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वरिष्ठ पत्रकार डॉ. शिरीष चन्द्र मिश्रा की कलम से..'शो मस्ट गो ऑन' का 38वां एडिशन- 'मंत्रिमंडल विस्तार में पेंच'

By: डॉ. शिरीष चन्द्र मिश्रा
Raipur
4/13/2025, 7:47:34 AM
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From the pen of senior journalist Dr Shirish Chandra Mishra 38th edition of Show Must Go On Problem in Cabinet Expansion

मंत्रिमंडल विस्तार में पेंच

राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का दौरा हो गया, विधानसभा का बजट सत्र खत्म हो गया। शिवप्रकाश और नितिन नबीन की बैठक हो गयी लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पाया। सारे मीडिया में खबरें चल गयीं कि बस एक-दो दिन में विस्तार हो जायेगा। लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हुआ। पिछले साल जब जुलाई में मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा हुआ था तब ऐसा लगा था कि बस विस्तार हो गया लेकिन तब से लेकर अब तक 10 माह गुजर चुके हैं लेकिन विस्तार नहीं हो पा रहा है। मंत्रिमंडल में दो नये सदस्यों के नाम फाइनल हैं। सारा पेंच तीसरे नाम को लेकर है। संगठन और वरिष्ठ नेता के बीच तालमेल नहीं बन पा रहा है। दोनों के अपने-अपने एक-एक नाम हैं। संगठन का जोर नये विधायक पर है तो वरिष्ठ नेता का जोर पुराने मंत्री को लेकर है। दोनों ही नाम सामान्य वर्ग से हैं। फिलहाल मंत्रिमंडल में सामान्य वर्ग से एक ही मंत्री हैं जबकि पिछली भाजपा सरकारों में सामान्य वर्ग से 3 मंत्री थे। ऐसे में क्या फार्मूला निकलेगा कहा नहीं जा सकता। एक बार फिर 15 अप्रैल को विस्तार का हल्ला है देखते हैं क्या होगा।

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विभागीय फेरबदल की आहट

मंत्रिमंडल का विस्तार टलने की एक वजह मंत्रियों के विभागों में फेरबदल भी कही जा रही है। मंत्रिमंडल विस्तार में जो दो नाम पक्के हैं उनमें से एक विधायक (जो पहले मंत्री रह चुके हैं ) की कुछ विभागों में अच्छी पकड़ है और इमेज भी बहुत अच्छी है। जिसके कारण कुछ मंत्रियों को लगता है कि उनके विभाग बदले जा सकते हैं। ऐसे कुछ मंत्रियों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर फिलहाल विस्तार को ठंडे बस्ते में डलवाने की कवायद की है ताकि उनके विभाग बचे रहें या फिर नये मंत्री शामिल भी होते हैं तो उनके विभागों पर आंच ना आए। हालांकि इन बातों में कितना दम हैं ये बात वो लोग ही समझ सकते हैं तो सत्ता का हिस्सा हैं।

खाली पदों का फार्मूला

विधानसभा चुनाव होते ही सरकार का गठन फटाफट हो जाता है। लेकिन आम तौर पर देखा गया कि मंत्रिमंडल में एक-दो पद खाली छोड़ दिए जाते हैं। फिर मीडिया में यह बात आती है कि बाकी विस्तार और निगम-मंडल में नियुक्तियां लोकसभा में प्रदर्शन के आधार पर की जायेंगीं। जब लोकसभा चुनाव हो जाता है तो कहा जाता है कि अब नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के बाद खाली पद भरे जायेंगें। बेचारे कार्यकर्ता मुंह ताकते रह जाते हैं। करीब डेढ़ साल बाद ही कार्यकर्ताओं में से कुछ लोगों को पद मिल पाता है। फिर चाहे कांग्रेस की सरकारें हो या फिर भाजपा की सरकारें। सबका व्यवहार एक सा ही होता है। होना तो ये चाहिए सरकार बनते ही नियुक्तियां कर देनी चाहिए ताकि तीन साल बाद पार्टी के ही दूसरे लोगों को मौका दिया जा सके।

अकड़ बाकी

रस्सी जल गयी लेकिन अकड़ नहीं गयी। पिछली सरकार में चमड़े के सिक्के चलवाने वाली दो मोहतरमाओं में से एक से जांच एजेन्सी ने फिर से पूछताछ की है। पूछताछ के दौरान भी मोहतरमा अपनी अकड़ से बाज नहीं आय़ीं। जांच अधिकारी को धमकाया कि एक बार बाहर आने दो सबको देख लूंगी। तुम्हारे जैसे व्यक्ति की औकात भी नहीं है कि मुझसे बात कर सको। ये समय की बात है कि तुम मुझसे सवाल-जवाब कर रहे हो। अब बेचारा अधिकारी क्या करे, वो तो अपनी ड्यूटी कर रहा है। काम तो आपने गलत किया है जब आप पॉवर में थीं तो अपनी ड्यूटी छोड़कर जितना अनैतिक और गैर कानूनी हो सकता था उसे करने में कोई गुरेज नहीं किया।

