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From the pen of senior journalist Dr Shireesh Chandra Mishra 40th edition of Show Must Go On BMW and Gold Biscuits
छत्तीसगढ़ के ज्यादातर अधिकारी-कर्मचारी और नेताओं का गठजोड़ हर सरकार में काम करता है फिर चाहे सरकार किसी की भी हो। आम लोगों को मालूम है कि कौन कितना भ्रष्ट है और उसका क्या रेट है । पिछली सरकार अपवाद थी जिसमें सब खुल्लम-खुल्ला चल रहा था। ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर वसूली तक के लिए संगठित गिरोह थे। किसी सरकार में कलेक्टर्स-एसपी की पोस्टिंग्स में बोलियों का खेल नहीं होता था, जैसा पिछली सरकार में हुआ । हां ये जरुर होता रहा है और होता है कि सरकारों के अपने चहेते अधिकारी होते हैं कुछ काम के आधार पर और कुछ अन्य आधारों पर ,लेकिन पदों की बोलियां नहीं लगती थीं। खैर मुद्दे की बात पर आते हैं। प्रदेश के अधिकारियों की व्यवसायियों, बिल्डर्स और औद्योगिक घरानों से दोस्ती का नतीजा उनके जैसी कार्यशैली, रहन-सहन, खानपान और वस्तु संग्रह , कुछ अधिकारियों और उनकी पत्नियों का शगल बन चुका है। पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल से ही अधिकारियों का सोने के बिस्किट्स और आभूषणों का प्रेम जगजाहिर है। पिछली सरकार में अधिकारियों ने सोने के अलावा जमीन-जायदादों में इनवेस्ट किया था। जेल में बंद एक मोहतरमा के फार्महाउस के तालाब से सोने की छड़ें निकलने की बात सामने आयी थी। अभी भारतमाला की परतें जैसे-जैसे खुलती जा रही हैं वैसे-वैसे घोटाले से सोने के बिस्किट और बीएमडब्ल्यू जैसी कारें खरीदने की बातें तक सामने आ रही हैं। रायपुर में सोने की डिमांड इतनी ज्यादा है कि देश के सारे नामी ब्रॉंण्ड्स के शो रुम यहां खुल चुके हैं और अब तो तनिष्क का सबसे प्रीमियम कैटेगरी का ब्रांड भी यहां खुलने जा रहा है। इसके अलावा निर्माण कार्य से जुड़े विभागों जिनमें बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, रोड निर्माण आदि शामिल हैं, इन विभागों के भ्रष्ट अधिकारियों की पत्नियां इन्कमटैक्स डिपार्टमेन्ट की निगाह से बचने के लिए आसपास के शहरों से सोने की खरीदारी करती हैं। भ्रष्ट आईएएस और आईपीएस के घर पर तो डिमांड के अनुसार सोने के बिस्किट या आभूषण पहुंच जाते हैं दीवाली गिफ्ट के नाम पर।
भारतमाला में मुआवजे के नाम पर हुए अरबों रुपयों के घोटाले के संदिग्धों पर छापेमारी शुरु हो गयी है। एसीबी-ईओडब्ल्यू ने करीब 20 स्थानों पर छापेमारी की है, जिनमें राज्य प्रशासनिक सेवा के 2 अधिकारियों , तहसीलदारों, पटवारियों समेत 14 लोगों के ठिकानों पर दबिश दी है। इस मामले में शामिल चार लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। इसके पहले राज्य सरकार दो राजस्व अधिकारियों और एक पटवारी पर कार्रवाई कर चुकी है। भारतमाला में शुरुआती कार्रवाई ठीक है लेकिन तीनों जिलों से गुजरने वाले इस महामार्ग के लिए जमीन अधिग्रहण के घोटाले में बड़े अधिकारी शामिल नहीं हो ऐसा संभव नहीं है। जबकि सम्बन्धित शिकायतकर्ताओं ने कलेक्टर, कमिश्नर से लेकर सेक्रेटरी और