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निजी अंगों को पकड़ना और पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार के प्रयास के लिए पर्याप्त नहीं: इलाहाबाद HC ने POCSO मामले में आरोपों को संशोधित किया

By: शुभम शेखर CHECKED BY LATA
Prayagraj
3/20/2025, 12:50:37 PM
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Grabbing breasts and breaking pyjama string not enough for attempted rape Allahabad HC modifies charges in POCSO case

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि, किसी नाबालिग लड़की के निजी अंग पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे घसीटने की कोशिश करना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं बनता। कोर्ट ने इसे अपराध की 'तैयारी' और 'वास्तविक प्रयास' के बीच का अंतर बताया और निचली कोर्ट द्वारा तय गंभीर आरोप में संशोधन का आदेश दिया।

क्या है पूरा मामला ?

इस मामले की शुरुआत आशा देवी (महादेव की पत्नी) द्वारा 12 जनवरी 2022 को विशेष न्यायाधीश, POCSO अधिनियम, कासगंज के समक्ष दायर एक शिकायत से हुई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि 10 नवंबर 2021 को शाम 5 बजे, जब वह अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ अपने देवरानी के घर, पटियाली (कासगंज) से लौट रही थीं, तब गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक रास्ते में मिले।

शिकायत के अनुसार, पवन ने लड़की को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की पेशकश की, जिस पर उसकी मां आशा देवी ने भरोसा कर लिया। लेकिन रास्ते में, पवन और आकाश ने लड़की के स्तनों को पकड़ लिया, और आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी।

इस बीच, लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे गवाह सतीश और भुरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर गवाहों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब आशा देवी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने कथित रूप से गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की, तो उन्होंने अदालत में अर्जी दाखिल की।

विशेष न्यायाधीश ने इस आवेदन को धारा 200 CRPC के तहत शिकायत के रूप में स्वीकार किया और गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद 23 जून 2023 को पवन और आकाश के खिलाफ धारा 376 IPC और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत तथा अशोक के खिलाफ IPC की धारा 504 (अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत समन जारी किया। इसी आदेश के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।

अदालत का निर्णय और टिप्पणियां

न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने मामले के तथ्यों और कानूनी प्रावधानों की गहन समीक्षा के बाद आंशिक रूप से पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली। अदालत ने कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ धारा 376 IPC और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत आरोप बनाए जाने का कोई ठोस आधार नहीं है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा-

“केवल यह तथ्य कि अभियुक्तों ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ लिया, एक अभियुक्त ने पायजामे की डोरी तोड़ दी, और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप से वे भाग गए – यह अपने आप में बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं बनाता।”

अदालत ने पाया कि अभियुक्तों की हरकतें धारा 354(b) IPC (अश्लील आचरण और कपड़े उतारने की नीयत से हमला) और POCSO अधिनियम की धारा 9(m) व 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के अंतर्गत आती हैं।

इसके अलावा, न्यायालय ने अशोक के खिलाफ IPC की धारा 504 और 506 के तहत समन आदेश को बरकरार रखा, क्योंकि उनके द्वारा धमकी और गाली-गलौज के आरोप स्वतंत्र रूप से प्रमाणित होते थे।

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