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Roots of democracy strengthening in Naxalgarh, polling center built next to Naxalite Hidma's house
रायपुर: कोंटा जनपद में रविवार को पंचायत चुनाव के तीसरे और अंतिम चरण का मतदान शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। आजादी के 77 साल बाद कोंटा जनपद की 5 पंचायतों में पहली बार मतदान हुआ, जहां ग्रामीणों ने भयमुक्त होकर अपने मताधिकार का उपयोग किया।
इस चुनाव में एक बेहद खूबसूरत और उत्साहवर्धक तस्वीर देखने को मिली, खासकर नक्सलियों के गढ़ कहे जाने वाले पूवर्ती गांव में। जहां ग्रामीणों ने पहली बार नक्सलियों की दहशत को पार करते हुए लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा लिया और साथ ही अपने गांव में बुनियादी सुविधाओं जैसे पानी, सड़क और शिक्षा की मांग की। यह बदलाव उन नक्सलियों के गांव में दिखाई दे रहा था, जो कभी हिड़मा और देवा जैसे खूंखार नक्सलियों का गढ़ थे। अब इन गांवों में लोकतंत्र और स्वतंत्रता का विश्वास जड़ पकड़ चुका है। पूवर्ती के आंगनबाड़ी केंद्र में बने पोलिंग बूथ पर मतदान के लिए ग्रामीणों की भीड़ सुबह से ही लगने लगी। यहां वार्ड क्रमांक 9 से 17 के लिए मतदान केंद्र स्थापित किया गया था।
इसके साथ ही, कोंटा जनपद के नक्सल प्रभावित क्षेत्र केरलापेंदा में भी पहली बार मतदान हुआ। यह इलाका उस वक्त चर्चा में आया था जब नक्सलियों ने राम मंदिर में पूजा बंद करवा दी थी और ताला जड़ दिया था। वर्षों बाद सीआरपीएफ कैंप की स्थापना और प्रशासनिक प्रयासों से मंदिर को खोला गया और अब यहां भी मतदान हुआ। करीब 20 साल बाद यह मंदिर फिर से खुला और ग्रामीणों ने वहां अपने वोट डाले।
हालांकि, इस चुनाव में सुकमा जिले के कोंटा जनपद में ग्रामीणों को भौगोलिक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। मतदान केंद्रों की दूरियों के कारण कई ग्रामीणों को 30 किमी तक का सफर तय करना पड़ा। कुछ लोग बाइक से तो कुछ ट्रैक्टर पर सवार होकर मतदान केंद्र पहुंचे। नक्सल प्रभावित इलाकों में बुलेट की जगह बैलेट भारी साबित हुआ, क्योंकि प्रशासन ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से 59 पोलिंग बूथों को चिंतागुफा, चिंतलनार और जगरगुंडा जैसे इलाकों में शिफ्ट किया था। इसके बावजूद, ग्रामीणों ने लोकतंत्र के इस पर्व में भाग लिया और अपने वोट का इस्तेमाल किया।