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Bihar Elections 2025: Record 64.66% voter turnout in the first phase, Nitish Kumar's tension increases - will the power equation change again?
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग मंगलवार को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गई। 18 जिलों की 121 सीटों पर कुल 64.66 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो राज्य के चुनावी इतिहास में एक रिकॉर्ड है। 2020 के पहले चरण की तुलना में इस बार करीब 8.5 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ है।
यह आंकड़ा न केवल चुनावी रुझानों को रोमांचक बनाता है, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार के लिए सियासी टेंशन भी बढ़ा रहा है। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में जब-जब मतदान प्रतिशत पांच प्रतिशत से अधिक बढ़ा है, तब-तब सत्ता परिवर्तन हुआ है।
रिकॉर्ड वोटिंग ने बढ़ाई उत्सुकता
चुनाव आयोग के अनुसार, इस बार 64.66 प्रतिशत वोटिंग दर्ज हुई। 2020 के पहले चरण में यह आंकड़ा 55.68 प्रतिशत था। यानी 8.98 प्रतिशत की वृद्धि।
ऐतिहासिक रूप से देखें तो 1967, 1980, 1990 और 2005 जैसे चुनावों में वोटिंग पैटर्न में बदलाव के साथ सत्ता परिवर्तन हुआ है।
पिछले पैटर्न से सबक
1967: वोटिंग 7% बढ़ी और कांग्रेस की जगह पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
1980: 6.8% ज्यादा मतदान, कांग्रेस की वापसी।
1990: 5.8% ज्यादा वोटिंग, कांग्रेस सत्ता से बाहर और लालू यादव बने सीएम।
2005: 16.1% कम वोटिंग, लालू-राबड़ी राज खत्म, नीतीश कुमार बने मुख्यमंत्री।
इतिहास बताता है कि बिहार में हर बार 5% से ज्यादा वोटिंग बढ़ने या घटने से सत्ता का पलड़ा बदल गया है।
पहले चरण में सबसे ज्यादा मुकाबले वाले इलाके
पहले चरण में मिथिलांचल, कोसी, मुंगेर, सारण और भोजपुर बेल्ट की सीटों पर मतदान हुआ।
इन 121 सीटों पर कुल 1314 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो गई है।
किसके पक्ष में जा सकती है वोटिंग?
इस बार एनडीए और महागठबंधन दोनों के समीकरण बदले हुए हैं। एनडीए : जेडीयू (57 सीटें), बीजेपी (48), एलजेपी (रामविलास) 13, आरएलएम 2, हम 1 सीट पर मैदान में। महागठबंधन : आरजेडी (72), कांग्रेस (24), सीपीआई (6), सीपीएम (3), माले (14), वीआईपी (6), आईआईपी (2)। कुल मिलाकर 104 सीटों पर सीधा मुकाबला है, जबकि 17 सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिली।
नीतीश के लिए चुनौतीपूर्ण संकेत
2020, 2015 और 2010 तीनों चुनावों में नीतीश कुमार को बढ़ते वोटिंग प्रतिशत का लाभ मिला था, परंतु तब वृद्धि 2–3 प्रतिशत की ही थी। इस बार जब वोटिंग में 8.5 प्रतिशत की उछाल आई है, तो यह सत्ता विरोधी लहर या बदलाव की चाह का संकेत हो सकता है।