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Major Supreme Court decision: No time limit can be set on decisions of the President and Governor, two-member bench decision declared unconstitutional
नई दिल्ली। राष्ट्रपति और राज्यपाल के विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा को लेकर उठे संवैधानिक प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पांच न्यायाधीशों की पीठ मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर ने कहा कि संविधान के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिल पर निर्णय लेने की कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती।
पीठ ने तमिलनाडु सरकार के संदर्भ में दी गई दो सदस्यीय पीठ के पुराने फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि "समयसीमा तय करना संविधान की मूल भावना के विपरीत है।"
समयसीमा तय करने का अधिकार नहीं: संविधान पीठ
राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए संवैधानिक संदर्भ में पूछा गया था कि, क्या सुप्रीम कोर्ट राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित कर सकता है? पीठ ने स्पष्ट कहा, "संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 राज्यपाल और राष्ट्रपति को विचारपूर्वक फैसला लेने की स्वतंत्रता देते हैं। उन पर समयसीमा थोपना संविधान संरचना के खिलाफ होगा।" 10 दिन चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने यह फैसला सुरक्षित रखा था।
राज्यपाल सिर्फ ‘रबर स्टैम्प’ नहीं
पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास तीन विकल्प होते हैं। बिल को मंजूरी देना, पुनर्विचार के लिए विधानसभा को भेजना, राष्ट्रपति के पास भेजना लेकिन यदि विधानसभा पुनर्विचार के बाद बिल दोबारा भेजे, तब राज्यपाल अनिवार्य रूप से उसे मंजूरी देने के पाबंद होंगे।
कोर्ट बिल को अपनी तरफ से मंजूरी नहीं दे सकता: SC
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि, राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा देरी को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट खुद किसी बिल को मंजूरी नहीं दे सकता न ही अनुच्छेद 142 का उपयोग करके वह राज्यपाल की भूमिका निभा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह पूरी तरह संवैधानिक पदों की स्वतंत्रता और अधिकारक्षेत्र का मामला है, जिसमें न्यायपालिका सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
केंद्र सरकार का तर्क भी माना गया
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि,"सुप्रीम कोर्ट को संविधान की व्याख्या तक सीमित रहना चाहिए। वह राजनीतिक मुद्दों का हेडमास्टर बनकर हर समस्या नहीं सुलझा सकती।" केंद्र ने कहा कि, राष्ट्रपति और राज्यपाल का दायित्व पूरी तरह संवैधानिक विवेक पर आधारित है। संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर समयसीमा नहीं रखी ताकि संवैधानिक समीक्षा निष्पक्ष और बाधारहित हो सके गोवा और पुड्डुचेरी ने भी कहा कि अदालत राज्यपाल की जगह खुद निर्णय नहीं ले सकती।
संविधान निर्माताओं की मंशा को दोहराया कोर्ट ने
संविधान पीठ ने आदेश में कहा, समयसीमा तय करना संविधान की संरचना और इसके बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ न्यायालय राज्यपाल या राष्ट्रपति पर बाध्यकारी सीमा नहीं लगा सकता। हाँ, अदालत अनुरोध या सलाह दे सकती है कि निर्णय “यथाशीघ्र” लिया जाए लेकिन कोर्ट किसी भी स्थिति में “राज्यपाल बनकर” बिल को स्वीकृत मानने का आदेश नहीं दे सकता।