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From the pen of senior journalist Dr. Shireesh Chandra Mishra... 50th edition of 'Show Must Go On' - Single Window or Multi Window
वैसे तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और उद्योग विभाग राज्य में निवेश लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। नई औद्योगिक नीति बनायी गयी है छह साल के लिए। लगातार रोड शो और इन्वेस्टर समिट हो रहे हैं ताकि अधिक से अधिक उद्योग लगें, निवेश आए और लोगों को रोजगार मिले। लेकिन मुख्यमंत्री और उद्योग विभाग की मंशा और प्रयासों को भाजपा के विधायक और नेता पलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। रायपुर के नये औद्योगिक क्षेत्र में एक बड़े उद्योग समूह ने जब एक सिक यूनिट को खरीद कर वहां नया प्लांट लगाना चाहा तो एक वर्ग विशेष के भाजपा विधायक के समर्थक वर्ग विशेष के सरपंच ने पर्यावरण के लिए होने वाली सुनवाई को क्लीयर कराने के लिए दो खोखे की डिमांड कर दी। उसी सरपंच ने बाद में पांच पंचों के 15 लाख रुपये के हिसाब से 75 लाख रुपये औऱ खुद के लिए 25 लाख रुपयों की मांग की। यानी कुल 1 खोखे को अपना फाइनल रेट बता दिया। प्रदेश में औद्योगिक समूहों की होने वाली विभिन्न जनसुनवाईयां नेता, पत्रकारों औऱ छुटभैये लोगों के लिए वसूली का जरिया बन चुकी हैं। ये कोई आज की बात नहीं है। इस परम्परा को करीब दो दशक हो चुके हैं। राज्य भर में भाजपा-कांग्रेस और दीगर संगठनों के कई पदाधिकारी मंहगी कारों पर चल रहे हैं जबकि ना तो उनका कोई व्यापार है ना ही व्यवसाय। ऐसे लोगों की कमाई का जरिया विशुद्ध रुप से उद्योग, निर्माण कार्य और शासकीय सेवक हैं। सरकार को प्रदेश को सच्चे अर्थों में इंडस्ट्री फ्रेंडली बनाना है तो ऐसे ब्लैकमेलर्स पर लगाम लगानी पड़ेगी। नहीं तो निवेशक राज्य में आने से कतरायेंगें। चाहे कितना भी सिंगल विंडो बना लिया जाए जब तक ऐसे तत्वों पर लगाम नहीं लगेगी, तब तक राज्य का विकास नहीं हो सकेगा।
मीडिया वाले हल्ला मचाते रहे कि कैबिनेट की बैठक वर्तमान मुख्य सचिव की औपचारिक बिदाई और नये मुख्य सचिव के वेलकम के लिए बुलायी गयी है। सुबह से लगातार मीडिया में यही चर्चाएं चल रहीं थीं कि फलां सीएस बनेगा, फलां नहीं बनेगा। लेकिन दोपहर ढलते ही कैबिनेट की बैठक के बीच एक फोन से सारा खेल बदल गया। वर्तमान सीएस को तीन माह का एक्सटेंशन मिला और दावेदार देखते रह गए। जानकार लोगों का कहना है कि सरकार को भी नहीं मालूम था कि ऐसा होने जा रहा है। आनन-फानन में प्रस्ताव मंगवाकर केन्द्र ने उस पर मुहर लगा दी। दरअसल जो कहानी सुनने में आ रही है उसके अनुसार सीएस के पांच दावेदारों में दो महिलाओं सहित चार अधिकारी एसीएस के पद पर राज्य में ही कार्यरत हैं। जबकि एक अधिकारी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। सरकार ने दोनों महिला अधिकारियों के नामों पर विचार नहीं किया और ये मानते हुए दिल्ली में पदस्थ अधिकारी के नाम पर भी विचार नहीं किया कि वह छत्तीसगढ़ आने में इच्छुक नहीं है। पांचों दावेदारों में चार को छोड़कर एक अधिकारी का ही रिकार्ड थोड़ा सा खराब था। ऐसे सरकार ने सीएस के लिए केन्द्र को सिर्फ दो ही नाम भेजे थे। केन्द्र को राज्य का प्रस्ताव पसंद नहीं आया। राज्य के रवैये को देखते हुए केन्द्र ने वर्तमान सीएस को ही आगामी तीन माह के लिए एक्सटेंशन दे दिया। इस तरह से राज्य में पहली बार ऐसा हुआ कि पिछली दूसरी पार्टी की सरकार द्वारा नियुक्त सीएस और डीजीपी दोनों को ही एक्सटेंशन मिला। जिसे अच्छी परम्परा नहीं माना जा सकता है। ये बात दीगर है कि दोनों ही अधिकारी निर्विवाद रहे हैं लेकिन अपने कार्यों की कोई छाप भी नहीं छोड़ सके हैं।
