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Big news: Big relief for India, out of America's tariff list, tariff notice sent to 20 countries
वॉशिंगटन/नई दिल्ली। वैश्विक व्यापार पर अमेरिका के आक्रामक रुख के बीच भारत को फिलहाल बड़ी राहत मिली है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा बुधवार को जारी टैरिफ पत्रों की सूची में भारत को शामिल नहीं किया गया है। जबकि अब तक अमेरिका ने करीब 20 देशों को आयात शुल्क बढ़ाने संबंधी पत्र भेजे हैं।
भारत और अमेरिका के बीच वर्तमान में व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है, ऐसे में यह फैसला भारतीय निर्यातकों के लिए कुछ समय की राहत लेकर आया है।
टैरिफ स्थगन से मिली राहत
गौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन ने पहले 2 अप्रैल को भारत के कुछ उत्पादों पर अतिरिक्त 26% पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, लेकिन इसे 90 दिनों के लिए 9 जुलाई तक स्थगित किया गया था। अब इस स्थगन अवधि को 1 अगस्त तक बढ़ा दिया गया है। हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाया गया 10% बेसलाइन टैरिफ पहले की तरह लागू रहेगा।
व्यापार आंकड़ों में भारत को बढ़त
2024-25 के दौरान भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 131.84 अरब डॉलर पर पहुंचा, जिसमें भारत से अमेरिका को 86.51 अरब डॉलर का निर्यात और 45.33 अरब डॉलर का आयात शामिल है। भारत को 41.18 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष मिला है। अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है।
किन देशों को मिल चुके हैं टैरिफ पत्र?
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने पहले 14 देशों को टैरिफ पत्र भेजे थे, जिनमें शामिल हैं जिसमें बांग्लादेश, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका, बोस्निया और हर्जेगोविना, कंबोडिया, कजाकिस्तान, लाओस, सर्बिया, ट्यूनीशिया का नाम शामिल है। बाद में बीते बुधवार तक और 6 देशों को पत्र मिले, जिसमे लीबिया, इराक, अल्जीरिया (30%), मोल्दोवा, ब्रुनेई (25%) और फिलीपींस (20%) का नाम भी शामिल है।
दवा आयात पर 200% टैरिफ की चेतावनी
हालांकि राहत की इस खबर के बीच भारतीय दवा उद्योग के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में दवा आयात पर टैरिफ को 200% तक बढ़ाने की धमकी दी है। यह तब सामने आया है जब हाल ही में अमेरिका ने इस क्षेत्र में व्यापार जांच (Trade Probe) शुरू की है।
भारत के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि भारत का वैश्विक दवा निर्यात 2024-25 में 30 अरब डॉलर से अधिक रहा है, जिसमें अकेले अमेरिका की हिस्सेदारी 31% है। इससे भारतीय फार्मा कंपनियों, खासकर जेनेरिक दवाओं के निर्माता, प्रभावित हो सकते हैं।