Copyright © 2025 rights reserved by Inkquest Media
अन्य समाचार
Raipur News: Today there will be a grand 'Bahuda' Yatra of 'Lord Jagannath'; Shrimandir will return after nine days, atmosphere of excitement in the capital
रायपुर। अपने नौ दिनों के दिव्य विश्राम के बाद, भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ आज अपनी मौसी देवी गुंडिचा के मंदिर से अपने मूल निवास, श्रीमंदिर लौटेंगे। इस वापसी यात्रा को बाहुड़ा रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है, और इसे लेकर भक्तों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है। रायपुर और महासमुंद जिलों में इस यात्रा को धूमधाम से निकालने की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
राजधानी रायपुर में दोपहर 3 बजे से भगवान की दिव्य वापसी यात्रा की शुरुआत होगी। बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्ति और उल्लास के साथ इस यात्रा में शामिल होने के लिए उमड़ेंगे। छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, भाजपा रायपुर जिला अध्यक्ष रमेश ठाकुर सहित कई गणमान्य अतिथि इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे।
जगन्नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष पुरंदर मिश्रा ने बताया कि यह आयोजन श्रद्धालुओं की भावनाओं का प्रतिबिंब है और हर वर्ष इसे और भव्य स्वरूप देने का प्रयास किया जाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भगवान जगन्नाथ की कृपा से यह आयोजन पूरी भक्ति, व्यवस्था और समर्पण भाव से संपन्न होगा।
राजधानी रायपुर के अलावा, महासमुंद जिले के पिथौरा में भी आज वापसी यात्रा निकाली जाएगी। सुबह से ही मंदिर परिसर में भजन, कीर्तन और पूजा-पाठ का माहौल बना हुआ है, जो भक्तों के उत्साह को दर्शाता है।
'बाहुड़ा' शब्द ओड़िया भाषा का है, जिसका अर्थ होता है 'वापसी'। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी अपने भव्य रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर से वापस अपने मूल निवास श्रीमंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा भी रथ यात्रा की तरह ही भव्य और उत्साहपूर्ण होती है, जिसमें एकमात्र अंतर दिशा का होता है - यह यात्रा वापसी की होती है।
भगवान बलभद्र का रथ 'तालध्वज', देवी सुभद्रा का रथ 'दर्पदलन' और भगवान जगन्नाथ का रथ 'नंदीघोष' पहले ही दक्षिण मोड़ ले चुके हैं। ये तीनों रथ अब गुंडिचा मंदिर के नकाचना द्वार के पास खड़े हैं, वापसी यात्रा के आरंभ की प्रतीक्षा में।
रथ गर्भगृह में पहुंचने के बाद भगवान श्रीजगन्नाथ चीर निद्रा में चले जाएंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वे अगले पांच महीनों तक योगनिद्रा में रहेंगे। इस अवधि में मांगलिक और सांस्कृतिक कार्यों पर विराम लग जाता है। जब पांच महीने बाद भगवान की नींद टूटती है, तब तुलसी विवाह और शालिग्राम विवाह जैसे शुभ कार्य पुनः आरंभ होते हैं।