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Winter session heats up: Muslim MPs and ruling party debate heated up over 'Vande Mataram'
BREAKING NEWS: संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार को ‘वंदे मातरम’ को लेकर जोरदार बहस छिड़ गई। सदन में बैठक की शुरुआत ‘वंदे मातरम’ से करने का सुझाव आते ही माहौल गरम हो गया और सत्ता–विपक्ष दोनों तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। यह मुद्दा कुछ ही मिनटों में राजनीतिक और वैचारिक टकराव का रूप ले बैठा।
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने स्पष्ट कहा कि किसी भी सांसद या नागरिक को ‘वंदे मातरम’ गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार संविधान इस प्रकार की कोई अनिवार्यता नहीं रखता और देशभक्ति की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत अधिकार व स्वतंत्रता का विषय है। ओवैसी ने जोर देकर कहा कि किसी खास गीत को देशभक्ति की पहचान बनाना उचित नहीं होगा।
कांग्रेस सांसद इकरा चौधरी
कांग्रेस सांसद इकरा चौधरी ने भी इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ‘वंदे मातरम’ के कुछ हिस्से ऐसे हैं जिन्हें उनका समुदाय धार्मिक रूप से स्वीकार नहीं करता। उनका कहना था कि राष्ट्रीय एकता को किसी विशेष सांस्कृतिक या धार्मिक प्रतीक में सीमित करना विविधता की भावना के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि देशभक्ति को लेकर किसी भी नागरिक पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए।
कश्मीरी नेता आग़ा सैयद रुहुल्लाह ने बयान दिया
कश्मीरी नेता आग़ा सैयद रुहुल्लाह ने बयान दिया कि उन्हें राष्ट्रगान के प्रति पूरी निष्ठा है, लेकिन ‘वंदे मातरम’ गाने को बाध्यकारी बनाना सही नहीं। उन्होंने कहा कि संसद को भारत की बहु-सांस्कृतिक पहचान का सम्मान करना चाहिए और ऐसे मुद्दों पर सहमति से आगे बढ़ना चाहिए। उनके अनुसार, किसी गीत को लेकर विवाद पैदा करना अनावश्यक राजनीतिक ध्रुवीकरण है।
कई सांसदों ने विपक्षी नेताओं की आपत्तियों को अनुचित बताया
दूसरी ओर सत्तारूढ़ दलों के कई सांसदों ने विपक्षी नेताओं की आपत्तियों को अनुचित बताया। उनका तर्क था कि ‘वंदे मातरम’ स्वतंत्रता आंदोलन की भावना से जुड़ा हुआ है और इसे अस्वीकार करना सही संदेश नहीं देता। कुछ सदस्यों ने इसे राष्ट्र की गरिमा और गौरव का प्रतीक बताते हुए कहा कि संसद में बैठे प्रतिनिधियों को इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
लगातार बढ़ते विवाद को देखते हुए सदन में कुछ देर के लिए हंगामा भी हुआ, जिसके बाद अध्यक्ष को हस्तक्षेप करना पड़ा। अध्यक्ष ने कहा कि किसी भी सांसद को कोई गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से तूल देना भी उचित नहीं। उन्होंने सभी सदस्यों से शांतिपूर्वक चर्चा करने की अपील की।
‘वंदे मातरम’ पर यह बहस आने वाले दिनों में और भी तेज हो सकती है। यह मुद्दा संवैधानिक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और प्रतीकात्मक राष्ट्रभक्ति से जुड़ा हुआ है, जिसे विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से जनता के सामने पेश कर सकते हैं।