राज्य में इन दिनों पूरी तरह से एक्सटेंशन और प्रभारियों का दौर चल रहा है। राज्य के डीजीपी को एक्सटेंशन मिला फिर सीएस को एक्सटेंशन मिला। वर्तमान में पुलिस के मुखिया प्रभारी डीजीपी हैं तो सीएस के रिटायरमेन्ट के बाद वो 90 दिनों के एक्सटेंशन पर हैं। जब सीएस चार साल 8 माह में कुछ खास नहीं कर पाए तो आगामी 90 दिनों में क्या विशेष कर लेंगें। चाहे पुरानी सरकार द्वारा बनाये गये डीजीपी हों या सीएस , दोनों के ही कार्यकाल में आईपीएस और आईएएस अधिकारियों पर जितने आरोप लगे और जितने लोग जेल गए वैसा कभी इतिहास में नहीं हुआ लेकिन सरकार ने ना जाने किस पैरामीटर पर दोनों को पदों पर बनाए रखने में दरियादिली दिखाई और बाद में एक्सटेंशन भी दिया। खैर वर्तमान में पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार संभागायुक्त के पास है इसी तरह सूचना आयोग सिर्फ एक सूचना आयुक्त के भरोसे चल रहा है। पिछले दो सालों से मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति नहीं हो पायी है। कई आयोगों में अब तक कांग्रेस के नियुक्त अध्यक्ष ही काम कर रहे हैं जबकि दिसम्बर में भाजपा सरकार को दो साल पूरे हो जायेंगें। जिन मामलों में कोर्ट से स्टे हैं, उन मामलों में सरकार के विधि विभाग की कोई रुचि नहीं है कि स्टे वेकेट कराया जाए। यदि गिनती करना शुरु किया जाए तो लिस्ट बहुत लम्बी हो जायेगी उन पदों के लिए जिन पर नई सरकार के आते ही नये लोगों की नियुक्ति की जानी चाहिए थी।
कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि राज्य के कई प्रभावशाली पुलिस और प्रशासन के अधिकारी सिर्फ एक व्यक्ति को रायपुर में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। सत्ताधारी दल में भी अधिकारी समर्थक औऱ विरोधियों के दो ध्रुव बन चुके हैं। एक वो लोग हैं जिन्होंने चुनाव के समय ऐसे अधिकारियों की सूची बनायी जो गड़बड़ कर रहे हैं। उसमें भी एक अधिकारी जो लेडी सुपर सीएम का सबसे करीबी था। उस पर ज्यादा ध्यान दिया और चुनाव के बाद उसे बस्तर के सुदूर अंचल में भेजा गया। लेकिन भाजपा के ही लोगों का एक खेमा ऐसा है जो उस अधिकारी के एहसानों के बदले उसे रायपुर या राजधानी के नजदीक लाने में एड़ी-चोटी एक कर रहा है। इसी तरह पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों की एक टोली भी है जो उसे रायपुर लाने के लिए कमर कस चुकी है। इसमें आई-फोन के बांटने की भी एक थ्योरी मार्केट में है। पता चला है 15 एडिशनल एसपी के ट्रांसफर की एक लिस्ट बनायी गयी थी जिसमें चहेते अधिकारी का नाम डालकर बड़े कार्यालय से विभागीय मंत्री तक पहुंचायी गयी थी। लेकिन विभागीय मंत्री की बुद्धिमत्ता से अधिकारियों की स्कीम फिलहाल फेल हो गयी है।
वीआईपी रोड पर एक सबसे बड़े मयखाने में एक प्रभावशाली पुलिस अधिकारी समेत कई अधिकारियों का पैसा लगने की बात सामने आ रही है। इस समय इस मयखाने में जाना प्रदेश के बड़े लोगों के लिए स्टेटस सिंबल बन चुका है। कहने को तो ये किसी बिजनेसमैन का है ।लेकिन बताया जाता है कि पिछली सरकार के सबसे प्रभावशाली पुलिस अधिकारी का पैसा इसमें लगा है। महादेवघाट की घटना के बाद जब बार-मालिकों को महिलाओं औऱ लड़कियों को फ्री ड्रिंक्स ना देने की चेतावनी दी गयी थी। उसके बाद भी कई बार मालिक फ्री ड्रिंक्स दे रहे हैं। ऐसे में पुलिस की प्रतिबंधात्मक कार्रवाई में जब प्रशासन का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला तब ये बात सामने आयी कि इसमें प्रभावशाली लोगों का मेजर स्टेक है। इसलिए पुलिस को अपने हाथ खींचने पड़ रहे हैं।