चीफ सेक्रेटरी तक शिकायत की थी। इतना बड़ा गोल-माल बिना कलेक्टर या संभागीय आयुक्त की जानकारी के बिना हो जाए इसकी संभावना ना के बराबर है। जिस तरह से सीजीएमएससी में आईएएस अधिकारियों पर कार्रवाई में विलम्ब हो रहा है, कहीं ऐसा ही मामला भारतमाला में तो नहीं है। घोटाले की चेन डिप्टी कलेक्टर लेवल पर ही खत्म हो जाए ऐसा संभव नहीं है जबकि मामला करोड़ों का नहीं अरबों का है। कहीं ऐसा तो नहीं कि घोटाले की रकम का कुछ हिस्सा प्रभावशाली लोगों तक पहुंचा कर खुद को बचाने का इंतजाम कर लिया गया हो।
अधिकारी आम तौर पर अपना पैसा जमीनों में खपाते हैं। यह सबसे सेफ इनवेस्टमेन्ट होता है। इसके बाद सोने का नम्बर आता है। राजधानी रायपुर,न्यायधानी बिलासपुर, दुर्ग -भिलाई, राजनांदगांव, कोरबा, अम्बिकापुर औऱ रायगढ़ में सोने-चांदी के ज्यादातर कारोबारियों और बिल्डर्स की सफलता के पीछे भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी ही हैं। अधिकारियों की पैसे के लिए भूख के हिसाब से उनका इनवेस्टमेन्ट होता है। लेकिन भारतमाला के घोटाले में शामिल एक अधिकारी की पत्नी तो एक इनवेस्टमेन्ट कम्पनी में बतौर डायरेक्टर ही शामिल हो गयी है। नहीं तो अधिकारी अपना पैसा गुपचुप तरीके से ही लगाते हैं। लोगों को मालूम तो होता है लेकिन दस्तावेजों में ये लोग कहीं नहीं होते हैं। निकट भविष्य में खाली हो रहे एक शीर्ष पद के दावेदारों में एक अधिकारी की बिल्डर्स के साथ मिलीभगत जगजाहिर है। यदि सरकार सही मायनों में जांच कराये तो पता चलेगा कि कई अधिकारियों की पत्नियां कोई काम या व्यवसाय नहीं करती हैं फिर भी उनके नाम की इन्कम टैक्स की रिटर्न्स कैसे औऱ कितनी जा रही हैं। काले धन को सफेद करने के लिए ये कवायद की जाती है । अलग-अलग कम्पनियों औऱ फर्मों में कन्सलटेन्सी सर्विसेस बताकर कमाई बतायी जाती है। जिनमें निजी और सरकारी दोनों ही संस्थान हैं।
वयोवृद्ध भाजपा नेता और पूर्व मंत्री ने एक बार फिर वन विभाग के मुखिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है । तथ्यों के साथ प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। उनके कार्यकाल के भ्रष्टाचारों की फेरहिस्त भी जारी की है। नई सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेन्स को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रख रही है । लेकिन कुछ पदों पर बैठे अधिकारी सरकार की बातों और व्यवहार में अंतर को साफ दिखा रहे हैं। जिस अधिकारी के खिलाफ पूर्व मंत्री ने शिकायत की है, उसकी गिनती विवादास्पद औऱ भ्रष्ट अधिकारियों में होती है। लेकिन यह बात समझ से परे है कि नई सरकार बनने के बाद भी पुरानी सरकार के विभागीय प्रमुखों को उनके पदों पर क्यों कन्टीन्यू किया गया। पुलिस और प्रशासन के मुखियाओं की गिनती स्वच्छ छवि के लोगों में होती थी लेकिन ये अधिकारी कभी अच्छा प्रदर्शन करने वाले नहीं माने गए। यथास्थिति को बनाए रखने वाले ऐसे अधिकारियों को तत्काल पद से हटा दिया जाना चाहिए था जिनकी डिप्टी कलेक्टर रैंक की एक महिला के सामने कोई हैसियत नहीं थी। वन विभाग के मुखिया तो विवादों में रहने के साथ ही अपने वरिष्ठों को पीछे धकेल कर शीर्ष पद पर पहुंचे हैं।
मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेन्स की बात कह रहे हैं। पिछली भाजपा सरकार के मुखिया को अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी साल में भ्रष्टाचार से दूर रहने की नसीहत देनी पड़ी थी। प्रधानमंत्री लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते हैं लेकिन रेलवे में 4 अधिकारियों की गिरफ्तारी बता रही है कि कई केन्द्रीय प्रतिष्ठानों में खुले आम भ्रष्टाचार हो रहा है। दरअसल भ्रष्टाचार व्यवस्था का इतना अनिवार्य अंग बन चुका है कि नेताओं के कहने का कोई असर होता दिखाई नहीं देता है। बस उसका स्वरुप बदल जाता है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए जो एजेन्सियां हैं चाहे वो राज्य की हों या केन्द्र की ,सिर्फ उन लोगों के खिलाफ ही कार्रवाई कर पाती हैं जिनका माई-बाप कोई पॉवरफुल नेता या अधिकारी नहीं होता है। जिनके ऊपर बड़े लोगों का हाथ होता है वे किसी एजेन्सी से नहीं डरते हैं। एजेन्सियां भी एक स्तर पर जाकर रुक जाती हैं। बड़े अधिकारी पर तभी कार्रवाई होती है जब सरकार उसके खिलाफ हो या भ्रष्टाचार में दुस्साहस और अति आत्मविश्वास का सम्मिश्रण हो। सीजीएमएससी का घोटाला अभी थमा नहीं है लेकिन कुछ अधिकारियों को सरकार अब तक नहीं हटा पायी है। जबकि घोटाला इतना बड़ा है कि ए टू जेड अधिकारियों को बदल दिया जाना चाहिए था। वर्तमान सरकार को पिछली सरकार के घोटालों और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की जरुरत है।
पुराने कनेक्शन अच्छे दिनों में अच्छे रिजल्ट देते हैं वहीं बुरे दिनों में बुरे परिणाम। रायपुर के साइंस कॉलेज की लीला भी अपरम्पार है। एक साहब ने दूसरे साहब को सिर्फ एक साल पढ़ाया। बाद में पढ़ने वाले साहब जब राज्य के मुखिया बने तो पढ़ाने वाले साहब सुपर मुखिया रहे। स्टूडेन्ट के अच्छे समय में टीचर ने खूब माल बनाया और दबदबा भी। लेकिन समय का फेर देखिए दोनों के दिन खराब चल रहे हैं। टीचर को अब जांच एजेन्सी ने किंग पिन का नाम दिया है। इसी कॉलेज के एक और स्टूडेन्ट इस समय पॉवरफुल हैं तो उनके सहपाठी फायदा उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं । इसी तरह एक अन्य पॉवरफुल के बैचमेट अधिकारी सिस्टम में पॉवर को एन्जॉय कर रहे हैं। तो कई अपने पुराने दागों को मिटाने का काम कर रहे हैं।
पुलिस के एक दबंग अधिकारी ने एक बार कहा था कि पुलिस-प्रशासन में भ्रष्टाचार तो बर्दाश्त किया जा सकता है लेकिन क्रिमिनेलिटी नहीं। संदर्भ ऐसा था कि रायपुर पुलिस की क्राइम ब्रांच के कथित तेज तर्रार इंस्पेक्टर ने बस्तर के दो व्यवसायियों को बिना बात के पंडरी बस स्टैण्ड पर पकड़ लिया। झूठे मामले में फंसाने का दबाव बनाकर एटीएम से पैसे निकलवा लिये । मामले की शिकायत पर इंस्पेक्टर के खिलाफ आरोप सिद्ध हुए लेकिन पुलिस के सहधर्मी सलटारा ने दबंग अधिकारी से मिन्नतें करके उसकी नौकरी बचा ली। ऐसे कई पुलिस अधिकारी पिछली सरकार में काफी फले-फूले थे। उनके कुछ अंश इस सरकार में अब भी विद्यमान हैं । ऐसे ही एक आपराधिक मानसिकता के डीएसपी के कारण एक बड़े जिले के कप्तान को अपने पद से हाथ धोना पड़ा। इस डीएसपी ने पूरे शहर में एक डिवाइस लगाने के नाम पर व्यापारियों और उद्योगपतियों से जमकर वसूली भी की थी। मामले की शिकायत होने पर डीएसपी के कारण एसपी को बटालियन भेज दिया गया।
