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Supreme Court reprimands Rahul Gandhi for his controversial statement on Veer Savarkar
नई दिल्ली: स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को लेकर दिए गए विवादित बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार का सामना करना पड़ा है। शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी है कि अगर राहुल गांधी भविष्य में इस तरह के "गैरजिम्मेदाराना बयान" देंगे तो कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू कर सकता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देते हुए लखनऊ की एसीजेएम कोर्ट से जारी समन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने मामले में यूपी सरकार और शिकायतकर्ता नृपेंद्र मिश्रा को नोटिस जारी कर राहुल की याचिका पर जवाब देने को कहा है।
राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि उनके बयान से समाज में वैमनस्य फैलाने का आरोप नहीं बनता। उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में दिए गए बयान पर उत्तर प्रदेश में केस चलाया जाना गलत है और शिकायतकर्ता उस बयान से सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा: “आपने बयान महाराष्ट्र में दिया, जहां लोग सावरकर को पूजते हैं। आपको हमें आश्वासन देना चाहिए कि भविष्य में इस तरह का गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देंगे। ऐसा हुआ तो हम स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू करेंगे।”
अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह इस बात को समझते हैं और उसका सम्मान करते हैं।
‘गांधीजी को भी नौकर कहेंगे?’
जस्टिस दत्ता ने तीखा सवाल पूछते हुए कहा:
“महात्मा गांधी भी अंग्रेज वायसराय को पत्र में खुद को 'आपका निष्ठावान सेवक' कहते थे। क्या इसका मतलब यह है कि उन्हें भी अंग्रेजों का नौकर कहा जाएगा? क्या कोई सिर्फ इसलिए नौकर हो जाता है क्योंकि उसने पत्र में ‘सेवक’ लिखा?”
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि राहुल गांधी की दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 में वीर सावरकर की प्रशंसा में पत्र लिखा था, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
क्या है मामला?
लखनऊ निवासी वकील नृपेंद्र पांडे ने राहुल गांधी के खिलाफ IPC की धारा 153(A) और 505 के तहत मुकदमा दर्ज कराया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि 17 दिसंबर 2022 को महाराष्ट्र के अकोला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुल गांधी ने वीर सावरकर को "अंग्रेजों का नौकर" और "पेंशन लेने वाला" बताया था। प्रेस के लिए पहले से तैयार पर्चे भी बांटे गए थे, जिससे यह साफ होता है कि यह बयान पूर्वनियोजित और दुर्भावनापूर्ण था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 4 अप्रैल को राहुल के खिलाफ जारी समन को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।