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Anticipatory bail plea of former AG Satish Chandra Verma rejected
रायपुर। नान घोटाला मामले में ACB-EOW द्वारा दर्ज नई FIR मामले में पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को बड़ा झटका लगा है। रायपुर की ACB कोर्ट में उनके द्वारा लगाई गई अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई है। मामले की सुनवाई जिला सत्र न्यायाधीश निधि शर्मा द्वारा की गई। पूर्व महाधिवक्ता ने यह याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता किशोर भादुड़ी के माध्यम से लगाई थी।
बता दें कि, आज बुधवार के दिन लंबी बहस के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था जिसे अभी जारी किया गया है। उनके वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता किशोर भादुड़ी ने बताया कि वह अब एसीबी कोर्ट के इस फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती देंगे।
अपना फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा-
'आरोपी सतीश चंद्र वर्मा जिनकी इस अपराध में महत्वपूर्ण भूमिका है। इनके सहयोग के बिना इस अपराध को अमली जामा पहनाया जाना संभव नहीं था, को जमानत का लाभ दिया जाना उचित नहीं है क्योंकि जमानत प्राप्त होने पर वह स्वतंत्र रूप से इस अपराध के साक्ष्य को मिटाने एवं नवीन अपराध किए जाने की ओर अग्रसर हो सकती है। आरोपी एक साधन संपन्न एवं आर्थिक रूप से सशक्त तथा प्रभावी व्यक्ति है। जमानत का लाभ दिये जाने से वह साक्ष्य एवं साक्षियों को प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त उसके विदेश पलायन की भी संभावना विद्यमान है। जहां इस प्रकरण की विवेचना प्रारंभ ही नहीं हुई है आरोपी को जमानत का लाभ दिये जाने से उसके द्वारा साक्ष्य एवं साक्षियों को प्रभावित करने की संभावना विद्यमान रहेगी।'
कोर्ट ने अपने फैंसले में कहा - 'अपराध अत्यंत गंभीर प्रकृति का है। अपराध में आरोपी सतीश चन्द्र वर्मा की भूमिका स्पष्ट रूप से परिलक्षित है। अतः उपरोक्त तथ्यों एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जमानत के संबंध में पारित सिद्धांतों के परिप्रेक्ष्य में अभियुक्त की ओर से प्रस्तुत जमानत आवेदन निरस्त किये जाने हेतु प्रतिवेदन सादर प्रस्तुत है। अतः अभियुक्त की ओर से प्रस्तुत जमानत आवेदन निरस्त किये जाने का निवेदन किया गया है।'
'उक्त अपराध क्रमांक 49/2024 की केस डायरी में उपलब्ध सामग्री के अवलोकन से स्पष्ट है कि आवेदक / अभियुक्त के विरूद्ध महाधिवक्ता के पद पर पदस्थ रहते हुए अन्य अभियुक्तगण के साथ मिलकर आपराधिक षड़यंत्र करते हुए लोक कर्तव्य का पालन उचित रूप से न करने संबंधी आरोप है। आवेदक / अभियुक्त के विरूद्ध आरोपित अपराध की गंभीरता एवं केस डायरी में उपलब्ध तथ्यों, परिस्थितियों व सामग्री पर समग्र रूप से विचार करने से आवेदक / अभियुक्त को अग्रिम जमानत का लाभ दिये जाने हेतु यह उपयुक्त मामला होना दर्शित न होने से विचारोपरांत आवेदक के द्वारा प्रस्तुत उक्त अग्रिम जमानत आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 480 BNSS स्वीकार किये जाने योग्य न होने से एतद्द्वारा निरस्त किये जाते हैं।'
'आदेश की एक प्रति सहित केस डायरी संबंधित थाना
प्रभारी, ACB, रायपुर को वापस प्रेषित की जावे।
परिणाम दर्ज कर प्रकरण अभिलेखागार भेजा जावे।'
बता दें कि, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि छत्तीसगढ़ के नागरिक आपूर्ति निगम (पीडीएस) घोटाले में आरोपी दो वरिष्ठ नौकरशाह अनिल कुमार टुटेजा और आलोक शुक्ला "अक्टूबर 2019 में शुक्ला को जमानत देने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के संपर्क में थे"। ईडी ने दावा किया था कि तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा दोनों और न्यायाधीश के बीच संपर्क बनाए हुए थे। ED ने अदालत में कहा था कि, तीनों के खिलाफ मुकदमा शुरू करने पर्याप्त सबूत है। इसी के बाद अब ACB-EOW ने तीनों के खिलाफ नई FIR दर्ज की है।