राजनीति करने वालों के जीवन को चरणों में देखना चाहिए। पहला चरण जब व्यक्ति नेता के रुप में उभर रहा होता है । उस दौर में उसके मित्र, समाज और पार्टी उसे आगे बढ़ाती है। चुनाव लड़ता है मंत्री बनता है। दूसरा चरण जब नेता पॉवरफुल होता है। तीसरा चरण जब नेता गुटीय राजनीति के संघर्ष में शामिल होता है। संघर्ष में दोनों पक्ष यानी जो लड़ रहा है और जिससे लड़ रहा है दोनों ही हाशिये पर पहुंच जाते हैं। नहीं तो पहुंचा दिए जाते हैं। ऐसे ही एक नेता जी गुटीय राजनीति और राजनीति की नई धारा के अब सक्रिय अंग नहीं हैं । उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है। जिसमें वो सजातीय बंधुओं को सम्बोधित करते हुए आह्वान कर रहे हैं कि यदि उनकी जाति का उम्मीदवार किसी भी पार्टी से खड़ा हो तो उसे जिताने के लिए एकजुट हों। उनके अनुसार उनकी जाति का व्यक्ति कम से कम 1000 से लेकर दस हजार वोट प्रभावित कर सकता है। इस वायरल वीडियो के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
आमतौर पर शांत स्वभाव के मुख्यमंत्री वक्त और जरुरत के हिसाब से अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हैं। हाल ही में रायपुर के व्यवसायी की कश्मीर में आतंकी हमले में मृत्यु की सूचना मिलते ही दूसरे दिन के सारे कार्यक्रमों को निरस्त करके सुबह-सुबह ही मुम्बई से रायपुर पहुंच गए थे । इस ह्रदय विदारक घटना की सूचना पर दिवंगत व्यवसायी के घर पहुंचकर ना सिर्फ शोक संतप्त परिजनों को ढांढस बंधाया बल्कि अंतिम यात्रा में शामिल होकर अंतिम संस्कार के अंतिम क्रियाकर्म तक श्मशान में मौजूद रहे । सामान्य रुप से ऐसी असाधारण परिस्थितियों में राजनेता अंतिम यात्राओं में शामिल होते हैं । शोक संवेदना व्यक्त करने लोगों के घर जाते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री ने दिवंगत व्यवसायी के परिवार को संबल देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। शायद इसकी बड़ी वजह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि रही है। कम उम्र में पिता को खोने का अहसास के साथ ही संघर्ष का लम्बा अनुभव भी है।
संवेदनशीलता शासन-प्रशासन और पुलिस की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। करीब सवा साल बाद हुए प्रशासनिक और पुलिस फेरबदल में साफ दिखाई दे रहा है। जैसा कि रमन सरकार के तीन कार्यकालों में से दूसरे कार्यकाल के मध्य से अच्छे अधिकारियों को तैयार करने और उनके अच्छे कामों के आधार पर प्रोत्साहित करने का काम हुआ था। पिछली सरकार ने जोगी और रमन सरकार के उलट व्यवस्थाओं को निम्नतम स्तर से भी नीचे ले जाने का काम किया था ,जिसके वजह से या तो अच्छे अधिकारी लूप लाइन में थे या फिर डेपुटेशन पर। कुछ अच्छे अधिकारी पिछली सरकार में पदों पर तो जरुर थे लेकिन हालातों के सामने मजबूर रहे । हाल में साय सरकार ने जो पोस्टिंग्स की हैं उनमें से अधिकांश बेहतर लोगों को सामने लाने और आगे बढ़ाने का काम हुआ है। नये अधिकारी चाहे वो पुलिस के हों या फिर प्रशासन के , अपने जिलों में नई शुरुआत नवाचारों से कर रहे हैं। वहीं प्रमोटी अधिकारी जो कुशल प्रशासक या पुलिस अधिकारी हैं साथ ही अपने संयत व्यवहार के लिए जाने जाते हैं उन्हें बड़े जिले देकर सरकार ने नई शुरुआत की है।
