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वरिष्ठ पत्रकार डॉ. शिरीष चन्द्र मिश्रा की कलम से..'शो मस्ट गो ऑन' का 36वां एडिशन- 'शराब घोटाले में नहीं मिल रही है अनुमति'

By: डॉ. शिरीष चन्द्र मिश्रा
Raipur
3/30/2025, 7:56:49 AM
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From the pen of senior journalist Dr Shireesh Chandra Mishra 36th edition of Show Must Go On Permission not being given in liquor scam

शराब घोटाले में नहीं मिल रही है अनुमति

शराब घोटाले में 18 आबकारी अधिकारी ऐसे हैं जिन पर होलोग्राम की जिम्मेदारी थी। जब डिस्लरीज को घोटाले का आरोपी बना दिया गया है तो क्या जिन पर जिम्मेदारी थी, उन्हें छोड़ा जा सकता है ? ये ही वो अधिकारी थे जिन पर सरकार की ओर से हर सही-गलत की जिम्मेदारी थी। लेकिन इनके रहनुमा इस आधार पर इनके खिलाफ कार्रवाई की अनुमति को रोकने में सफल हो गए, कि क्या पूरे विभाग को ही आरोपी बना दें और विभाग बंद कर दें। यदि इन अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होगी तो जीरो टॉलरेन्स की नीति का क्या होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि जब शराब घोटाले में वर्तमान सरकार का कोई लेना-देना नहीं तो ऐसे भ्रष्ट और आपराधिक षड़यंत्रों में शामिल अधिकारियों के प्रति दरियादिली दिखाने से गलत संदेश ही जायेगा जैसे कि सीजीएमएससी पूर्ववर्ती सरकार का घोटाला है लेकिन कुछ लोगों ने आरोपियों और घोटाले की रकम को रिलीज करवाने का प्रयास करके अपनी किरकिरी करा ली है जिसके आधार पर कांग्रेस के चिकित्सा प्रकोष्ठ ने उन पर भी कार्रवाई की मांग तक कर दी है।

नहीं लगा सही दांव

छत्तीसगढ़ कैडर के सचिव स्तर के अधिकारी को दिल्ली में गृह मंत्रालय में अच्छी पोस्टिंग मिल गयी है। इसके साथ ही एक आईएएस दम्पत्ति का भी केन्द्र सरकार में इम्पैनलमेन्ट हो गया है। इन दोनों घटनाक्रमों से प्रदेश की एक लॉबी खासी परेशान है जिसने पहले अपने ग्रुप के अधिकारी को केन्द्र के एक ताकतवर मंत्री के स्टॉफ में रखवाया था। यही ग्रुप अपने एक अधिकारी जिनका हाल ही में एक विवाद में नाम सामने आया था, उसके इम्पैनल होने के बाद उसे उसी पद पर बैठाने की जुगत लगा रहे थे जहां पर सचिव स्तर के अधिकारी की पोस्टिंग हो गयी है।

सीजीएमएससी

सीजीएमएससी घोटाले में फिलहाल दो आईएएस रॉडार पर हैं लेकिन प्रारम्भिक पूछताछ के बाद मामला आगे नहीं बढ़ा है। दोनों पर आगे की कार्रवाई के लिए राज्य सरकार की अनुमति का इंतजार किया जा रहा है। लेकिन इस मामले में दो और आईएएस के नामों की चर्चा है। फिलहाल दोनों ही केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चले गए हैं। दोनों ही अधिकारी एक ही मंत्रालय में पदस्थ हैं इनमें से एक मंत्री के स्टॉफ में हैं तो दूसरे अधिकारी मंत्रालय में पदस्थ हैं। अब देखने वाली बात होगी कि क्या ईओडब्ल्यू इन दोनों अधिकारियों से पूछताछ की हिम्मत जुटा पाता है या नहीं या इनसे पूछताछ के लिए शुरुआती कागजी कार्रवाई कर पाता है या नहीं।

डीएमएफ का खुला खाता

पॉवर प्ले में डीएमएफ का खुला खाता नये या अपेक्षाकृत कम अनुभवी अधिकारियों के लिए परेशानी बन रहा है। दरअसल, ईडी ने डीएमएफ घोटाले में सिर्फ कोरबा जिले की जांच की और......ऐसा घोटाला अन्य जिलों में भी हो सकता है....ऐसा लिखकर रास्ता खुला छोड़ दिया। बताया जाता है कि ऐसा खुला रास्ता छोड़ने से कम अनुभवी आईएएस अधिकारी परेशान हैं। उन्हें लगता है कि कहीं देर-सबेर उन्हें फंसाया जा सकता है। दरअसल, प्रदेश में ऐसे अधिकारियों की मौज है जिन पर किसी का हाथ है फिर चाहे वो हाथ मंत्री का हो या अधिकारी या फिर संगठन के किसी पदाधिकारी का। ऐसे बिना संरक्षण वाले अधिकारी डर-डर के जीवन जी रहे हैं।  

