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Who is Jain sage Vidyasagar Ji Maharaj the entire family took sannyasa PM Modi is also his devotee Know about Muni Shri here
रायपुर। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में जैन मुनि विद्यासागर महाराज जी ने समाधि ली। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के चन्द्रगिरि तीर्थ में शनिवार (17 फरवरी) देर रात 2:35 बजे अपना शरीर त्याग दिया था। समाधी लेने से पहले महाराज जी ने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन का उपवास और अखंड मौन धारण कर लिया था। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी महाराज जी के परम भक्त हैं।

कौन है जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज
आचार्य विद्यासागर महाराज एक अत्यंत श्रद्धेय दिगंबर जैन आचार्य (दिगंबर जैन भिक्षु) हैं। उनका जन्म 10 अक्टूबर, 1946 को कर्नाटक के सदलगा में हुआ था। छोटी उम्र से ही उन्होंने आध्यात्मिकता को अपना लिया और 21 साल की उम्र में राजस्थान के अजमेर में दीक्षा लेने के लिए सांसारिक जीवन त्याग दिया था। विद्यासागर का बचपन का नाम विद्याधर था। इनके पिता का नाम मल्लप्पाजी अष्टगे (मुनिश्री मल्लिसागरजी) और माता का नाम आर्यिकाश्री समयमतिजी था। आचार्य विद्यासागर के चार भाई और दो बहने भी थीं।
मात्र 21 साल की उम्र में ही उन्होंने आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली थी। आचार्य ज्ञानसागर ने ही उन्हें मुनि विद्यासागर की उपाधि दी थीं। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवर ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर का दर्जा दिया था।
1 जून 1973 में आचार्य ज्ञानसागर की समाधि के बाद श्री विद्यासागर जी महाराज की पदवी के साथ जैन समुदाय के संत बने।
पीएम मोदी भी इनके भक्त
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विद्यासागर जी महाराज के भक्त हैं। हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डोंगरगढ़ में आचार्य श्री के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया था।

आज आचार्य विद्यासागर जी महाराज की समाधि के बाद पीएम मोदी ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के अनगिनत भक्त हैं। आने वाली पीढ़ियां उन्हें समाज में उनके अमूल्य योगदान के लिए याद रखेंगी। आध्यात्मिक जागृति के उनके प्रयासों, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अन्य कार्यों के लिए उन्हें याद रखा जाएगा।
मुनि श्री के पूरे परिवार ने लिया संन्यास
मुनि विद्यासागर जी महाराज के पूरे परिवार ने भी संन्यास लिया हुआ है। बड़े भाई अभी मुनि उत्कृष्ट सागर भी संन्यास ले चुके हैं। इसके अलावा अपने दो छोटे भाइयों अनंतनाथ और शांतिनाथ को आचार्य जी ने ही दीक्षा दी थी। जो अब मुनि योगसागर और मुनि समयसागर के नाम से जाने जाते हैं। इतना ही नहीं मुनि श्री के माता-पिता ने भी संन्यास ले चुके हैं। आचार्य समयसागर महाराज ही अब आचार्य विद्यासागर जी के उत्तराधिकारी होंगे।

आचार्य की रचनाएं
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत, सहित कई आधुनिक भाषाओं हिंदी, मराठी और कन्नड़ में विशेष ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिंदी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएं की है। उनके कार्यों में निरंजना शतक, भावना शतक, परिषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल है। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।

