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सिर्फ विवाद आत्महत्या के लिए उकसावे का आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

By: शुभम शेखर
New Delhi
4/7/2025, 5:31:38 PM
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Supreme Court said Mere dispute is not a ground for incitement to suicide

नई दिल्ली। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के अंतर्गत आत्महत्या के लिए उकसावे (abetment of suicide) की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि केवल वैवाहिक विवाद के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि आत्महत्या और अभियुक्त के बीच प्रत्यक्ष और जानबूझकर किया गया कार्य या मंशा का स्पष्ट संबंध न हो।

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क्या है पूरा मामला ?

यह मामला उत्तराखंड के पांगड़ गांव का है, जहां 15-16 मई, 1997 की रात चेता देवी नामक महिला की ससुराल में जलकर मृत्यु हो गई। अगली सुबह उसके पिता प्रेम सिंह को उसकी मौत की सूचना देवर और एक परिचित द्वारा दी गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बताया गया कि, उसकी मौत को जलने से पहले की चोटों के कारण हुई ।

शुरुआत में हत्या का आरोप लगाया गया था, लेकिन जांच के बाद पुलिस ने रविंद्र सिंह (पति) समेत चार लोगों के खिलाफ IPC की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसावे का आरोपपत्र दाखिल किया। ट्रायल कोर्ट ने तीन सह-आरोपियों को बरी कर दिया लेकिन रविंद्र सिंह को दोषी मानते हुए सात साल की कठोर कारावास और जुर्माने की सजा दी। हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।

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दोनों पक्षों की दलीलें:

अभियुक्त के वकील ने दलील दी कि मामला IPC की धारा 107 के अंतर्गत “उकसावे” की कानूनी परिभाषा को पूरा नहीं करता। उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर पाया कि रविंद्र सिंह ने आत्महत्या के लिए उकसाया, षड्यंत्र रचा या जानबूझकर सहायता की।

वहीं, राज्य पक्ष ने कहा कि अभियुक्त मृतका को छोड़कर नागनी में अपने बच्चों और मां के साथ रह रहा था, और उसका एक अन्य महिला (भवानी देवी) से अवैध संबंध था, जिससे मृतका मानसिक रूप से पीड़ित थी और अंततः उसने आत्महत्या कर ली।

कोर्ट ने क्या कहा ?

न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने धारा 107 IPC के प्रावधानों का विश्लेषण करते हुए कहा:

“केवल यह दिखाना कि पति-पत्नी के बीच विवाद था, पर्याप्त नहीं है। अभियुक्त द्वारा आत्महत्या के लिए किसी प्रत्यक्ष उकसावे या सहायता का कोई साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं है।”

अभियोजन द्वारा स्कूल प्रिंसिपल को की गई शिकायत या पुलिस समझौता जैसी बातों को कोर्ट ने आत्महत्या और अभियुक्त के कार्य के बीच ‘सीधा संबंध’ साबित करने में असमर्थ माना। साथ ही, कोर्ट ने कथित अवैध संबंध के आरोप को गवाहों की गवाही से असिद्ध माना।

निर्णय:

कोर्ट ने पाया कि अभियुक्त द्वारा आत्महत्या के लिए कोई प्रत्यक्ष उकसावा या जानबूझकर सहायता देने का प्रमाण नहीं है। इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए रविंद्र सिंह को बरी कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि अभियुक्त की ज़मानत बॉन्ड समाप्त की जाए और रिकॉर्ड संबंधित अदालतों को लौटाया जाए।

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