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Delhi High Court's big decision: Patanjali Chyawanprash advertisement banned, accused of defaming Dabur
नई दिल्ली। बाबा रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने गुरुवार को पतंजलि च्यवनप्राश के विज्ञापन पर अस्थायी रोक लगाते हुए निर्देश दिया है कि कंपनी अब डाबर के उत्पादों को बदनाम करने वाले या भ्रामक प्रचार नहीं कर सकती। यह आदेश Dabur की याचिका पर पारित किया गया है।
कोर्ट में Dabur की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील संदीप सेठी ने तर्क दिया कि पतंजलि द्वारा जारी किए जा रहे विज्ञापन डाबर च्यवनप्राश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि उपभोक्ताओं को यह भ्रम दे रहा है कि केवल वही असली च्यवनप्राश बनाते हैं, बाकी सभी 'सामान्य' और 'अप्राकृतिक' हैं। इससे डाबर की ब्रांड छवि को नुकसान पहुंच रहा है।
डाबर ने बताया कि, नोटिस मिलने के बावजूद पतंजलि ने बीते कुछ हफ्तों में 6,182 बार ऐसे विज्ञापन प्रसारित किए। इतना ही नहीं, पतंजलि अपने प्रोडक्ट में 51 जड़ी-बूटियों की बात करता है, जबकि वास्तविक संख्या 47 है। डाबर ने इसे उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाला और झूठा प्रचार बताया।
पतंजलि की तरफ से कोर्ट में वरिष्ठ वकील राजीव नायर और जयंत मेहता पेश हुए। उन्होंने तर्क दिया कि उनका उद्देश्य किसी ब्रांड को बदनाम करना नहीं, बल्कि अपने उत्पाद की विशेषताओं को उजागर करना है। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को फिलहाल संतोषजनक नहीं माना और विज्ञापन पर अस्थायी रोक जारी कर दी।
डाबर इंडिया ने कोर्ट को बताया कि च्यवनप्राश सेगमेंट में उनकी बाजार हिस्सेदारी 61.6% है, यानी यह बाजार में अग्रणी ब्रांड है। ऐसे में पतंजलि द्वारा डाबर को 'साधारण' बताना उनके ब्रांड और व्यवसाय पर सीधा हमला है। डाबर ने यह भी आरोप लगाया कि पतंजलि के च्यवनप्राश में पारा (Mercury) जैसे खतरनाक तत्व पाए गए हैं, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि "प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होनी चाहिए, लेकिन भ्रामक प्रचार और अपमानजनक टिप्पणियों के जरिए बाज़ार में बढ़त पाना अनुचित है।" मामले की अगली सुनवाई अब 14 जुलाई 2025 को होगी।