राष्ट्रपति का सम्बोधन

राष्ट्रपति महोदया का सम्बोधन बहुत ही टचिंग कहा जायेगा। उन्होंने साफ तौर पर छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखण्ड को एक बताया। जब नेता-प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महन्त ने कहा कि वो बरगढ़, सम्बलपुर और कालाहांडी को छत्तीसगढ़ का ही हिस्सा मानते हैं तो राष्ट्रपति ने भी कहा कि वो रायपुर को ओडिशा का एक हिस्सा मानती हैं। जिस तरह से महन्त छत्तीसगढ़ को ओडिशा से कनेक्ट करते जा रहे थे वैसे ही राष्ट्रपति महोदया ने आगे बढ़कर ओडिशा को छत्तीसगढ़ से कनेक्ट करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। विधानसभा के अंदर अपने सम्बोधन में उन्होंने छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया भी कहा और अन्त में जय छत्तीसगढ़ का नारा भी बुलन्द किया। उन्होंने यहां तक कहा कि भारत माता को सच्चे रुप में छत्तीसगढ़ महतारी के रुप में इस प्रदेश में माना जाता है। दूसरी ओर विधानसभा के विशेष सत्र में राष्ट्रपति महोदया, राज्यपाल, विधानसभा अध्य़क्ष, मुख्यमंत्री और नेता-प्रतिपक्ष में से किसी ने अपने सम्बोधन में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम भी नहीं लिया।

सब इंस्पेक्टर्स की कैसे होगी ट्रेनिंग ?

राज्य में अलग-अलग कारणों से सब-इंस्पेक्टर्स की भर्ती और फिर नियुक्ति प्रक्रिया रुकी रही। फिर अचानक से सारे अवरोध दूर हो गए और करीब 1000 सब-इंस्पेक्टर्स को नियुक्ति-पत्र मिल गए जो मुख्यमंत्री ने स्वयं अपने हाथों से चयनित उम्मीदवारों को दिए। लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है वो है इन सबकी ट्रेनिंग की। कोई भी प्रशिक्षण अकादमी खास-तौर पर जब अधिकारी वर्ग को ट्रेनिंग के हिसाब से डिजाइन की जाती है तो अधिक से अधिक 200 लोगों तक की ट्रेनिंग के हिसाब से ट्रेनर,रुकने और खाने-पीने के हिसाब से बनायी जाती है। यदि इतने सारे लोग एक साथ सिलेक्ट होकर आ गए हैं तो इन्हें ट्रेनिंग कौन देगा और यदि मौजूदा ट्रेनर ट्रेनिंग भी दे दे तो कैसी ट्रेनिंग होगी इसका अंदाज लगाया जा सकता है, क्योंकि ट्रेनिंग लेने वालों की संख्या डिजाइन संख्या से पांच गुना अधिक है। पुलिस विभाग के सामने सबसे बड़ा सवाल अब ट्रेनिंग का नहीं इनके लिए ट्रेनर की व्यवस्था करना हो गया है।

मंत्रिमंडल विस्तार और प्रशासनिक फेरबदल

राष्ट्रपति का दौरे के साथ ही विधानसभा के बजट सत्र का समापन हो गया है और 30 मार्च को प्रधानमंत्री का छत्तीसगढ़ दौरा हो जायेगा। इसके बाद गृह-मंत्री अमित शाह का अप्रैल के पहले हफ्ते दौरा प्रस्तावित है, जिसमें मंत्रिमंडल के विस्तार पर मुहर लग जायेगी। यदि हरियाणा फार्मूले को लागू किया गया तो 3 विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। जिसमें दो पुराने और एक नये विधायक को मौका मिल सकता है। तीसरे मंत्री के रुप में बस्तर से किसी की एंट्री हो सकती है। वहीं विधानसभा के बजट सत्र में पांच मंत्रियों का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा है ऐसे में इन पांच मंत्रियों में से 2 से 3 मंत्रियों की छुट्टी भी हो सकती है। लेकिन विधानसभा में सरकार की परेशानी खड़े करने वाले विधायकों को शायद ही मौका मिले। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर प्रशासनिक औऱ पुलिस फेरबदल भी संभावित है वहीं निगम, मंडल और आयोगों में भी नियुक्तियां होंगीं। यानी अप्रैल से नये वित्तीय वर्ष में सरकार और प्रशासन का नया स्वरुप सामने आयेगा । वैसे भी मुख्यमंत्री ने पिछले सवा साल में जिस तेजी से कड़े निर्णय लेकर बड़ी कार्रवाईयों को अंजाम दिया है उसे देखकर लगता है कि मुख्यमंत्री औऱ बड़े एवं कड़े फैसले करेंगें।

