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The 73rd edition of 'The Show Must Go On' by senior journalist Dr. Shireesh Chandra Mishra - Why is the police silent? - Part 1
जब भी प्रधानमंत्री या केन्द्रीय गृह मंत्री का दौरा होता है। उसके पहले पुलिस के अधिकारी अपने व्यक्तिगत कारणों से ऐसी सुर्खियां बटोरते हैं कि केन्द्रीय नेताओं के दौरों की खबरें पीछे छूट जाती हैं। सिर्फ औऱ सिर्फ पुलिस अधिकारियों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी विवादास्पद खबरें ही टीआरपी बटोरती दिखती हैं। आईजी साहब के योगासनों के बाद डीएसपी साहिबा के कारनामे लगातार चर्चा में हैं। मजे की बात है कि दोनों ने ही अलग-अलग थानों में शिकायत देकर एफआईआर के लिए आवेदन किया था। पुलिस ने दोनों की शिकायतों को अहस्तक्षेप योग्य बताकर कोर्ट जाने का रास्ता दिखा दिया। दोनों एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। सबसे बड़ी बात कि पुलिस महकमे की लगातार भद्द पिट रही है। लेकिन पुलिस के विवादास्पद राजपत्रित अधिकारियों का इतिहास बताता है कि अब तक किसी भी सरकार ने ऐसे अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की है। अंतत: अधिकारी एक-दूसरे को बचा ही लेते हैं।
आईजी वाले प्रकरण में पुलिस की जांच समिति को एक माह से ज्यादा समय हो गया है लेकिन अब तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है । जांच इसलिए बैठायी गयी कि मामला शांत हो जाए। सबको मालूम है कि जांच का कोई रिजल्ट नहीं आयेगा। और अगर आ भी गया तो सारी लीपापोती करके साहब को क्लीन चिट दे दी जायेगी । ताजा मामले में डीएसपी ने अपना दामन बचाने के लिए पैसों के लेनदेन की बात को अपने पिता और भाई की ओर डायवर्ट कर दिया है ताकि सरकारी नौकरी के जो नियम-कानून होते हैं उनसे बचाव हो सके। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि पुलिस ने दोनों के ही आवेदनों पर एफआईआर क्यों नहीं की ? क्या पुलिस सभी मामलों में ऐसा ही रुख अख्तियार करती है। जैसा कि आईजी, डीएसपी या फिर एक एसपी की पत्नी पर आरोप लगाकर आत्महत्या करने वाले जिम ट्रेनर के मामले में किया। डीएसपी पर कम से कम तीन बड़े और विवादास्पद अधिकारियों का वरदहस्त बताया जाता है वहीं कारोबारी पर भी कई बड़े पुलिस अधिकारियों का हाथ है। ऐसे में पुलिस महकमे में ही मचने वाली संभावित खींचतान से मुक्ति पाने के लिए दोनों को कोर्ट का रास्ता बता दिया गया है।
दरअसल पिछली सरकार में पॉवर में रहे पुलिस अधिकारी अपने क़ॉमन मैन के जरिए ट्रांसफर-पोस्टिंग और लेन-देन के कारोबार को संचालित कर रहे थे। लेडी अधिकारी इस शक्तिशाली समूह के कुछ अधिकारियों से जुड़ी हुई थी। डीएसपी ने अपने कार्यकाल का ज्यादातर समय पीटीएस माना और एटीएस में ही गुजारा। जब डीएसपी के साथ सिलेक्ट हुए अधिकारी धुर नक्सली इलाकों में ड्यूटी कर रहे थे तब भी डीएसपी ज्यादातर समय रायपुर में ही रहती थी। सबसे बड़ा सवाल है कि एक लेडी अधिकारी को इतनी और ऐसी छूट कैसे मिली थी। कैसे वो बड़े अधिकारियों के करीब हो गयी। लेडी पुलिस अधिकारी के ऐसे किसी कारोबारी से कैसे इतने गहरे सम्बन्ध बन गए कि उसने कथित रुप से 12 लाख रुपये की डायमंड रिंग सहित दो करोड़ रुपये से अधिक की राशि के वाहन, जमीन और अन्य चीजें ले लीं। यदि लेडी अधिकारी को इतने मंहगे गिफ्ट मिल रहे थे तो क्या उसने इस बात की सूचना अपने विभाग में दी। उसके वरिष्ठों ने कभी यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की कि पुलिस की एक नई अधिकारी इतनी लक्जरी लाइफ कैेसे जीती है। ज्ञात स्त्रोत से अधिक धन और सम्पत्ति के मामलों की जांच राज्य एजेन्सी तो कर ही सकती है। जैसा कि सौम्या और रानू के मामलों में किया। डीएसपी के भाई औऱ पिता के साथ कारोबारी के लेनदेन की जांच तो की ही जा सकती है। जिससे ये पता लगाया जा सकता है कि उनके पिता और भाई ने कारोबारी और सम्पत्तियां उसके नौकरी में आने के बाद अर्जित की हैं या पहले से ही वे इतने सक्षम थे।
