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The 74th edition of 'The Show Must Go On' by senior journalist Dr. Shireesh Chandra Mishra: The significance of the transfer of collectors.
छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक फेरबदल में 6 जिलों के कलेक्टर बदले गए। इस फेरबदल में राज्य के तीनों हिस्सों यानी कि उत्तर, दक्षिण और मैदानी तीनों ही इलाके के कलेक्टर्स बदले गए हैं। बस्तर के जिन तीन जिलों के कलेक्टर्स बदले गए हैं उन्हें बेहतर परिणाम देने के कारण प्रमोशन मिला है। वहीं राज्य के उत्तरी हिस्से के एक कलेक्टर को मंत्री से अनबन औऱ विवादास्पद कार्यशैली के कारण रायपुर बुला लिया गया है। तो मैदानी हिस्से के एक कलेक्टर को मंत्री के पुत्र से निकटता के कारण राजधानी में पदस्थ किया गया है। मैदान के ही एक कलेक्टर को भाजपा के वरिष्ठ नेता की मोर्चेबंदी के बाद संभागस्तरीय मुख्यालय वाला जिला दिया गया है। यह इस बात का संकेत है कि नेता की बात का सम्मान किया गया है लेकिन अधिकारी के काम और ओहदे को भी महत्व दिया गया है। इस जिले के फेरबदल में पूर्व मंत्री और कलेक्टर दोनों ही विन-विन स्थिति में रहे।
कलेक्टर्स के तबादले में राज्य सरकार ने साफ संदेश दे दिया है कि किसी नेता की निकटता या नेता से पंगा दोनों ही नहीं चलेगें। चलेगा तो सिर्फ काम। वर्तमान में जिस तरह के अधिकारियों को कलेक्टर बनाया गया है उससे साफ दिखता है कि सरकार का ध्यान अपनी छवि के साथ निर्विवादित औऱ अच्छा काम करने वाले अधिकारियों को आगे बढ़ाने की है। तोड़-जोड़, भ्रष्टाचार और वाद-विवाद उसी सीमा तक अनदेखा किया जायेगा जहां तक सरकार की छवि पर असर नहीं पड़ रहा है। एक-दो औऱ जिलों के कलेक्टर्स को काम के आधार पर बदला जा सकता है। बाकी लोगों को दो साल के क्राइटेरिया पूरा करने के आधार पर बदला जायेगा। यही फार्मूला जिलों में पुलिस कप्तानों पर भी लागू होगा। कई जिलों के कप्तानों को दो साल पूरा होने जा रहा है। ऐसे सभी लोगों को उनके काम के आधार पर बड़े जिले दिए जा सकते हैं। वहीं जिन जिलों में धर्मान्तरण या अन्य किसी वजह से कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है उन्हें बदला जा सकता है। संभव है कि नये साल के पहले या अगले साल जनवरी में कप्तानों और महानिरीक्षकों के तबादले की सूची जारी हो जाए।
राजनीतिक दलों में शुभ मुहुर्तों का बड़ा महत्व होता है। 15 दिसम्बर से मलमास की शुरुआत हो चुकी है। इसलिए विधानसभा का शीतकालीन सत्र रविवार यानी 14 दिसम्बर से शुरु किया गया। हालांकि इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ गठन के बाद विधानसभा का पहला सत्र 14 दिसम्बर 2000 को हुआ था इसलिए इसी दिन से विधानसभा का सत्र आहूत किया गया। करोड़ों रुपयों की लागत से बने विधानसभा के भव्य-दिव्य भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री के हाथों हो चुका था। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष का प्रयास था कि सदन की बैठकें राज्य की स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने वाले साल में ही हों। लेकिन मलमास के चक्कर में विधानसभा के प्रथम सत्र की तिथि के साथ जोड़कर रविवार को ही सत्र की शुरुआत की गयी । छत्तीसगढ़ के इतिहास में ये पहला मौका था जब रविवार को सत्र की शुरुआत हुई । मलमास के कारण ही भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के उत्तराधिकारी के रुप में छत्तीसगढ़ के प्रभारी और बिहार सरकार के मंत्री को आनन-फानन में कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया।
भाजपा ने अपने सारे बड़े काम मलमास लगने के पहले ही निपटा लिए। इस बीच छत्तीसगढ़ प्रभारी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाने से पार्टी को लगा कि नये प्रभारी की नियुक्ति तक संगठन के बाकी बचे पदों की नियुक्तियां लटक जायेंगीं। साथ ही संगठन के बड़े नेताओं को चुनाव वाले राज्यों में अहम जिम्मेदारियां दी गयीं हैं जहां से उनका बार-बार आना संभव नहीं है। ऐसे में सभी मोर्चों और प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों की नियुक्तियों की जम्बो लिस्ट निकाल दी गयी । एक मोर्चे की जिला स्तरीय नियुक्ति में जल्दबाजी में गड़बड़ी हो गयी। बाद में पार्टी को अहसास हुआ कि जिनका नाम सूची में शामिल किया गया है उन्होंने पार्टी से बगावत करके नगरीय निकाय का चुनाव लड़ा था। जिसके बाद उनके नाम को निरस्त करने की सूचना जारी की गयी।
