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65th edition of 'Show Must Go On' from the pen of senior journalist Dr. Shireesh Chandra Mishra - Meeting means meeting
सीएम का अंदाज औरों से जुदा है। जब पहली कलेक्टर कॉन्फ्रेन्स हुई थी तब भी सीएम तय समय से पहले पहुंच गए थे। सारी जानकारियों के साथ मीटिंग में मुखातिब थे। इस बार की कॉन्फ्रेन्स में कलेक्टर-एसपी के साथ डीएफओ को भी जोड़ा गया। मकसद साफ था कि वन क्षेत्रों में रहने वालों का भी भला हो जब शहरों और गांवों का भला हो रहा है। मीटिंग की सबसे खास बात थी कि चाय-पानी या स्नेक्स के लिए कोई ब्रेक नहीं। सीधे लंच वो भी मंत्रालय के कॉफी हाउस से। पानी की बोतलें पहले ही रख दी गयी थीं। मतलब कि बार-बार का व्यवधान नहीं। रात को भोजन सीधे नवा रायपुर के सीएम हाउस में। कोई फाइव स्टार होटल से खाना-पीना नहीं । अधिकारियों को भी समझ में आया होगा कि मीटिंग का मतलब क्या होता है। नहीं तो राजधानी और संभागीय मुख्यालय में जो मीटिंग्स होती हैं उनकी कैटरिंग किसी बड़े होटल को दे दी जाती है। बार-बार चाय-बिस्किट और कुकीज का दौर चलता रहता है। सबसे बड़ी बात कि मीटिंग के पहले दिन के लिए रविवार को चुना गया ताकि सिर्फ एक वर्किंग डे पर ही कलेक्टर,एसपी और डीएफओ अपने मुख्यालय से बाहर रहें।
वैसे तो हर मीटिंग में पुरानी बातों की ही पुनरावृत्ति होती है। लेकिन इस मीटिंग में पुरानी बातों के अलावा दो-तीन ऐसे नये मुद्दे थे जिन पर सीएम ने खुलकर बात की । कानून-व्यवस्था, साइबर क्राइम, नशा-सट्टा आदि पर प्रतिबंध और कड़ाई की बातें आम हैं । इस बार खास था कलेक्टर्स को सुबह सात बजे बिजली-पानी और साफ-सफाई की व्यवस्था देखने के लिए वार्डों के दौरे के निर्देश। दूसरी बात आयुष्मान कार्ड के नाम पर एक-एक कमरे में चल रहे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज की वस्तुस्थिति के आंकलन के लिए छापामार कार्रवाई के निर्देश औऱ तीसरा जनप्रतिनिधियों से बात-व्यवहार के तरीके में सुधार के साथ नवाचारों में आम लोगों को शामिल करने का सुझाव। कलेक्टर्स कॉन्फ्रेन्स को एक सप्ताह होने जा रहा है लेकिन अब तक कलेक्टर्स के सुबह सात बजे वार्डों में दौरे की खबरें देखने को नहीं मिली हैं। साथ ही मीटिंग में जिस नर्सिंग एक्ट का हवाला देकर छापे के प्रावधानों की याद दिलायी गयी थी उस पर भी अमल होता नहीं दिख रहा है। हालांकि नये सीएस ने जिस तरह से अधिकारियों को चेताया है उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि दीवाली बाद मीटिंग का असर दिखेगा। वैसे सरकार में पुरानी मीटिंग्स के निर्देशों पर कितना अमल हुआ उसकी रिपोर्ट भी आगामी मीटिंग रखने की शुरुआत होने लगे तो अधिकारी पब्लिसिटी के बजाय काम पर ज्यादा ध्यान देंगें।
कलेक्टर-एसपी और डीएफओ कॉन्फ्रेन्स के पहले दिन सीएम ने कलेक्टर्स को नसीहतें तो दी हीं लेकिन उनके अच्छे कामों की तारीफ करने से भी नहीं चूके। लेकिन दूसरे दिन जब सवालों की झड़ी लगी तो अधिकारी भी बगले झांकने लगे। जहां कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब थी वहां के पुलिस अधीक्षकों को स्पष्टता के साथ ताकीद किया गया। सीएम का मीटिंग में अंदाज बड़े कॉरपोरेट के सीईओ की तरह ही था। हमेशा की तरह मीटिंग में समय से पहले मौजूद थे। जहां हौसला अफजाई की जरुरत थी वहां प्रशंसा करने से नहीं चूके और जहां कड़ाई की जरुरत थी वहां सख्त तेवर दिखाने में भी कोताही नहीं बरती। नये सीएस की ये पहले मीटिंग थी। नये सीएस पूरी तैयारी के साथ मीटिंग में थे। सीएस की तैयारियों का असर मीटिंग में साफ दिखाई दिया। आयुष्मान कार्ड के भुगतान को लेकर अस्पतालों द्वारा इलाज बंद करने से निपटने के लिए सीएस ने जो फार्मूला दिया है। उस पर अमल हो जाए तो आयुष्मान कार्ड के फर्जीवाड़े को बहुत हद तक रोका जा सकेगा। मीटिंग में सीएस के निर्देश स्पष्ट और कानून-सम्मत रहे।