जिस व्यक्ति को कारोबारी बताया जा रहा है उसके पास इतना धन कैसे आया ।जानकारी के अनुसार जिसे कारोबारी बताया जा रहा है वो पिछली सरकार में सत्ता की दलाली करता था। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले इस कारोबारी के तार पिछली सरकार के एक मंत्री के कार्यालय से मजबूती से जुड़े थे। इन सम्बन्धों की दम पर वो ट्रांसफर-पोस्टिंग में दलाली करता था जो इस विवाद के शुरु होने के पहले तक इस सरकार में भी बहुत हद तक जारी था। अधिकारियों के पैसों को ठिकाने लगाने से लेकर निवेश तक के काम से पैसा बनाता था। जिस कैफे को खरीदने का विवाद है उस कैफे सहित वीआईपी रोड पर ऐसे कई रेस्टारेन्ट और बार हैं जिनमें टीआई से लेकर आईजी स्तर तक के अधिकारियों का पैसा लगा हुआ है। कुछ समय पहले भी इस कारोबारी को पुलिस अधिकारी के पैसे हड़पने के कारण थाने में बैठाकर मामला सेटल कराया गया था। उधर डीएसपी औऱ कारोबारी विवाद के बीच एक डीएफओ औऱ उनकी पत्नी के बीच तलाक की खबर भी है जिसमें डीएफओ ने एक महिला पुलिस अधिकारी के साथ अपने प्रेम प्रसंग के चलते तलाक दे दिया है। यह जांच का विषय हो सकता है कि दोनों मामलों में कहीं कोई क़ॉमन फैक्टर तो नहीं है।
डीएसपी-कारोबारी मामला ना तो केवल प्रेम-प्रसंग का मामला है और ना ही मात्र लेनदेन का। इसके आगे बढ़कर यह मामला महादेव बेटिंग एप और पुलिस के तत्कालीन विवादास्पद पुलिस अधिकारियों और इनके अन्तर्सम्बन्धों का बहुत बड़ा घालमेल है। राज्य के बड़े घोटालों की जांच कर रहे एक जांच अधिकारी भी इस कारोबारी के साथ पैसा लगा रहे थे। ऐसे अधिकारी की नियुक्ति किसने करायी थी यह भी जांच का विषय है। इस पूरे मामले में महादेव बेटिंग एप का भी एक एंगल है । यदि ऐसे में राज्य की एजेन्सी के बजाय प्रवर्तन निदेशालय (ईडी ) को पूरे मामले की जांच सौंपी जाए तो प्याज की शक्ल में बंद इस मामले की सारी परतें खुल सकती हैं। वैसे इस मामले में एक आरटीआई कार्यकर्ता ने जिन बिन्दुओं पर राज्यपाल से शिकायत की है ,उन सारे बिन्दुओं के आधार पर जांच हो जाए तो पुलिस महकमे की जो किरकिरी हो रही है उस पर विराम लग सकेगा।
पुलिस की भर्ती में योग्य उम्मीदवारों होने के बाद भी 6000 पदों के लिए आधे ही उम्मीदवार मिल सके हैं। अलग-अलग जिलों में हो रही भर्तियों में चूक से सारा समीकरण गड़बड़ा गया है। पिछली कांग्रेस सरकार ने अक्टूबर 2023 में पुलिस में 6000 पदों पर भर्तियां निकाली थीं। लेकिन चुनाव के कारण प्रक्रिया रुक गयी। भाजपा की नई सरकार ने भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाया । पुलिस की भर्ती में शारीरिक औऱ लिखित परीक्षा होती है। शारीरिक परीक्षा अलग-अलग जिलों में अलग-अलग तारीखों को हुईं। जिसमें ऐसे कई उम्मीदवार थे जिन्होंने पांच-छह जिलों में शारीरिक परीक्षा पास कर ली। लेकिन लिखित परीक्षा एक ही दिन हुई। ऐसे में सफल उम्मीदवार को एक ही जिले के लिए चयन करना था । लेकिन एक ही उम्मीदवार कई जिलों की चयनित सूची में शामिल हो गया। रिजल्ट के अनुसार 6000 उम्मीदवार सिलेक्ट हुए लेकिन वास्तविकता में इसके आधे ही निकले। इस विषय को चयन के दौरान पुलिस अधीक्षकों ने वरिष्ठों के संज्ञान में लाया था। पुलिस अधीक्षकों ने जिले के लिए क्राइटेरिया तय करने का अनुरोध किया था लेकिन निर्णय नहीं हुआ । जिसकी परिणिति चयन सूची में गड़बड़ी के रुप में सामने आयी । करीब 26 माह चली प्रक्रिया के बाद भी आधे ही उम्मीदवार मिल सके।