हाल ही राजधानी के कई थानेदारों को इधर से उधर किया गया। एक थानेदार को लाइन से थाने में वापस लाया गया है। कई थानेदारों को ज्यादा मलाईदार थाने दिए गए हैं। कई अपने हिसाब से जिले से बाहर हो गए हैं। थानेदारों के प्रभार में बदलाव कोई नई बात नहीं है। पिछली सरकार में किसी भी पद पर जाने के लिए रिचार्ज करवाना पड़ता था। जो जितनी ज्यादा राशि का रिचार्ज करता था उसे मनमाफिक पोस्टिंग मिल जाती थी । कहते हैं कि अच्छी परम्पराएं बनाने में समय लगता है जबकि पुरानी गलत परम्पराएं मुश्किल से छूटती हैं। यही हाल पुलिस का भी है। अच्छी परम्पराएं तो शुरु नहीं की जा रही हैं लेकिन पुरानी सरकार की खराब परम्पराओं को और खराब किया जा रहा है। चर्चा है कि पोस्टिंग में भी लग रहा है और रुकने का भी देना पड़ रहा है।
राज्य की जांच एजेन्सी ने शराब घोटाले में शामिल कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति मांगी थी। राज्य सरकार ने अनुमति दे दी। लेकिन फिर भी चालान पेश करने में देरी की गयी। बताया जाता है कि घोटाले के संदिग्ध एक अधिकारी का प्रमोशन होने वाला था, लेकिन यदि चालान पेश हो जाता तो उसका प्रमोशन लटक जाता ,इसलिए प्रमोशन के चक्कर में चालान को लटका दिया। इसके उलट भारतमाला के एक आरोपी के खिलाफ जांच एजेन्सी ने चालान पेश कर दिया लेकिन इस बाद भी विभाग ने उसका प्रमोशन कर दिया। इसी तरह सीजीएमएससी में तीन-तीन आईएएस अधिकारियों के संदिग्ध होने के बाद भी एक भी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हई। क्या ऐसा संभव है कि इतना बड़ा घोटाला बिना एमडी की सहमति से हो जाए। यही हाल भारतमाला का है। जिसमें एक आईएएस अधिकारी ने पहले एक ट्रस्ट की जमीन अपने नाम करवायी ,मुआवजा लिया और जब फंसने लगे तो सब लौटा दिया लेकिन उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
शराब घोटाले में ईओडब्ल्यू ने पूर्व आबकारी मंत्री के खिलाफ जो चार्जशीट पेश की है। उसमें बकायदा पूरा पिरामिड बनाकर बताया गया है कि घोटाले के पिरामिड में कौन किस भूमिका में किस वर्टिकल के नीचे काम कर रहा था। कैसे पैसा किसको कहां मिलता था। घोटाले के किरदारों की मोडस ओपरेण्डी क्या थी। पिछली सरकार के समय जब केन्द्रीय जांच एजेन्सी जब-जब शराब घोटाले के आरोपियों पर कार्रवाई करती थी औऱ कोर्ट में पेश करती थी तो उसमें घोटाले का सरगना यानी पिरामिड के शीर्ष पर पॉलिटिकल बॉस को बताया जाता था जिस तक पैसा पहुंचता था जिसका पॉवर जेल में बंद पूर्व आईएएस के पास था। बाद में उस पॉलिटिकल बॉस की जगह एक राजनेता का नाम लिखा गया फिर एक पूर्व नौकरशाह को किंगपिन बताया गया। लेकिन राज्य की एजेन्सी ने पिरामिड के शीर्ष पर जेल में बंद अधिकारी का नाम लिखा है। अब यह खोज का विषय है कि पहले शीर्ष पर जिसे पॉलिटिकल बॉस बताया जाता था और जिसे किंगपिन बताया गया था वो लोग कहां गए । पिरामिड के सबसे नीचे नकली होलोग्राम सप्लाई लिखा है जो भाजपा सरकार बनने के बाद भी जारी था ,जिसका खुलासा अक्टूबर 2024 में हुआ । हाल ही में फिर से नकली होलोग्राम वाली शराब पकड़ी गयी थी। इस मामले में एक अधिकारी पर कार्रवाई भी हुई। लेकिन अभी भी विभाग में गड़बड़ियां लगातार जारी हैं क्योंकि जिन अधिकारियों पर आरोप हैं वो सब अभी भी बदस्तूर काम कर रहे हैं।