एक नवम्बर को छत्तीसगढ़ गठन के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष में रजत जयन्ती महोत्सव की शुरुआत हो रही है। करीब सप्ताहभर वीवीआईपी मूवमेन्ट रहेगा। सरकार राज्योत्सव को यादगार और शानदार बनाने का भरसक प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री और उप-राष्ट्रपति से लेकर अनेक बड़े नेताओं की मौजूदगी रहेगी। इस दौरान नये भव्य विधानसभा भवन के उद्घाटन के साथ ही नवा रायपुर में अनेक कार्यों का लोकार्पण और भूमि-पूजन होगा। नयी योजनाओं की शुरुआत भी होगी। दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में भाजपा सरकार के गठन के दो साल पूरे होंगें। इसी समय तक ज्यादातर जिलों में कलेक्टर्स और पुलिस अधीक्षकों को लगभग दो साल या उससे अधिक समय हो चुका होगा। कलेक्टर्स-एसपी-डीएफओ कॉन्फ्रेन्स में अधिकारियों के कार्यों की समीक्षा भी हो चुकी है। ऐसे में या तो राज्योत्सव के तुरंत बाद या फिर शीतकालीन सत्र के बाद कलेक्टर्स और एसपी के तबादलों की बड़ी सूची आ सकती है। धान खरीदी और भुगतान को लेकर सीएम की संजीदगी से अंदाज लगाया जा सकता है कि तबादलों का काम धान-खरीदी की शुरुआत यानी 15 नवम्बर के पहले होने की संभावना ज्यादा है।
इस हफ्ते नक्सलवाद पर सबसे मारक प्रहार हुआ है। सुरक्षा बलों की कार्रवाईयों ,केन्द्रीय गृहमंत्री के स्टैण्ड और राज्य सरकार की नीतियों के चलते इतिहास का सबसे बड़ा सरेण्डर हुआ है। अब इस सरेण्डर को लेकर श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। चाहे वो पत्रकार हों या फिर राजनेता या फिर स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता सभी चाहते हैं कि नक्सलवाद के खात्मे की अंतिम इबारत का श्रेय उन्हें मिले। उधर कांग्रेस में दो तरह की बातें हैं। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि नक्सलवाद के खिलाफ उनकी सरकार ने असली लड़ाई लड़ी। विकास की गंगा बहायी और नये कैम्प खोले जिसके कारण आज नक्सलवाद खात्मे की ओर है। वहीं दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सवाल पूछ रहे हैं कि ये सरेण्डर करने वाले असली नक्सली हैं या नकली। यानी कि नक्सलवाद पर पार्टी का क्या स्टैण्ड होना चाहिए यह तय नहीं है। लेकिन एक बात साफ है कि जो स्टैण्ड डॉ रमन सिंह के कार्यकाल में लिया गया वैसा ही रवैया यदि कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल में रहा होता तो 2022 में नक्सलवाद खत्म हो चुका होता । लेकिन कांग्रेस सरकार के रवैये से नक्सलवाद के खिलाफ मुहिम कमजोर हुई और नक्सलवाद के सफाये में छत्तीसगढ़ चार साल पिछड़ गया । हालांकि नक्सलवाद के मुद्दे पर डॉ रमन सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का पूरा साथ मिला था। इसी तरह भूपेश बघेल ने अपने ट्वीट में भी केन्द्र की मोदी सरकार से सहयोग मिलने की बात कही है। दूसरी ओर बस्तर में दो आईजी जो लम्बे समय तक तैनात रहे उनकी तैनाती से नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई की निरंतरता बरकरार रही। जिसके कारण बड़ी संख्या में सेन्ट्रल कमेटी मेम्बर्स के आत्मसमर्पण और सबसे बड़े लीडर का एनकाउन्टर हो सका।