लेडी सुपर सीएम सौम्या चौरसिया कोल लेवी मामले में 800 से ज्यादा दिन जेल में गुजारने के बाद एक बार फिर से जेल दाखिल हो चुकी हैं। फिलहाल 14 दिनों की न्यायिक रिमाण्ड पर जेल भेजा गया है। लेकिन ईडी ने कोर्ट में जो दलीलें दी हैं उसका लब्बोलुआब यही है कि प्रदेश के हर घोटाले में उनकी सक्रिय संलिप्तता रही है। घोटालों के पिरामिड में वे शीर्षतम स्थान के बाद दूसरे नम्बर पर थीं। पूर्व मुख्यमंत्री की बेहद करीबी और विश्वासपात्र होने के कारण पैसों के लेनदेन और निपटारे का जिम्मा सम्हाल रही थीं। जिस व्यक्ति के बयान के आधार पर सौम्या की गिरफ्तारी हुई है। वह प्रदेश के सबसे शक्तिशाली रहे व्यक्ति का करीबी बताया जाता है। इसी व्यक्ति के बयान के आधार पर सौम्या को गिरफ्तार किया गया है। जानकारी के अनुसार इसी व्यक्ति ने सबसे शक्तिशाली रहे व्यक्ति का नाम भी कोर्ट में दिए कलमबंद बयान में लिया है। इस बयान से नेताजी के खेमे में खलबली मची हुई है। नेताजी इस बयान को गैर-कानूनी सिद्ध करने के लिए देश के नामी वकीलों के साथ सलाह-मशविरा ले रहे हैं। चूंकि बयान देने वाले को अब तक फरार बताया जाता रहा है ऐसे में इस आधार पर बयान को चुनौती देने की मंथन चल रहा है।
लेडी सुपर सीएम के नाम से छत्तीसगढ़ में अपनी सत्ता चलाने वाली सौम्या चौरसिया की कुंडली में फिर से ग्रहों की चाल बदल गयी है। सौम्या एपिसोड की पहले सीजन में कोल लेवी स्कैम में करीब पौने तीन साल जेल में काटने के बाद फिर से जेल यात्रा का योग बन गया है। एपिसोड के दूसरे सीजन की शुरुआत उनके पीए रहे जयचंद कोसले नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी से हुई। कोसले ने अपने बयान में ईओडब्ल्यू को बताया कि कैसे वो सौम्या के सम्पर्क में आया है फिर कैसे पैसों के लेन-देन वाले काम में शामिल हुआ। हालांकि ईओडब्ल्यू ने अभी कोल लेवी मामले में ही कोसले से पूछताछ की है। जिसमें यह सामने आया है कि कैसे सीएम हाउस के सचिव औऱ उपसचिव के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री के परिजन एक वाट्सएप ग्रुप से जुड़कर लेन-देन का कारोबार चला रहे थे। कोसले किस तरह से फाइलों पर दस्तखत करवाने और पैसों को मैनेज करने का काम करता था। पैसों के लेन-देन को रेत के कारोबार से जोड़ा गया था। एक लाख को एक ट्रिप रेती और 15 लाख को 15 ट्रिप रेती करके चैट में लिखा जाता था। काम करने का तरीका वैज्ञानिक औऱ रचनात्मकता का बेजोड़ नमूना था । लेकिन हिसाब-किताब पाई-पाई का होता था जिसमें पूरी एकाउन्टेबिलिटी का ध्यान रखा जाता था। तांत्रिक के बयान, कोसले के बयान और लिकर स्कैम में शामिल नेताजी के सबसे करीबी के बयान से सौम्या की कार्यशैली की झलक मिलती है। भले ही वसूली और घोटाले के कई नेटवर्क चल रहे थे लेकिन काम में संजीदगी का पूरा ध्यान रखा जाता था।
यदि आपके अंदर कोई हुनर है और कोई बड़ा व्यक्ति आपके हुनर का मुरीद हो जाए तो फिर आप उसको पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले सकते हैं। जिस व्यक्ति की बात की जा रही है। वह मूलत: दलाल किस्म का नेताओं के इर्द-गिर्द घूमने वाला व्यक्ति था। इत्तेफाक से वह एक कथित रुप से सिद्ध तांत्रिक स्थल से भी जुड़ा हुआ था। इस व्यक्ति ने एक बड़े नेताजी के लिए अनुष्ठान कराया। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से नेताजी सबसे बड़े ओहदे पर विराजमान हो गए। नेताजी को जिन-जिन से हिसाब करना था। उन सभी लोगों का खराब समय शुरु हुआ। इस बात को तांत्रिक ने नेताजी के मन में गहरे रुप में बैठा दिया कि ये सब उसके तंत्र-मंत्र का प्रताप है। नेताजी सप्ताह में पांच दिन उस धाम में मत्था टेकने जाने लगे और यह व्यक्ति पूजा-पाठ औऱ तंत्र-मंत्र की आड़ में सत्ता का बड़ा दलाल बन गया। कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद इस कथित तांत्रिक के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ औऱ लम्बे समय तक फरार रहने के बाद अन्तत: जेल जाना पड़ा। पहले कोल लेवी में संलिप्तता के बाद अब लिकर स्कैम के 100 करोड़ रुपयों को हवाला के माध्यम के ट्रांसफर करने का मामला भी दर्ज हो गया है। जेल में बंद इस तांत्रिक पर अब तीसरे मामले में कार्रवाई होगी।
