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Misuse of criminal justice system by alleging rape is condemnable: Supreme Court
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन बढ़ते मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की, जिनमें नाकाम या टूटे हुए रिश्तों को दुष्कर्म के आरोपों का स्वरूप दे दिया जाता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में आपराधिक न्याय प्रणाली का दुरुपयोग न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने दुष्कर्म के कथित मामले में दर्ज एक एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि दुष्कर्म सबसे गंभीर किस्म का अपराध है, इसलिए इस आरोप का प्रयोग केवल उन्हीं मामलों में होना चाहिए, जहाँ वास्तव में यौन हिंसा, जबरदस्ती या सहमति का अभाव मौजूद हो।
सहमतिपूर्ण संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता
पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी सहमतिपूर्ण संबंध को सिर्फ इसलिए दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता कि वह रिश्ता बाद में विवाह में परिवर्तित नहीं हो पाया। कोर्ट ने कहा कि हर असफल संबंध को दुष्कर्म के आरोपों में बदल देना न केवल अपराध की गंभीरता को कम करता है, बल्कि आरोपी पर कभी न मिटने वाला कलंक भी लगा देता है और उसके साथ अन्याय होता है।
अदालत ने आगे कहा
अदालत ने आगे कहा कि कानून को उन वास्तविक मामलों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए, जिनमें भरोसा टूटता है और किसी की गरिमा को ठेस पहुंचती है। लेकिन इस संवेदनशीलता का इस्तेमाल केवल विश्वसनीय साक्ष्यों और ठोस तथ्यों के आधार पर होना चाहिए, न कि आधारहीन या दुर्भावनापूर्ण आरोपों पर।
सुप्रीम कोर्ट यह फैसला उस व्यक्ति की अपील पर सुनाते हुए दिया, जिसने औरंगाबाद स्थित बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर से मार्च 2025 में दिए गए आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने अगस्त 2024 में छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए एफआईआर रद्द कर दी और कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को तथ्यों का सूक्ष्म परीक्षण करते हुए आरोपितों को अनावश्यक आपराधिक मुकदमों से बचाना चाहिए।