पुलिस कमिश्नरी को लेकर जिस तरह से गतिविधियां चल रही हैं उसे देखकर लगता है कि 1 नवम्बर से पुलिस कमिश्नरी की औपचारिक शुरुआत ही हो पायेगी। वैसे भी वर्तमान एसपी ऑफिस के स्थान पर नई बिल्डिंग बनाने के लिए संभागायुक्त कार्यालय के पास एसपी ऑफिस की शिफ्टिंग होना है। पुलिस कमिश्नरी के सेट-अप के लिए ऑफिस स्पेस और वर्क फोर्स बनाने का दबाव तो है ही। साथ ही राज्योत्सव में सुरक्षा व्यवस्था में पुलिस के रोल को देखते हुए पुलिस कमिश्नरी की विधिवत शुरुआत में मुश्किलें नजर आ रही हैं। नई व्यवस्था में प्रथम पुलिस कमिश्नर बनने के लिए आईजी स्तर के अधिकारी जितने उत्सुक नजर आ रहे हैं उसके उलट सेकेण्ड इन कमाण्ड की भूमिका में रहने वाले अधिकारी कमिश्नरी से दूर रहना चाहते हैं। इस स्तर के अधिकारी अभी से कमिश्नरी के कार्यक्षेत्र से दूर पोस्टिंग के लिए प्रयासरत हैं।
सरकार ने गुरुवार शाम राज्य के निगम, मंडल, आयोग और अकादमियों के अध्यक्षों को राज्य और कैबिनेट स्तर के मंत्री का दर्जा देने वाली सूची जारी की। इस सूची में एक बोर्ड की अध्यक्ष को एक ऐसे निगम का अध्यक्ष दर्शाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया गया। जिसमें अध्यक्ष की नियुक्ति ही नहीं हुई थी। दूसरे दिन गलती में सुधार के साथ बोर्ड की अध्यक्ष महोदया को उसी निगम का अध्यक्ष बना दिया गया। जिसके लिए उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था । फिर शनिवार को एक वरिष्ठ विधायक को एक आयोग का उपाध्यक्ष बनाने का आदेश निकला और शाम को अन्य चार लोगों को मंत्री दर्जे की एक और सूची जारी की गयी। कुछ माह पूर्व ऐसे 5-6 निगम-मंडलों के अध्यक्ष एक वरिष्ठ विधायक के परिवारिक विवाह-समारोह में मिले थे। जिसमें आपसी चर्चा में सभी का कहना था कि उन्हें अध्यक्ष तो बना दिया गया है लेकिन मंत्री का दर्जा नहीं मिला है जिसके कारण वे सिर्फ निर्धारित मात्रा में ईंधन और ड्राइवर के साथ सिर्फ वाहन सुख ही ले पा रहे हैं । समारोह में उपस्थित राजनेताओं के बीच सहमति बनी थी कि सीएम से मिलकर मंत्री के दर्जे की मांग की जाए। जिससे वे अन्य सुविधाओं और भत्तों के लिए पात्र हो सकें। लगता है सबके साथ, सबके प्रयास से सबका विकास हुआ है।
यहां बात ना तो पुलिस के इंस्पेक्टर की हो रही है और ना ही उस इंस्पेक्टर राज की जहां अलग-अलग व्यवसाय के लिए लाइसेंस या परमिट जारी किए जाते थे। यहां बात उस इंस्पेक्टर के राज की हो रही है। जो बड़े भूमि-स्वामियों से वसूली का रैकेट चला रहा है। मंत्री के नाम पर जमकर उगाही कर रहा है। जमीन की खरीदी-बिक्री में खामियों का पता लगवाकर संदेश भेजता है। फिर मिलकर डील करता है कि माननीय का आदेश है। ऐसे कई मामले सामने आते जा रहे हैं। जिस माननीय के नाम से ये सब किया जा रहा है उनकी नई सरकार में शुरु से ही ख्याति है किसी ना किसी मामले में सरकार की लगातार किरकिरी करा रहे हैं। अब ये ताजा मामला माननीय के इंस्पेक्टर का चर्चा में आ गया है।
जहां देखो वहीं दीवाली की बहार है। बड़े-बड़े अधिकारियों से लेकर राजनेताओं के बंगलों पर सप्लायर्स, ठेकेदार, लाइजनर, उद्योगपति और व्यापारी-व्यवसाय अपनी क्षमता औऱ सामने वाले के पॉवर को देखते हुए गिफ्ट पहुंचा रहे हैं। सोने-चांदी, कैश, ड्रॉयफ्रूट से लेकर अधिकारी की पसंद के हिसाब से सामान पहुंचाया जा रहा है। चर्चा में यह बात सामने आयी है कि अब अधिकारी या राजनेताओं की पसंद के बजाय मेमसाहबों और बच्चों की पसंद के हिसाब से गिफ्ट पहुंचाए जा रहे हैं। परन्तु इस बार ट्रेण्ड लेडीज फर्स्ट वाला ही दिखायी दे रहा है। जिसमें महंगी साड़ियां, सोने और हीरे के ब्रांडेड आभूषणों के अलावा बच्चों के लिए हाई एण्ड के खिलौने शामिल हैं।