पुलिस और अपराध का चोली-दामन का साथ है। जहां अपराध होगा वहां पुलिस पहुंचेगी ही। लेकिन पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि अब पुलिस या तो अपराध की जड़ में है या पुलिस वाले ही अपराधी बनते जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के पिछले 25 सालों के इतिहास के शुरुआती 10-15 सालों में इक्का-दुक्का ही बड़े अधिकारी अपराधों में संलिप्त होते थे। बाकी टीआई स्तर तक तो अपराधों में संलिप्तता का पुराना इतिहास है। लेकिन हाल-फिलहाल के वर्षों में पुलिस के आईपीएस और एसपीएस स्तर के अधिकारियों की अपराधों में संलिप्तता बढ़ती जा रही है। पिछले 15 दिनों से चल रहे डीएसपी और कारोबारी के विवाद में अब जाकर पुलिस महकमे की नींद टूटी है। महिला डीएसपी ने अपना बयान दर्ज करा दिया है। जबकि सरकार को चाहिए था कि जैसे ही मामला मीडिया में सुर्खियां बटोरना शुरु किया था तभी मामले की जांच शुरु की जाती तो बेहतर होता। इस बीच एक एसडीओपी को पुराने मामले में चाकू मारा गया है। यह मामला भी संगीन था लेकिन ना जाने क्यों सरकार ऐसे मामलों पर संज्ञान नहीं लेती है जो उसकी छवि खराब करने का काम करते हैं। पुलिस की कार्यप्रणाली लगातार सवालों के घेरे में है। कई वरिष्ठ अधिकारियों का आचरण पुलिस की वर्दी को दागदार बना रहा है। इन सब मामलों का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी एक्शन में देरी क्यों हो रही है। ऐसे दागदार अधिकारियों को बचाकर सरकार की छवि को चोट क्यों पहुंचायी जाती है। ऐसा सभी सरकारों में देखा गया है कि जैसे ही पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी पर कोई आरोप लगते हैं अधिकारी को बचाने और मामले को अनदेखा करने में पूरी ताकत लगा दी जाती है। अधिकारी या तो सरकार तक सही बात पहुंचने नहीं देते हैं या फिर मामले को गलत ठहराने में लग जाते हैं। ऐसे में दागी अधिकारी तो बच जाते हैं लेकिन सरकार दांव पर लग जाती है। वर्ष 2003, 2018 और 2023 के चुनाव परिणाम अन्य कारणों के अलावा दागदारों को बचाने में खामियाजे के सबसे अच्छे उदाहरण कहे जा सकते हैं।
भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष की घोषणा के बाद पूर्व मुख्यमंत्री का बयान आया जिसमें उन्होंने कहा कि नितिन नाम कांग्रेस के लिए शुभ है। जब नितिन गड़करी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे तो केन्द्र में कांग्रेस की सरकार आयी थी। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री ये भूल गए कि अब जो नितिन बने हैं जब वे छत्तीसगढ़ के भाजपा प्रभारी बने उसके बाद से ही उनकी सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो गयी थी। आखिरकार कांग्रेस सरकार की बिदाई हुई। तांत्रिक की सलाह से सरकार गंवाने के बाद तो कम से कम नेताजी को टोटकों से तौबा कर लेना चाहिए। हर बार इत्तेफाक और संयोग काम नहीं आता है।
करीब एक माह पहले हुए महाधिवक्ता के बाद अब अतिरिक्त महाधिवक्ता का इस्तीफा हो गया है। हालांकि महाधिवक्ता ने भी अपने इस्तीफे की कोई खास वजह नहीं बतायी थी। लेकिन ऐसा माना जा रहा था कि पीएससी मामले में सरकार की हार और अन्य मामलों में राज्य का पक्ष प्रभावी ढंग से नहीं रखा जा रहा था। नये महाधिवक्ता की नियुक्ति के समय ही मान लिया गया था कि वे अपनी टीम बनायेगें। इसमें एक वजह यह भी मानी जा रही थी कि अतिरिक्त महाधिवक्ता वरिष्ठता में महाधिवक्ता से ज्यादा वरिष्ठ हैं इसलिए शायद आगे काम करने में सहज ना हों। हालांकि अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अपने इस्तीफे में इस पद पर काम करने को सम्मान की बात बताया है।