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Single-use plastic ban implemented in Chhattisgarh after two and a half years, indifference persists in the market
रायपुर, 18 दिसंबर: छत्तीसगढ़ शासन, आवास और पर्यावरण विभाग ने जून 2023 में “छत्तीसगढ़ प्लास्टिक एवं अन्य नॉन-बायोडिग्रेडेबल मटेरियल {रेगुलेशन ऑफ यूज़ एंड डिस्पोजल} नियम, 2023” लागू किए थे। इन नियमों के तहत राज्य में सभी प्रकार के सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया। लेकिन छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने इन प्रतिबंधों को ढाई साल बाद, 3 दिसंबर 2025 को ही नगरी प्रशासन और विकास विभाग की जानकारी में लाया। इस दौरान प्रतिबंधित सामग्री व्यापक रूप से बाजार में बिकती और उपयोग होती रही।
प्रतिबंधित सामग्री
नियमों के तहत कई प्रकार के प्लास्टिक और नॉन-बायोडिग्रेडेबल उत्पादों पर रोक लगाई गई है। इनमें प्लास्टिक और नॉन-वूवन पॉलिप्रोपिलीन बैग, डिस्पोजेबल कप, प्लेट, कटोरा, ग्लास, स्ट्रॉ, कांटे और चम्मच, खाद और अनाज की प्लास्टिक पैकेजिंग, प्लास्टिक एवं थर्मोकोल से बने सजावटी सामान, फ्लैग, गुटखा और तंबाकू पैकेजिंग, विज्ञापन सामग्री जैसे फ्लेक्स, बैनर, होर्डिंग और फोम बोर्ड, 200 मिलीलीटर से कम क्षमता वाली पेयजल बोतलें और गैर-पुनर्चक्रणीय मल्टीलेयर प्लास्टिक शामिल हैं।
पूर्व प्रयास और जागरूकता का अभाव
रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने बताया कि वर्ष 2017 में उनकी जनहित याचिका के बाद सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर व्यापक प्रतिबंध लगाया गया था। इसके बावजूद पर्यावरण संरक्षण मंडल इस पर सख्ती से ध्यान नहीं दे सका। नॉन-वूवन कैरी बैग पर जनवरी 2020 में पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन 2022 में विशेष लॉबी के दबाव में कुछ प्रकार के बैग बनाने और बेचने की छूट दे दी गई। मई 2023 की अधिसूचना में इसे पुनः पूर्णत: प्रतिबंधित किया गया, लेकिन पिछले ढाई वर्षों में इसका उपयोग लगातार हो रहा था। विज्ञापन सामग्री और अन्य प्रतिबंधित प्लास्टिक की जांच भी उचित रूप से नहीं हुई।
सवाल और चिंता
सिंघवी ने सवाल उठाया है कि जब निर्माण, उपयोग, परिवहन, वितरण, थोक और खुदरा बिक्री, भंडारण और आयात पर पूर्ण प्रतिबंध है, तो यह प्लास्टिक छत्तीसगढ़ में कहां से आ रही है। उन्होंने अधिकारियों पर आरोप लगाया कि जागरूकता फैलाने और विकल्प खोजने के बहाने प्रतिबंध का पालन नहीं करवाया गया। उन्होंने चेताया कि अधिसूचना के प्रचार-प्रसार और कार्यवाही में विशेष लाबी दबाव बना सकती है, लेकिन अधिकारियों और नेताओं को जनहित और आने वाली पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखकर कदम उठाने चाहिए।
प्लास्टिक प्रदूषण का गंभीर खतरा
भारत प्लास्टिक उपभोग में विश्व में तीसरे और प्लास्टिक प्रदूषण में पहले स्थान पर है। प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक पृथ्वी की सबसे गहरी जगहों से लेकर हिमालय तक पहुंच चुका है। यह न केवल पर्यावरणीय संकट है, बल्कि गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट भी है। जलभराव, मच्छरों का प्रजनन, जलवायु परिवर्तन और माइक्रोप्लास्टिक का मिट्टी, पानी और भोजन श्रृंखला में प्रवेश सभी समस्या को बढ़ा रहे हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर के फेफड़े, रक्त, मस्तिष्क, वृषण, गर्भ में भ्रूण और स्तन दूध तक में पहुँच चुका है। प्लास्टिक से जुड़े रसायन हार्मोन असंतुलन, प्रजनन समस्याएँ और कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं और कोशिकीय स्तर पर डीएनए को क्षति पहुँचा सकते हैं।
आने वाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी
सिंघवी ने चेताया कि प्लास्टिक एक धीमा ज़हर है। यदि इसके प्रतिबंधों का सख्ती से पालन नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस लापरवाही को कभी माफ़ नहीं करेंगी। उन्होंने अधिकारियों और नीति निर्माताओं से आग्रह किया कि सार्वजनिक हित और पर्यावरण सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए तत्काल कार्रवाई की जाए।