ से परे है कि कैसे पूरा सिस्टम दो सटोरियों और उनके कथित स्थानीय एजेन्ट के रुप में काम कर रहे पुलिस के एक एएसआई के साथ जुड़ गया। ये वही एएसआई है जिसके बयान के आधार पर कार्रवाईयां हुईं हैं। जेल में बंद एएसआई पिछली सरकार के समय वैसे तो किसी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पदस्थ था लेकिन साहब की कृपा से हाउस के सामने बने एक मकान को अपना ऑफिस बनाकर हाउस में होने वाली गतिविधियां और यहां तक कि खुफिया विभाग के चीफ की गतिविधियों तक को साहब को रिपोर्ट करता था। इसने अपने बयान में कई पुलिस अधिकारियों के खिलाफ बयान दिया है। वसूली मास्टर ही पैसा पहुंचाने की महत्वपूर्ण कड़ी था। साहब को लगता था कि देर-सबेर इसमें हमारा नाम आ सकता है तो साहब ने दुर्ग और रायपुर में छोटी-मोटी कार्रवाईयों को अंजाम दिलवाया। ज्यादातर कार्रवाईयां छोटे प्यादों पर हुईं और जैसा कि पुलिस की परम्परा है कि बड़े हाथ मारो और छोटों को पकड़कर मीडिया में वाहवाही लूटो। वैसा ही इस केस में लगातार हो रहा था। तो साहब को लगा कि देश में जुए के लिए आखिरी बार अंग्रेजों ने ही कानून बनाया था तो हम भी बना देते हैं और केन्द्र को चिट्ठी लिख देते हैं तो काम पक्का, किसी को कोई शक नहीं। सब काम चकाचक।
महादेव मामले में ईओडब्ल्यू ने जो एफआईआऱ की थी उसमें साहब सहित 21 लोगों के खिलाफ 13 अलग-अलग धाराओं में मामले दर्ज किए गए हैं। एफआईआर में एक धारा ही अंग्रेजों के बनाए 1867 के कानून की है जिसे बाद में मध्यप्रदेश सरकार ने संशोधित कर दिया था। बाकी चार धाराएं ...छत्तीसगढ़ गेम्बलिंग (प्रोहिबिशन )एक्ट 2022 की हैं । पिछली सरकार के कार्यकाल में ही इस कानून को विधानसभा से पास कराकर अमलीजामा पहनाया गया था। यानी कि साहब अपने ही बनाए कानून की धाराओं के तहत मामले की जद में आ गए हैं। ऐसा बहुत कम देखा गया है इस तरह का दुर्योग बने। मध्यप्रदेश में कुछ-कुछ इस तरह का दुर्योग तत्कालीन भाजपा सरकार के वित्त मंत्री रहे राघव जी के साथ भी हुआ था, जिस जेल का उद्घाटन राघव जी ने किया बाद में उसी जेल में लम्बे समय तक रहना पड़ा था।
महादेव मामले में एक अधिकारी ने केस दर्ज किए थे। अधिकारी की बहुत ज्यादा मंशा थी नहीं कि उनके विभाग में केस दर्ज हो । चूंकि सरकार बदल गए थी इसलिए मजबूरी में केस दर्ज करने पड़े उसके ही खिलाफ जिसकी कृपा से पद मिला था । अधिकारी का तर्क था कि इतने सारे लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करने के इन्वेस्टीगेशन प्रॉपर नहीं हो पायेगा और केस कमजोर हो जायेगा। चूंकि अधिकारी को एक बड़े पद से जेल में बंद लेडी सुपर सीएम के प्रकोप के कारण लूप लाइन में जाना पड़ा था इसलिए लेडी सुपर सीएम के जेल में जाते ही उनके भाग्य में जैसे ही राजयोग बना उसके कुछ दिन बाद सरकार बदल गयी थी। अब सरकार का जो आदेश था उसका पालन तो करना ही था, सो धड़ाधड़ केस दर्ज कर लिए। साथ ही जिनकी कृपा से पद मिला था उन्हें सूचित भी कर दिया कि दबाव में केस दर्ज करना पड़ा है तो साहब ने भी कह दिया कि इस्तीफा क्यों नहीं दिया, अब मुझे क्यों बता रहे हो।