पिछली सरकार में लेडी सुपर सीएम सहित कुछ पुलिस अधिकारियों ने षड़यंत्रपूर्वक एक पत्रकार को ड्रग्स मामले में फंसा दिया था। पत्रकार पर पुलिसिया पॉवर इस्तेमाल कर जेल भेज दिया था। इसके लिए बाकायदा सुप्रीम कोर्ट के एक तत्कालीन जज जिनकी राज्य सरकार से कथित नजदीकियां थी ,उन पर टिप्पणी के मामले में बिलासपुर में एफआईआर करवाकर गिरफ्तारी के नाम पर पत्रकार के घर छापा मारा गया। छापे के दौरान उसके घर में ड्रग्स रखवाकर जब्ती बना ली गयी और एनडीपीएस एक्ट में जेल भेज दिया। अब इस मामले में कोर्ट ने पीड़ित पत्रकार को बरी कर दिया है। वैसे पिछली सरकार में ऐसे कई खेल हुए जिसमें कहीं जिला कलेक्टर्स ने तो कहीं सरकार के प्रभावशाली अधिकारियों ने पत्रकारों को नौकरी से निकलवाया था और प्रताड़ित किया था।
छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की आगामी दिनों में खाली होने वाली सीट के लिए सत्ताधारी दल में दौड़ तेज हो गयी है। दौड़ में सबसे आगे बस्तर के महाराजा कमल चंद भंजदेव का नाम बताया जा रहा है। दूसरे नम्बर पर एक भाजपा नेत्री और तीसरे नम्बर पर भी एक राज-परिवार से महिला और पुरुष दावेदार बताए जाते हैं। वैसे भाजपा सरकार बनने के बाद संगठन ने सबसे पहले रायगढ़ राजपरिवार से आदिवासी नेतृत्व को राज्यसभा भेजकर चौंका दिया था। ऐसे में कहीं इसी तरह के किसी कम नामचीन चेहरे का नाम फाइनल करके पार्टी बाकी लोगों को चौंका ना दे । राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से बार-बार राजपरिवार के सदस्यों को राज्यसभा में भेजना संभव ना हो लेकिन बस्तर में नक्सलवाद का एंगल भी है। जिसमें मिल रही सफलताओं के कारण बस्तर राजा को प्रतिनिधित्व मिल सकता है।
नए परिसीमन के कारण आगामी विधानसभा चुनाव लेट हो सकते हैं। भाजपा के नारे एक राष्ट्र-एक चुनाव और नए परिसीमन के कारण लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक-साथ होने की उम्मीद जतायी जा रही है। भाजपा दोनों ही स्थितियों और परिस्थितियों के हिसाब से अपनी तैयारी कर रही है। जैसे पार्टी ने 2023 के चुनाव के पहले जिन लोगों को संगठन में जिम्मेदारियां दी थीं उन्हें मैदान में भी उतारा था। वैसे ही पार्टी अब सत्ता और संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे नए लोगों को चिन्हित करके काम पर लगा चुकी है। राज्य में सरकार बनाने के बाद संगठन के बड़े लोगों को अलग-अलग राज्यों में भी भेजा जा रहा है। इसके बीच में भी संगठन कार्यों की कार्यों की लगातार मॉनीटरिंग कर रहा है। अलग-अलग कार्यक्रम चलाकर पार्टी संगठन को सक्रिय औऱ मजबूत किया जा रहा है। वहीं पार्टी आगामी रणनीति के तहत धर्मान्तरण पर कड़ा रुख अख्तियार कर जनजातीय क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने जा रही है। जैसा कि मध्यप्रदेश ने इसी सप्ताह राज्य को नक्सल-मुक्त घोषित किया है वैसा कुछ यदि मार्च 2026 तक छत्तीसगढ में भी हो गया है तो पार्टी को आगामी चुनाव में नक्सलमुक्त छत्तीसगढ़ बनाने की सफलता के साथ चुनाव में उतरेगी।
पिछली सरकार में गठित एक जिले के कलेक्टर से एसपी परेशान बताए जा रहे हैं। कलेक्टर साहब शाम को मिलते ही नहीं है। यदि एसपी को कलेक्टर से किसी महत्वपूर्ण विषय पर बात या चर्चा करना होती है तो भी कलेक्टर साहब कोई रिस्पॉन्स नहीं करते हैं। इसी जिले में पहले पदस्थ रहे दूसरे एसपी भी कलेक्टर साहब के इसी रवैये से परेशान थे। कलेक्टर साहब शाम 5 बजे के बाद राज्य सरकार के राजस्व की वृद्धि में अपना योगदान देने के काम में लग जाते हैं। जिसके कारण वे मुलाकात की स्थिति में नहीं होते है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने 13 दिसम्बर को अपने कार्यकाल के दो साल पूरे कर लिए हैं। उनके लम्बे राजनीतिक जीवन की तरह ही सीएम के रुप में उनका कार्यकाल निर्विवादित है। दो साल के कार्यकाल पर आयोजित पत्रकार-वार्ता में साय ने पत्रकारों के उन असहज सवालों के भी सटीक जबाव दिए जिसकी शायद ही कोई कल्पना करता। जब एक पत्रकार ने पूछा कि सरकार कौन चला रहा है तो उसके जबाव में उन्होंने कहा कि सरकार कैसी चल रही है। वे अपनी सरकार की उपलब्धियों बताने के साथ ही कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचारों, घोटालों औऱ घपलों पर मारक प्रहार करने से भी नहीं चूके।