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Supreme Court verdict: Now anyone can file a case, those who damage public property will not be spared.
नई दिल्ली। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामलों में अब शिकायत दर्ज कराने की पात्रता को लेकर कोई भ्रम नहीं रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 (पीडीपीए एक्ट) किसी भी नागरिक को शिकायत करने से नहीं रोकता। इसलिए सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने पर कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है।
हाई कोर्ट का फैसला रद्द, ग्राम प्रधान को शिकायत का अधिकार
यह आदेश उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से जुड़े मामले में आया, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ग्राम प्रधान द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर को अमान्य माना था। हाई कोर्ट का कहना था कि राजस्व कानून की कुछ धाराओं के अनुसार ग्राम प्रधान शिकायत करने का अधिकृत अधिकारी नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 18 नवंबर को जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले में इसे खारिज कर दिया।
सीआरपीसी में भी कोई रोक नहीं- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2012 के प्रसिद्ध फैसले डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी बनाम डॉ. मनमोहन सिंह का हवाला देते हुए कहा कि सीआरपीसी में भी कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जो किसी नागरिक को अपराध की शिकायत करने से रोकता हो। इस सिद्धांत के आधार पर पीडीपीए एक्ट में भी शिकायतकर्ता की पात्रता को सीमित करने का कोई प्रावधान नहीं पाया गया।
मामला क्या था?
आजमगढ़ के सिधारी थाना क्षेत्र में ग्राम प्रधान की शिकायत पर नौशाद और अन्य आरोपियों पर IPC, SC-ST एक्ट और पीडीपीए एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ। विशेष अदालत ने आरोपपत्र पर संज्ञान लेते हुए समन जारी किया, जिसे हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजस्व कानून की धाराएं दीवानी प्रकृति की हैं और सार्वजनिक संपत्ति नुकसान को लेकर एफआईआर दर्ज करने में बाधा नहीं बनतीं।