छापे पर छापे

पूर्व मुख्यमंत्री के भिलाई निवास पर सीबीआई की रेड हो गयी। इसके पहले ईडी ने रेड मारी थी। पूर्व मुख्यमंत्री का आरोप है कि उनके रायपुर स्थित सरकारी आवास पर उनकी ,उनके परिवारजनों और उनके स्टॉफ की गैर मौजूदगी में छापा मारा गया। जिसकी जिम्मेदारी उनकी नहीं है। एक, पुलिस अधिकारी जिसकी तारीफ में उन्होंने कहा कि उसने सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए तो फिर उनके ही कार्यकाल में उस अधिकारी को पनिशमेन्ट पोस्टिंग क्यों दी गयी। दूसरा ,जिस अधिकारी की वो तारीफ कर रहे हैं उसका एक नेशनल न्यूज चैनल ने स्पाई कैमरे से जो इंटरव्यू किया था , उसके बाद ही उसका ट्रांसफर किया गया। इंटरव्यू में पुलिस अधिकारी ने क्या-क्या कहा वो भी बड़ा दिलचस्प है। जब वह अधिकारी आपकी ही निगाह में इतना काबिल अफसर था तो उसे बड़े जिले से हटाकर छोटे जिले क्यों भेजा गया। महादेव एप मामले में कहानियां ही कहानियां हैं। वेब सीरीज का जोरदार मसाला है। ईओडब्ल्यू में मामला दर्ज होने से लेकर सीबीआई को ट्रांसफर होने तक इतना कुछ हुआ है जो लिखा भी नहीं जा सकता है।

मोदी जी का सीना

मंत्री बनने की कतार में भाजपा के एक विधायक ने हंसी-ठिठौली में ही सही मोदी जी का सीना और चौड़ा कर दिया है। दरअसल हास-परिहास करने में माहिर एक विधायक जी संगठन के एक बड़े पदाधिकारी जो पहले किसी निगम /मण्डल के अध्यक्ष रह चुके हैं, उनसे मिलने पार्टी कार्यालय गए। वहां उन्होंने मजाक में कह दिया कि मोदी जी का सीना अब 56 नहीं 60 इंच का हो गया है। पदाधिकारी ने भी कौतुहलवश पूछ ही लिया कि कैसे मोदी जी का सीना 60 इंच का हो गया है तो विधायक जी ने तुरंत ही कहा कि रायपुर में 70 में से 60 पार्षद भाजपा के जीतकर आए हैं ,जब मोदी जी को ये समाचार मिला होगा तो खुशी के मारे उनका सीना चौड़ा होकर 60 इंच का हो गया होगा।

सरकार के पथ-प्रदर्शक

कबीरदास जी कह गए हैं कि ..निंदक नियरे राखिये....। हर राजनीतिक दल में ऐसे लोग होते हैं जो अपनी पार्टी और अपनी पार्टी की छवि को साफ-सुथरा रखने में यकीन करते हैं। हालांकि राजनीति में शुचिता की बात करने, उस पर अमल करने औऱ उसके लिए सतत प्रयत्नशील रहने वाले लोग अब ना के बराबर ही बचे हैं। जो बचे हैं उन्हें उनकी ही पार्टी और सरकारों में सच को सच कहने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे लोग उन लोगों के निशाने पर होते हैं जो या तो स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं या फिर उसमें उनकी हिस्सेदारी होती है। भाजपा के संगठन में कई ऐसे लोग हैं जिनके कारण भारतमाला परियोजना घोटाला ,डीएमएफ घोटाला, सीजीएमएससी और शराब घोटाला खुला लेकिन आरोपियों और दोषियों पर जैसी कार्रवाई होनी चाहिए थी नहीं हुई। एक पूर्व मंत्री भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को शिद्दत से लड़ते हैं। 1972 से लगातार चुनाव रण में भाग्य आजमा रहे हैं ,80 वर्ष पार कर चुके हैं और कमर झुक गयी है,लेकिन वो नहीं झुके हैं। पीएससी की जांच के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया , आरोपियों को अंदर करवाया और अब कैम्पा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जीरो टॉलरेंस की नीति के लिए सरकार को ऐसे लोगों को अपना सहयोगी बनाना चाहिए।

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