महादेव मामले में जांच एजेन्सी ने बहुत सारे लोगों जिनमें 4 आईजी स्तर के अधिकारी भी थे उन सबके खिलाफ राज्य सरकार से जांच की अनुमति मांगी थी लेकिन सरकार ने 24 लोगों के खिलाफ ही जांच की अनुमति दी। लेकिन एक मंत्री की मेहरबानी से दो आईजी बच गए जिनके यहां सीबीआई की रेड नहीं हुई जबकि एक आईजी के खिलाफ सरकार ने जांच की अनुमति ही नहीं दी। इस तरह रायपुर में पदस्थ दो आईजी ही सीबीआई की रडार में आए । राजधानी में रहने का नुकसान हुआ । बाकी लोग बच निकले जिनमें कई टीआई भी शामिल हैं। भाजपा के आरोप पत्र में जिनके चेहरे लगाए गए थे लगभग सभी पर कार्रवाई हो गयी। इनमें से कई जेल में भी बंद है। एक एसपी स्तर के अधिकारी को अपने फोन से साहब से बात कराना महंगा पड़ गया तो दूसरे को स्पाई कैमरे के सामने इंटरव्यू देना। फोन कॉल डिटेल्स में भी बहुत तेरा-मेरा हुआ। दो लोगों के रेगुलर नम्बर्स की जांच की गयी तो बाकी के लिए च्वाइस नम्बर्स का ऑप्शन दे दिया गया। कोल लेवी और डीएमएफ मामले की आरोपी जेल में बंद आईएएस मोहतरमा को भाजपा के एक बड़े नेता विधानसभा चुनाव के पहले दिल्ली के एक ताकतवर नेता से मिलवा आए थे लेकिन पार्टी का चुनाव कैम्पेन ही उन सब पर लगे आरोपों पर आधारित था इसलिए कोई राहत नहीं मिल सकी।
महादेव की महिमा देखिए कि महादेव की कथा करने वाले महादेव के नाम पर धंधा करने वालों को कथा सुनाने परदेस पहुंच गए। अब जब साहब के यहां छापा पड़ा तो साहब सबके नाम गिना रहे हैं कि भाजपा के फलां नेता के साथ भी महादेव एप के कर्ताधर्ताओं की फोटो है । कथाकार से पूछताछ क्यों नहीं हो रही है। एजेन्सी उनको क्यों छोड़ रही है। अरे साहब आपको मालूम होना चाहिए कि किसी आरोपी या अपराधी से कोई सम्बन्ध भी तो स्थापित हो। कथाकार ने अपनी कथा की और दक्षिणा लेकर चल दिए उन्होंने कोई प्रोटेक्शन मनी तो ली नहीं है , कि प्रोसीड ऑफ क्राइम में मनी ट्रेल पकड़ा जाए। यदि महादेव एप के कर्ता-धर्ताओं को कोई बीमारी हो जाए और कोई डॉक्टर इलाज करे तो क्या डॉक्टर को भी आरोपी बनाओगे कि इलाज क्यों किया। आप जैसे हैं वैसे ही दुनिया को देख रहे हैं जो ठीक नहीं है। यही कहानी आपने कोल लेवी के सरगना के पकड़ने जाने पर भाजपा नेताओं के साथ फोटोग्राफ जारी करके भी सुनवाई थी । हां आपकी ये बात सही है कि उसमें से भाजपा के एक नेता कोल लेवी के सरगना का आज भी बहुत ख्याल रख रहे हैं जेल से लेकर अस्पताल और अदालत तक।
महादेव सट्टा मामले में वैसे तो ज्यादातर लोगों के बारें में बातें आम चर्चा में आती रही हैं। लेकिन हाल के छापों में एक-दो नाम ऐसे हैं जिनका महादेव से कैसे सम्बन्ध स्थापित हो गया है ये सोचने का विषय है। दरअसल नान और शराब घोटाले के एक आरोपी के घर भी सीबीआई ने दबिश दी है। वैसे तो इनका महादेव से सीधा कनेक्शन नहीं था लेकिन जिस तरह से जेल में बंद दोनो मोहतरमों को आय से अधिक सम्पत्ति में आरोपी बनाया गया था वैसा इन साहब से साथ नहीं हुआ। चर्चा है कि साहब को देर सबेर आय से अधिक सम्पत्ति की जद में लाने के लिए केन्द्रीय एजेन्सी ने कार्रवाई की है। पिछले डेढ़ साल का ट्रेण्ड है कि जहां राज्य की एजेन्सी चूक रही है वहां केन्द्रीय एजेन्सी कार्रवाई कर रही है। इन सब कार्रवाईयों से जेल में बंद लेडी सुपर सीएम को कुछ राहत जरुर मिली होगी। नहीं तो उनको यही चिंता सताए जा रही थी कि वे लोग सब अंदर हैं और बाकी लोग मजे कर रहे हैं ऐसे में जिनकी चिंता उनको सबसे ज्यादा थी वो पिछले साल ही अंदर गए हैं यानी कि मैडम के जाने के सवा साल बाद।