आखिर कितनी बार होंगें हल्के

पुलिस से लेकर प्रशासन तक के अधिकारी विभिन्न मामलों में आरोपी बनाये जा रहे हैं। कभी राज्य की एजेन्सी पहले मामला दर्ज करती है फिर उसे केन्द्र की एजेन्सी को सौंपती है। कभी केन्द्र की एजेन्सी मामले दर्ज करती है फिर उसे राज्य की एजेन्सी को सौंपती है। सारी कवायद में वो सारे लोग परेशान हो रहे हैं जिनके खिलाफ कार्रवाईयां की जा रही है। कुछ लोग एजेन्सियों के नाम पर किसी किसी से कुछ-कुछ ले लेते हैं फिर एजेन्सी चेंज हो जाने से फिर नये सिरे कवायद करना पड़ती है। ऐसे ही कुछ परेशान लोगों का कहना है कि आखिर कितनी बार हल्के होना पड़ेगा। पैसा तो जा रहा है लेकिन परेशानी जस की तस बनी हुई है।

सुशासन तिहार और आवेदन

पिछली सरकारों की तरह भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार आम जनता की समस्याओं से रुबरु होने और उनके समाधान के लिए सुशासन तिहार मना रही है। इस तिहार में आम लोग बढ़-चढ़कर आवेदन दे रहे हैं। आवेदनों की भरभार है। भारतमाला में मुआवजे के लिए भटक रहे किसानों ने भी बड़ी संख्या में आवेदन दिए हैं। कई किसानों से ज्यादा जमीन लेकर कम मुआवजा दिया गया है इन जमीनों पर सड़क निर्माण का काम भी शुरु हो गया है।वहीं कई किसानों के मुआवजे की गणना में गड़बड़ी की गयी है। यानी जिन पांच ब्लॉक के किसानों की जमीनें ली गयी हैं उनमें से दो ब्लॉक के किसान ही फायदे में रहे बाकी के लिए गणना सही ढंग से नहीं की गयी। तीसरे वो किसान हैं जिनकी जमीनों के मुआवजे किसी औऱ ने ले लिए। इससे इतर महासमुन्द के एक व्यक्ति ने एक मंत्री का विभाग बदलने के लिए ही आवेदन दे दिया है जो इस समय सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है। वहीं एक व्यक्ति ने ससुराल जाने में दिक्कत के चलते मुख्यमंत्री से मोटरसाइकिल दिलाने की मांग की है तो एक व्यक्ति ने अपने लिए योग्य वधू मांगी है।

क्रोनोलॉजी

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद खत्म क्यों नहीं हो पा रहा है, इसको समझने के लिए आपको इसकी क्रोनोलॉजी समझना होगी। कौन-कौन नक्सलियों को किस-किस रुप में मदद कर रहा है। खासतौर पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर प्रदेश की राजधानी रायपुर तक कौन-कौन शामिल है । कैसे ,कौन ,किससे जुड़कर क्या लिखता है औऱ क्या चर्चा करता है। अभी दिल्ली के एक पत्रकार ने सारे नक्सलियों की मौत को आदिवासियों की हत्या बताने की असफल कोशिश की है। उन्होंने अपने लेख में उसका आधार भी नहीं बताया है। ऐसा नहीं है कि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में निर्दोष नहीं मारे गये हैं लेकिन ये भी सच है कि सारे नक्सली, निर्दोष आदिवासी भी नहीं हैं। नक्सली जिन ग्रामीणों को मुखबिर बताकर निर्मम हत्या करते हैं या सुरक्षा बलों पर हमले करके उनकी हत्याएं करते हैं। उनके बारें में दिल्ली के कथित नक्सली मामलों के जानकार पत्रकार कभी कुछ क्यों नहीं लिखते हैं। ये बड़ा सवाल है। सलवा जुडूम से लेकर एसपीओ की तैनाती तक को इसी सिस्टम ने चोट पहुंचायी वहीं अब डीआरजी के जवान इनके निशाने पर हैं। साथ ही सरकार के नक्सलवाद को खत्म करने के संकल्प के खिलाफ प्रादेशिक राजधानी से राष्ट्रीय राजधानी तक नैरेटिव गढ़ने का काम शुरु हो चुका है।

