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Rohingya infiltration controversy: 44 former judges enraged by CJI Surya Kant's attack, say don't defame the Supreme Court
नई दिल्ली। देश के 44 पूर्व सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा रोहिंग्या प्रवासियों पर की गई कथित टिप्पणियों को लेकर चल रहे “प्रेरित और भड़काऊ अभियान” की कड़ी आलोचना की है। न्यायाधीशों ने इसे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला प्रयास बताया है।
ओपन लेटर का जवाब
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि, 5 दिसंबर को जिस ओपन लेटर में कोर्ट की 2 दिसंबर की सुनवाई से जुड़े आरोप लगाए गए, वह तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है और सुप्रीम कोर्ट को पक्षपातपूर्ण दिखाने की एक सोची-समझी कोशिश है। उनका कहना है कि तर्कसंगत आलोचना स्वीकार्य है, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया को दुर्भावना से प्रभावित बताना लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रहार है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि सुनवाई के दौरान CJI ने केवल यह पूछा था कि कानून के तहत रोहिंग्या किस अधिकार या दर्जे का दावा कर रहे हैं, इसे अमानवीय टिप्पणी बताना पूरी तरह गलत है।
भारत का स्पष्ट रुख: रोहिंग्या कानूनी रूप से ‘शरणार्थी’ नहीं
पूर्व न्यायाधीशों ने रोहिंग्या की कानूनी स्थिति पर भी प्रकाश डालते हुए कहा, भारत 1951 के UN Refugee Convention और 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। इसलिए रोहिंग्या प्रवासी भारतीय कानून के तहत शरणार्थी नहीं माने जाते। उनकी भारत में एंट्री अधिकतर मामलों में अनियमित या अवैध है। सिर्फ दावा करने से किसी को कानूनी शरणार्थी दर्जा नहीं मिल सकता।
अदालत का रुख: हर व्यक्ति की गरिमा सर्वोपरि
न्यायाधीशों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि भारत में किसी भी व्यक्ति नागरिक या विदेशी के साथ यातना, उत्पीड़न या अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता। सबकी गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिए। अदालत की इस स्पष्ट स्थिति के बावजूद उन पर अमानवीयता का आरोप लगाना “गंभीर विकृति” बताया गया।
फर्जी दस्तावेज पर चिंता, SIT जांच का सुझाव
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि अवैध प्रवासियों द्वारा आधार, राशन कार्ड, अन्य पहचान दस्तावेज हासिल कर लेना एक गंभीर सुरक्षा और प्रशासनिक चिंता है। उन्होंने कोर्ट-नियंत्रित SIT गठित कर यह जांच कराने की आवश्यकता बताई कि, अवैध प्रवासियों ने दस्तावेज कैसे हासिल किए, कौन से अधिकारी और दलाल शामिल थे। क्या कोई संगठित नेटवर्क या तस्करी गिरोह सक्रिय हैं।
म्यांमार में भी रोहिंग्या की स्थिति जटिल
न्यायाधीशों ने कहा कि म्यांमार में भी रोहिंग्या को अवैध प्रवासी माना जाता है और उनकी नागरिकता पर विवाद है, इसलिए भारतीय अदालतों को निर्णय कानूनी वर्गीकरण के आधार पर ही लेने होंगे, न कि राजनीतिक लेबल के आधार पर।
न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की रक्षा जरूरी
पूर्व न्यायाधीशों ने इस पूरे विवाद को न्यायपालिका की वैधता को कमजोर करने का संगठित प्रयास बताया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश की अखंडता और मानव गरिमा दोनों की रक्षा संवैधानिक ढांचे के भीतर रहते हुए कर रहा है।