ईडी ने एक मामले में एक रिटायर्ड अधिकारी को किंग पिन बताया। आईटी और ईडी ने उनके आवास पर दबिश भी दी। ऐसा कहा जाता है कि पिछली सरकार को चलाने वाला मास्टर माइंड यही अधिकारी था। भाजपा के आरोप पत्र में फोटो भी छापी गयी थी लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। सारे चेले अंदर हैं और गुरु बाहर जिम में सन ग्लास लगाकर मधुर संगीत सुनते हुए पसीना बहा रहे हैं जिन्दगी का लुत्फ उठा रहे हैं। अरे भाई गुरु में कुछ तो खासियत होगी कि भाजपा सरकार में शीर्षस्थ पद हासिल करने के बाद एक अर्द्ध न्यायिक निकाय के चेयरमेन बन गए फिर कांग्रेस सरकार को चलाते हुए अपने लिए नया आयोग बनवाकर उसके चेयरमेन भी बन गए। लोग हल्ला मचाते रहे कि अब गिरफ्तारी होगी कि तब ,लेकिन बाल भी बांका नहीं हुआ। हुनर है और अनुभव भी। चेलों ने गुरु से सब कुछ सीखा लेकिन बचने और साधने का हुनर नहीं सीख पाए।
सरकार में पद हासिल का क्या क्राइटेरिया होता है ये शायद प्रशासनिक अधिकारी ही बेहतर जानते होंगें। एक अधिकारी जो शीर्षस्थ पद से रिटायर होने के पहले ही किसी आयोग के मुखिया बनने जा रहे हैं उनके कार्यकाल में सर्वाधिक प्रशासनिक अधिकारी एक साथ जेल यात्रा कर रहे हैं और कुछ कतार में हैं फिर भी वे बेहतर प्रशासनिक मुखिया हैं। उनको पुरस्कृत किया जा रहा है। उनके कार्यकाल में ही पूर्ववर्ती सरकार के समय एक निगम में करोड़ों रुपये की फर्जी खरीदी मामले में दो आईएएस अधिकारियों से जांच एजेन्सी ने लम्बी पूछताछ की है। इनमें से एक अधिकारी फिलहाल कलेक्टर हैं जो अपने मातहतों से अपशब्दों का खुलकर प्रयोग करते हैं। उनकी इस आदत के चलते वहां के एक विभाग के अधिकारी लम्बी छुट्टी पर चले गए हैं। वहीं संविधानिक प्रमुख के दौरे में हुई खान-पान की गड़बड़ी के कारण जब उन्हें फटकार पड़ी और शिकायत हुई तो शिकायतकर्ता को ही एक पुराने मामले में फंसा दिया और एक नया मामला दर्ज करवा दिया। उनके साथी एसपी भी एक नवगठित जिले में अपनी लापरवाही के चलते अपनी जान को संकट में डाल चुके हैं ,वो भी कलेक्टर का ही साथ दे रहे हैं। जबकि मामले की हकीकत को संभागायुक्त और आईजी दोनों ही भलीभांति जानते हैं। कलेक्टर साहब पूर्ववर्ती सरकार के मुखिया के रिश्तेदार भी बताए जाते हैं। सरकार को चाहिए करोड़ों रुपये के घोटाले के संदेही और अपशब्दों का खुलकर प्रयोग करने वाले इस अधिकारी की कार्यप्रणाली की जांच करवाकर उचित कार्रवाई करे।
प्रदेश में प्रोफेसर्स के दिन कुछ अच्छे नहीं चल रहे हैं। मामले अलग-अलग हैं और अलग-अलग तरह की बातें हैं। सबसे पहले कला से जुड़े प्रोफेसर की बात करते हैं। कलेक्टर के खिलाफ आवाज उठाने के कारण पुलिस और प्रशासन ने मिलकर एक पुराने मामले में फंसा दिया जो खत्म हो चुका था। आवेदिका को पुलिसिया अंदाज में बुलाकर एक नई एफआईआऱ दर्ज करवा दी। हालांकि सरकार के बड़े लोगों को केस की हकीकत और एसपी-कलेक्टर की भूमिका की पूरी जानकारी है लेकिन ये...ब्यूरोक्रेसी ..