

Copyright © 2025 rights reserved by Inkquest Media
अन्य समाचार

Tribunal Reforms Act: Supreme Court reprimanded the Center, struck down key provisions of the Tribunal Reforms Act 2021
नई दिल्ली। देश की न्यायिक व्यवस्था से जुड़े एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने कहा कि यह कानून ट्रिब्यूनलों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित ऐसे प्रावधान लाता है, जो न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण जैसे संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दोहराया
खंडपीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले असंवैधानिक घोषित किए गए प्रावधानों को ही नए कानून के रूप में फिर से लागू किया। कोर्ट ने इसे “कानूनी निर्णयों को दरकिनार करने और न्यायिक निर्देशों को कमजोर करने की विधायी कोशिश” बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 50 वर्ष की न्यूनतम आयु सिर्फ 4 वर्ष का कार्यकाल, अध्यक्ष और सदस्यों के लिए कड़ी आयु सीमा, सर्च-कम-सेलेक्शन कमेटी द्वारा प्रत्येक पद के लिए केवल दो नाम भेजना जैसे प्रावधान पहले भी असंवैधानिक घोषित किए गए थे। इसके बावजूद इन्हें दोबारा लागू करना न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करता है।
नया कानून आने तक पुराने निर्देश लागू रहेंगे
अदालत ने कहा कि जब तक संसद नया कानून नहीं लाती, तब तक मद्रास बार एसोसिएशन मामले में दिए गए पुराने दिशानिर्देश ही प्रभावी रहेंगे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जो नियुक्तियाँ चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, लेकिन 2021 के अधिनियम लागू होने के पश्चात की गईं, वे वैध रहेंगी; उनकी सेवा शर्तें पुराने कानूनों और पूर्व न्यायिक निर्णयों के अनुसार लागू होंगी।
मद्रास बार एसोसिएशन की याचिका पर आया फैसला
यह फैसला मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा 2021 में दायर याचिका पर आया है, जिसमें कहा गया था कि, सुप्रीम कोर्ट पहले ही तय कर चुका है कि ट्रिब्यूनल सदस्यों का कार्यकाल कम से कम 5 वर्ष होना चाहिए। 10 वर्ष के अनुभव वाले वकीलों को पात्रता से बाहर नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद सरकार ने वही प्रावधान दोहराकर कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया। खंडपीठ ने केंद्र सरकार को चार महीने के भीतर राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग गठित करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जब न्यायपालिका किसी कानून को असंवैधानिक घोषित करती है, तब संसद उसी दोषपूर्ण रूप में प्रावधानों को दोबारा लागू नहीं कर सकती। सुधार करना संविधान का दायित्व है, न कि पुराने कानून को नए नाम से पेश करना। न्यायिक स्वतंत्रता सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक सीमित नहीं है, यह ट्रिब्यूनलों और अधीनस्थ न्यायपालिका के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।