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21 former judges wrote a letter to CJI Attempt is being made to end public trust in judiciary
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट्स के 21 पूर्व न्यायाधीशों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिशों पर चिंता जताई है।
उन्होंने कहा कि कुछ गुट दबाव, गलत सूचनाओं और सार्वजनिक अपमान के जरिए न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं और ऐसे प्रयास बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक महत्व के मामलों में ऐसा खासतौर पर किया जाता है। बता दें कि, इससे पहले 28 मार्च 2024 को देश के 600 से अधिक वकीलों ने CJI को पत्र लिखकर न्यायपालिका पर उठते सवाल को देखते हुए वो चिंता जताई थी।
पूर्व न्यायाधीशों ने लिखा, “यह हमारे संज्ञान में आया है कि संकीर्ष राजनीतिक हितों और निजी फायदों से प्रेरित ये गुट हमारी न्यायिक व्यवस्था में जनता का भरोसा खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। इनके तरीके कई तरह के और कपटी हैं और कोर्ट और न्यायाधीशों की ईमानदारी पर सवाल उठाकर ये न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे कार्य न्यायपालिक की पवित्रता का अपमान करते हैं और निष्पक्षता के सिद्धांत को सीधी चुनौती देते हैं।”
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि इन समूहों की रणनीति बहुत परेशान करने वाली है, जिसमें न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए निराधार बातें फैलाने से लेकर अपने पक्ष में न्यायिक फैसलों के लिए प्रयास करना तक शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ व्यक्तियों से संबंधित मामलों समेत सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक महत्व के मामलों में ऐसा व्यवहार खासतौर पर किया जाता है, जिनमें वकालत और पैंतरेबाजी के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।
पत्र में आगे कहा गया, “हम न्यायपालिका के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं और इसकी गरिमा एवं निष्पक्षता बचाए रखने के लिए हर तरह की मदद करने के लिए तैयार हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस चुनौतीपूर्ण समय में आपका मार्गदर्शन और नेतृत्व न्याय एवं समानता के स्तंभ के तौर पर न्यायपालिका की सुरक्षा करेगा।”
इससे पहले 28 मार्च 2024 को हरीश साल्वे, मनन कुमार मिश्रा, आदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होला, स्वरुपमा चतुर्वेदी जैसे बड़े नामों सहित 600+ वकीलों ने CJI को चिट्ठी लिखी थी। इसमें कहा गया था कि देश का एक ख़ास वर्ग अदालत पर दबाव डालना चाहता है और इसकी स्वायत्तता कम करने की कोशिश में है। चिट्ठी में कहा गया था कि राजनीतिक लोगों से जुड़े मामले और भ्रष्टाचार से संबंधित केसों में ये अधिक हो रहा है।
वकीलों ने कहा था कि इस खास ग्रुप कई तरीकों से न्यायपालिका के कामकाज को प्रभावित करने की कोशिश करता है, जिनमें न्यायपालिका के तथाकथित सुनहरे युग के बारे में गलत नैरेटिव पेश करने से लेकर अदालतों की मौजूदा कार्यवाहियों पर सवाल उठाना और अदालतों में जनता के विश्वास को कम करना शामिल हैं। वकीलों ने कहा था कि ये खास समूह चुनावों के दौरान अधिक सक्रिय हो जाता है।
इन वकीलों के पत्र सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था, “दूसरों को डराना-धमकाना और दबाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति रही है। 5 दशक पहले ही उन्होंने ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ की बात की थी। वो बेशर्मी से दूसरों से तो प्रतिबद्धता चाहते हैं, लेकिन खुद राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचते हैं।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा था, “इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतवासी उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं।” दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इशारा न्यायपालिका में अपनी चलाने की कोशिश में लगे रहने वाले कांग्रेस समर्थित वकीलों के गिरोह की तरफ था।


