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Unique tradition of Sukma After Holi burning people walk barefoot on burning embers
सुकमा। कल यानि शुक्रवार को होली है, हर तरफ होलिका दहन की तैयारियां जोरो पर है। इस बीच छत्तीसगढ़ के एक क्षेत्र सुकमा की भी चर्चा ऐसे में होना लाजमी है। यहाँ अनोखी परंपरा के तहत गांव में सुख-शांति स्थापित हो और सभी के दुख-दर्द दूर हो इसलिए ग्रामीण होलीका दहन के बाद धधकते अंगारों पर नंगे पैर चलते है। हैरान करने वाली बात यह है कि अंगारों पर नंगे पैर चलने वालों के पैरों में कोई भी जलने का निशान नहीं पड़ता है। उसके बाद दूसरे दिन उसी राख से होली खेलते है। ये परंपरा पिछले 800 सालों से निभाई जा रही है। साथ ही होली के तीन-चार दिन पहले से ही वहां के युवा और बुर्जुग घेर (डांडिया) खेलते हैं।
जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी. दूर स्थित पेंदलनार गांव जहां आदिवासी और यादव समाज के करीब 800 लोग निवासरत है। कुछ साल पहले गांव में नक्सलियों का दखल था लेकिन वर्तमान में गांव तक पक्की सड़क बन गई है। ये गांव अनोखी होली मनाने के नाम से प्रसिद्ध है यहां आज भी 800 साल पुरानी परंपराओं को निभाया जा रहा है। गांव के बुजुर्गो का कहना है कि इस परंपरा का मकसद गांव के युवा और वरिष्ठजनों के बीच आपस में अच्छा तालमेल और नाराजगी दूर करना होता है। होली के दिन यहां दहन के बाद गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग लोग धधकती आग पर चलते हैं।
पुरानी मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन के बाद दूसरे दिन राख के ढेर से लोग होली खेलते हैं। ऐसा करने के पीछे भी मान्यताएं है कि होलिका दहन के बाद वो राख पवित्र हो जाती है। पूरे शरीर में लगाने से चर्म रोग नहीं होता है। हालांकि वर्तमान में गांव के युवा होली के दिन रंग-गुलाल जरूर लाते हैं लेकिन पंरपराओं को भी निभाया जा रहा है।