इन पर कार्रवाई नहीं होने दे रही है। उधर जानलेवा हमला झेल चुके एक प्रोफेसर की जान तो बच गयी है लेकिन विपक्ष के एक ताकतवर नेता अपने सम्पर्कों के जरिए केस वापस लेने का दबाव बना रहे हैं, ये स्थिति तब है जब प्रोफेसर के प्रदेश के वरिष्ठतम पुलिस अधिकारियों में से एक के साथ दोस्ताना सम्बन्ध हैं। वो तो प्रोफेसर की किस्मत अच्छी है कि राज्य में सरकार बदल गयी नहीं तो उनके घर में भी कुछ रखवा कर जेल भिजवा देती जैसे एक पत्रकार के साथ किया और नौकरी जाती सो अलग। तीसरा मामला सिम्स से जुड़ा है जिसमें एक छात्रा से छेड़छाड़ के आरोपी प्रोफेसर को ट्रांसफर और रिलीव करके बचाने का प्रयास किया गया है ऐसी ही एक शिकायत रायपुर के मेकाहारा में हो चुकी है जिसमें बाहर से आय़ी ऑल इंडिया कोटे की छात्रा को प्रोफेसर लगातार परेशान कर रहा था जिस पर छात्रा ने कई फोरम में अपनी शिकायत की है।
निगम,मण्डल, आयोग औऱ परिषद आदि की जम्बो लिस्ट आ गयी । पद पाने वालों की लम्बी सूची है। और ना पाने वालों की अन्तहीन सूची। लेकिन जिनको मलाईदार पद मिले हैं उन सबने बुके लेकर वरिष्ठों की परिक्रमा शुरु कर दी है ।जिनके नाम आए हैं उनमें से कई मायूस हैं । मीडिया में भी एनालिसिस भी चल रहा है कि फलां के करीबी को पद मिला, फलां संभाग से सबसे ज्यादा नियुक्तियां हुईं, फलां को कभी कार्यालय में नहीं देखा, फलां को पिछली भाजपा सरकार में पद मिल गया था। तो इन नियुक्तियों में ऐसे लोगों को भी पद मिले हैं जो पार्षद का चुनाव हार चुके हैं लेकिन अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलेगा। जैसे पिछले नगरीय निकाय के चुनाव पार्षद पद के प्रत्याशी के तौर पर ज़मानत ज़ब्त करा चुके नेताजी इस बार मलाईदार निगम के महापौर बन चुके हैं। खैर राजनीति में प्रतिक्रिया और आंकलन सतत चलने वाला क्रम है । जिनको मलाईदार पोस्ट मिली है हो सकता है पार्टी उन्हें राजनीति के अंतिम पड़ाव पर मानते हुई पुरस्कृत करना चाहती होगी। जिन्हें उनके कार्यों और अपेक्षा के अनुरुप नहीं मिला है, हो सकता है कि पार्टी उन्हें आगे ले जाना चाहती हो। खैर जो भी है राजनीति में किस्मत बड़ी चीज है।
निगम,मण्डल, आयोगों, परिषदों ,प्राधिकरणों और अभिकरणों में नियुक्तियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। जो बची हुई हैं वे भी धीरे-धीरे हो जायेंगीं। प्रधानमंत्री के बाद गृहमंत्री का दौरा हो गया है। राज्यपाल ने भी राज्य के उत्तर से दक्षिण का दौरा कर लिया है। विधानसभा का बजट सत्र हो चुका है। अब बारी है मंत्रिमंडल विस्तार की जिसमें तीन विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। यदि दो-तीन मंत्री ड्रॉप होते हैं तो फिर 5-6 विधायकों को मंत्री पद मिल सकता है जिसमें नये और पुराने विधायकों का कॉम्बीनेशन हो । मंत्रियों के विभागों में फेरबदल की चर्चा भी है। यदि पुराने चेहरे मंत्रिमंडल में आते हैं तो निश्चित रुप से मौजूदा मंत्रियों के विभाग बदलेंगें। इसके साथ ही हो सकता है कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति भी हो जाए। इस बीच या इसके बाद एस-पी और कलेक्टर्स का नम्बर भी लगेगा। मुख्य सूचना आयुक्त के पद का निर्णय भी इसी माह होने की उम्मीद है।
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