पिछली सरकार के मुखिया ने रमन सरकार के नई राजधानी बनाने के निर्णय की लगातार आलोचना की थी । एनआरडीए द्वारा विकास के लिए ऋण लेने को गलत बताया था। बावजूद इसके जब तत्कालीन सत्ताधारी दल को अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन कराना था तो नया रायपुर को ही शोकेस किया गया । पिछली सरकार ने नया रायपुर को उपेक्षित करने का हर संभव प्रयास किया लेकिन खुद की सुविधा के लिए 250 करोड़ रुपये का सीएम हाउस और मंत्रियों के लिए करोड़ों रुपये के आलीशान बंगले बनाने में कोई गुरेज नहीं किया। जो पार्टी केन्द्र सरकार पर नई संसद बनाने को फिजूलखर्ची की तोहमत लगाती थी उसके तत्कालीन मुखिया ने नई संसद की लागत का एक चौथाई से ज्यादा खर्च अपने शासकीय आवास बनाने पर किया था। वहीं रमन सरकार के समय बनाये गए नया रायपुर के चौक-चौराहों का नामकरण और नई राजधानी का नाम बदलने में देर नहीं लगायी। भाजपा की नई सरकार बनने के बाद नया रायपुर में कामों ने फिर से गति पकड़ी है। साथ ही हजारों करोड़ रुपये के ऋण की अदायगी भी कर दी है। नई औद्योगिक नीति के निवेशों को नया रायपुर से जोड़कर बसाहट के साथ ही सभी सुविधाओं से लैस देश का अत्याधुनिक शहर बनाने का काम भी तेजी से शुरु हो गया है।
राज्य के बड़े शहर गलत दिशा में चलने वाले दुपहिया वाहनों से परेशान है। राजधानी रायपुर की ज्यादातर सड़कों जिसमें एक्सप्रेस वे भी शामिल है, इनमें विपरीत दिशा से आने वाले दुपहिया औऱ चार पहिया वाहन सुगम यातायात में बाधक हैं। इसी तरह जिन चौक-चौराहों पर सिग्नल लगे हैं वहां पर लेफ्ट टर्न खाली कभी खाली नहीं मिलता है। ई-रिक्शा और थ्री व्हीलर्स बेलगाम हो चुके हैं कहीं भी रुककर बीच सड़क में रुककर सवारी चढ़ाने-उतारने लगते हैं ,लेकिन कहीं भी पुलिस इन पर कार्रवाई करती नहीं दिखती है । इसी तरह पुलिस लाइन में जो प्राईवेट वाहन अटैच हैं वे भी पूरे शहर में लगातार सायरन बजाकर ट्रैफिक को अराजक स्थिति में पहुंचाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। मंत्रियों के काफिले के वाहनों में बैठे पुलिस कर्मी डंडे से लोगों को किनारे करते रहते हैं जैसे पता नहीं मंत्री जी कौन सा महान काम करने जा रहे हैं। जबकि रमन सरकार के एक मंत्री और भूपेश सरकार के एक मंत्री बिना काफिले के और बिना शोरगुल के चलते थे । सिग्नल पर अनिवार्य रुप से रुकते थे। दोनों सरकारों के दोनों मंत्रियों को कभी भी रेड लाईट में सिग्नल क्रॉस करते नहीं देखा गया , जबकि वर्तमान सरकार के कुछ मंत्री नया रायपुर जाने के लिए एक्सप्रेस वे को खाली करवाकर ट्रेफिक रुकवाकर ही जाते हैं। सरकार को ट्रैफिक पर और मंत्रियों के काफिलों पर नियंत्रण करने की जरुरत है।