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Snake antiserum controversy: CGMSC refuses re-test
रायपुर: जीवन रक्षक स्नेक एंटी सीरम (Polyvalent Anti Snake Venom) की गुणवत्ता को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। जशपुर के दुलदुला स्वास्थ्य केंद्र में कोबरा के डंसने पर मरीज को दिए गए बैच नंबर A-4000224 के एंटीसेरम से पूरे शरीर में तेज खुजली (इचिंग) होने की शिकायत मिली। अस्पताल ने तुरंत इसकी जानकारी ड्रग वेयरहाउस को भेजी।
वेयरहाउस ने इसे गंभीर मानते हुए सीजीएमएससी को जांच के लिए पत्र लिखा। लेकिन निगम का जवाब चौंकाने वाला था। सीजीएमएससी ने कहा कि जैविक दवाओं की जांच केवल सेंट्रल लैब, कसौली में ही होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बैच की जांच पहले ही हो चुकी है और रिपोर्ट को दोबारा चैलेंज करना संभव नहीं है।
इस बैच के अभी भी 5,476 वायल दवा गोदाम में उपलब्ध हैं और उनका उपयोग जारी है। दवा कंपनी ने इसे जुलाई 2024-25 में बनाया था, जिसकी शेल्फ लाइफ जून 2029 तक है। अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि मरीज पूरी तरह स्वस्थ है।
सिर्फ एंटीसेरम ही नहीं, बल्कि पिछले समय में कई इंजेक्शन, टैबलेट, स्लाइन, बैंडेज, सर्जिकल ग्लव्स और ब्लेड तक की गुणवत्ता पर शिकायतें मिली हैं। इनमें सिप्रोफ्लोक्सासिन टैबलेट से एलर्जी, पैरासिटामोल में फंगस, और अर्निडाजोल व सल्फेट-फोलिक एसिड में फंगस जैसी शिकायतें शामिल हैं।
गुणवत्ता में गड़बड़ी पकड़े जाने पर सीजीएमएससी ने दो कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। इनमें एजी पैरेंटेरल्स, बद्दी (HP) की कैल्शियम विटामिन D3 टैबलेट और एल्बेंडाजोल टैबलेट अमानक पाई गई और डिवाइन लेबोरेट्रीज, वडोदरा (GJ) की हेपारिन सोडियम इंजेक्शन अमानक पाई गई।
प्रदेश में हर साल लगभग 3-4 हजार लोग सांपदंश के शिकार होते हैं, जिनमें से करीब 1,000 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। गंभीर बात यह है कि लगभग 30 प्रतिशत मरीज अस्पताल तक पहुँच ही नहीं पाते। वर्ष 2024-25 में सिर्फ आंबेडकर अस्पताल में ही करीब 300 सांपदंश के मरीज पहुंचे। अगस्त, सितंबर और अक्टूबर सबसे जोखिम भरे महीने हैं। औसतन हर महीने 10-12 मरीज सांपदंश के इलाज के लिए अस्पताल आते हैं।