अब अरुणपति सीबीआई के हवाले

शराब घोटाले की जांच में अब सीबीआई की एंट्री भी हो गयी है। शराब घोटाले के आरोपियों में से एक भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी की भूमिका की जांच सीबीआई करेगी। दरअसल अरुणपति त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ के साथ-साथ झारखण्ड में अपना प्रभाव जमा लिया था । वहां की सरकार को शराब के मामलों में सलाह देने के लिए बतौर कन्सलटेंट हर माह लाखों रुपये फीस ले रहे थे। अरुणपति के साथ यहां का सारा सिस्टम झारखण्ड में भी लगा हुआ था। चूंकि एक राज्य की एजेन्सी दूसरे राज्य में जाकर जांच नहीं कर सकती है ऐसे में दोनों राज्यों में चल रही गड़बड़ियों का जो आपसी सम्बन्ध था,उसकी जांच के लिए मामले की उस कड़ी को सीबीआई को सौंपा गया है जो दोनों राज्यों में कॉमन थी।

कुलपति पर विवाद

एशिया के सबसे बड़े कला एवं संगीत विश्वविद्यालय में हाल ही में कुलपति की नियुक्ति की गयी है। इस नियुक्ति के खिलाफ सत्ताधारी दल से जुड़े छात्र संगठन ने मोर्चा खोल दिया है। संगठन ने राज्यपाल को भेजे पत्र में कुलपति पर संगीन आरोप लगाए हैं । मध्यप्रदेश में उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ ही उनके कार्यकाल में छात्राओं के यौन शोषण के मामले का भी उल्लेख किया है। नवनियुक्त कुलपति को मध्यप्रदेश सरकार ने धारा 57 लगाकर हटाया था लेकिन वो अपने सम्पर्कों के ज़रिए छत्तीसगढ़ में नियुक्ति पाने में सफल हो गयीं । बहुत समय से मीडिया में इस बात के संकेत मिल रहे थे कि ऐसे किसी विवादास्पद व्यक्ति को छत्तीसगढ़ लाने की पुरज़ोर कोशिश हो रही है जिसमें प्रदेश के एक बड़े नेता जमकर लॉबिंग कर रहे हैं। आगे चलकर कहीं इस नियुक्ति के कारण बड़े भवन की किरकिरी ना हो जाए।

'भारतमाला' - फर्जीवाड़ा ही फर्जीवाड़ा..

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित भारतमाला प्रोजेक्ट में हुई गड़बड़ियों को लेकर सरकार ने जाँच का दायरा दो जिलों से बढ़ाकर 11 जिलों तक कर दिया है और इस मामले में पत्र लिखकर रिपोर्ट मँगवायी है। इसके बाद भी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। मुआवजा भुगतान में गड़बड़ी की शिकायतें तो लंबे समय से मिल रही थी अब इन गड़बड़ियों की रिपोर्ट में फ़र्ज़ी दावेदारों को कूटरचित दस्तावेज़ों के आधार पर 10 गुना अधिक भुगतान करके सरकार को  करोड़ों का चूना लगाने का मामला भी सामने आया है। वह भी उस ज़मीन का मुआवजा दे दिया गया जिसका मामला ज़मीन के स्वामित्व को लेकर हाईकोर्ट में लंबित था । इस मामले में तत्कालीन कांग्रेस विधायक जो इस मठ से जुड़े हुए हैं उन्होंने शिकायत भी दर्ज करायी थी । लेकिन अधिकारियों की हिम्मत देखिए कि सत्ताधारी दल के प्रभावशाली विधायक की शिकायत और हाईकोर्ट में मामला लंबित होने के बाद भी फ़र्ज़ी दावेदार को मुआवजा दे दिया गया वो भी दस गुना अधिक। जब विधानसभा में मामला उठा था तो विभागीय मंत्री ने अपनी गलती मानी थी लेकिन एक दो लोगों को सस्पेंड करके कर्तव्यों की इतिश्री कर ली गयी। सरकार ने दबाव में जाँच ईओडब्ल्यू को दी है जबकि भारत माला के पूरे मामले की जाँच सीबीआई से कराना चाहिए क्योंकि इस मामले में कम से कम 8 से 10 आईएएस अधिकारियों की भी भूमिका भी संदिग्ध है। इसके साथ ही कुछ रिटायर्ड प्रभावशाली आईएएस और जेल में बंद महिला अधिकारी भी अप्रत्यक्ष रुप से हितग्राहियों की सूची में शामिल हैं।

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