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Liking a social media post is not an offence under Section 67 of the IT Act Allahabad HC
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को केवल “लाइक” करना अश्लील या भड़काऊ सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण नहीं माना जा सकता। न ही इस पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008 की धारा 67 लागू होती है। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने आरोपी इमरान खान के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
पूरा मामला आगरा का है जहां याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इमरान खान ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश पोस्ट किए जिससे मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोगों की भीड़ बिना अनुमति के एकत्रित हो गई, जिससे शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका जताई गई।
अरोपी के खिलाफ प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67, और आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज की गई थी।
अधिवक्ता अभिषेक अंकुर चौरसिया और दीवान सैफुल्लाह खान ने दलील दी कि साइबर क्राइम सेल की रिपोर्ट के अनुसार, इमरान खान के फेसबुक अकाउंट पर कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं पाई गई। उन्होंने यह भी बताया कि सह-आरोपी इमरान काज़ी के पक्ष में 18.10.2023 को पारित आदेश में यह स्पष्ट किया गया था कि विवेचक द्वारा केवल चौधरी फरहान उस्मान द्वारा डाली गई एक पोस्ट को सह-आरोपी ने “लाइक” किया था, न कि साझा या प्रकाशित किया।
वहीं, शासकीय अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के फेसबुक अकाउंट पर कोई सामग्री नहीं मिली क्योंकि उसे हटा दिया गया था, लेकिन केस डायरी में व्हाट्सएप तथा अन्य सोशल मीडिया पर कुछ सामग्री होने की बात उल्लेखित है।
“अश्लील सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण एक दंडनीय अपराध है… किसी पोस्ट या संदेश को ‘प्रकाशित’ तब माना जाएगा जब उसे पोस्ट किया जाए, और ‘प्रसारित’ तब जब उसे साझा या रिट्वीट किया जाए।” इस आधार पर कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि किसी पोस्ट को “लाइक” करना न तो प्रकाशन है, न ही प्रसारण, अतः यह धारा 67 के अंतर्गत नहीं आता।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि, “अभिलेख में ऐसा कोई संदेश नहीं है जो भड़काऊ प्रकृति का हो, और चौधरी फरहान उस्मान द्वारा डाले गए संदेश को केवल लाइक करना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 या किसी अन्य आपराधिक अपराध के अंतर्गत दंडनीय नहीं है। ऐसे में याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई अपराध सिद्ध नहीं होता।”
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, आगरा के समक्ष लंबित वाद को रद्द कर दिया गया। साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि यदि विधिक रूप से उचित हो तो अन्य सह-आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाही जारी रखी जा सकती है।