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Supreme Court is becoming a super parliament cannot give orders to the President Vice President said 1 month has passed no FIR even against the cash judge
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों द्वारा पारी किए गए अधिनियमों पर हस्ताक्षर को लेकर राज्यपालों और यहाँ तक कि देश के राष्ट्रपति तक के लिए भी समयसीमा तय कर दी है। वहीं वक़्फ़ संशोधन क़ानून पर भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हर मामले की न्यायिक समीक्षा वाले खतरनाक ट्रेंड के बीच उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट को अपने अधिकारों की याद दिलाई है। उन्होंने न्यायपालिका की कमज़ोर होती साख को लेकर भी बात की है। बता दें कि जगदीप धनखड़ खुद लंबे समय तक अधिवक्ता रहे हैं और क़ानून के जानकार हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास से बड़े पैमाने पर कैश की बरामदगी से जुड़े मामले में एफआईआर दर्ज न किए जाने पर गुरुवार को सवाल उठाया और भड़कते हुए कहा कि क्या कानून से परे एक श्रेणी को अभियोजन से छूट हासिल है। धनखड़ ने कहा, ''अगर यह घटना उसके (आम आदमी के) घर पर हुई होती, तो इसकी (प्राथमिकी दर्ज किए जाने की) गति इलेक्ट्रॉनिक रॉकेट सरीखी होती, लेकिन उक्त मामले में तो यह बैलगाड़ी जैसी भी नहीं है।'' धनखड़ ने कहा कि सात दिनों तक किसी को भी इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या देरी की वजह समझ में आती है? क्या यह माफी योग्य है?
उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्र जांच या पूछताछ के खिलाफ किसी तरह का सुरक्षा कवच नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी संस्था या व्यक्ति को पतन की ओर धकेलने का सबसे पुख्ता तरीका उसे जांच से सुरक्षा की पूर्ण गारंटी प्रदान करना है। सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च को होली की रात दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर लगी भीषण आग को बुझाने के दौरान वहां कथित तौर पर बड़े पैमाने पर नोटों की अधजली गड्डियां बरामद होने के मामले की आंतरिक जांच के आदेश दिए थे। इसके अलावा, न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से वापस इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया था। धनखड़ ने मामले की आंतरिक जांच के लिए गठित तीन न्यायाधीशों की समिति की कानूनी वैधता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि तीन न्यायाधीशों की समिति मामले की जांच कर रही है, लेकिन जांच कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है, न्यायपालिका का नहीं। उपराष्ट्रपति ने दावा किया कि समिति का गठन संविधान या कानून के किसी प्रावधान के तहत नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा, ''और समिति क्या कर सकती है? समिति अधिक से अधिक सिफारिश कर सकती है। सिफारिश किससे? और किसलिए?'' धनखड़ ने कहा, ''न्यायाधीशों के लिए हमारे पास जिस तरह की व्यवस्था है, उसके तहत अंततः एकमात्र कार्रवाई (न्यायाधीश को हटाना) संसद द्वारा की जा सकती है।'' उन्होंने कहा कि समिति की रिपोर्ट का स्वाभाविक रूप से कोई कानूनी आधार नहीं होगा। यहां राज्यसभा प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ''एक महीने से ज्यादा समय बीत चुका है। भले ही इस मामले के कारण शर्मिंदगी या असहजता का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अब समय आ गया है कि इससे पर्दा उठाया जाए। सारी सच्चाई सार्वजनिक मंच पर आने दें, ताकि व्यवस्था को साफ किया जा सके।''
उन्होंने कहा कि सात दिन तक किसी को इस घटनाक्रम के बारे में पता नहीं था। धनखड़ ने कहा, ''हमें खुद से कुछ सवाल पूछने होंगे। क्या देरी के लिए कोई सफाई दी जा सकती है? क्या यह माफी योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? क्या किसी आम आदमी से जुड़े मामले में चीजें अलग होतीं?'' उपराष्ट्रपति ने कहा कि शीर्ष अदालत की ओर से मामले की पुष्टि किए जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि इसकी जांच किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ''अब राष्ट्र बेसब्री से इंतजार कर रहा है। राष्ट्र बेचैन है, क्योंकि हमारी एक संस्था, जिसे लोग हमेशा से सर्वोच्च सम्मान और आदर की दृष्टि से देखते आए हैं, वह अब कठघरे में खड़ी है।''
बता दें कि जज यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज किए जाने की PIL को भी दिल्ली हाईकोर्ट ने असामयिक बताकर ख़ारिज कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी कह चुके हैं कि इस मामले में CJI की अनुमति के बाद ही FIR दर्ज की जा सकती है।
मुख्य न्यायधीश ने मामले की जाँच के लिए एक समिति गठित की है। जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में आग लगने के बाद दमकल विभाग की गाड़ियाँ पहुँची थीं, आग बुझाने के दौरान ही कैश मिला था। जगदीप धनखड़ ने इस घटना और राष्ट्रपति के लिए डेडलाइन तय करने के फ़ैसले का जिक्र करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ‘सुपर संसद’ बन जाएगा और विधायी जिम्मेदारियाँ भी निभाने लगेगा, इसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी। उन्होंने कहा कि क़ानून बनाना संसद का अधिकार है और सरकार जनता के प्रति जिम्मेदार है चुनावों में।
जगदीप धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 का जिक्र करते हुए कहा कि इसके तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गए हैं। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में पूर्ण फ़ैसला देने का अधिकार है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती है। बता दें कि वक़्फ़ क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई चल रही है और इसे लेकर भी सर्वोच्च न्यायालय आलोचना का शिकार बन रहा है।