45 FIRs against husband and his family suicide threat elderly in laws thrown out of the house odisha High court also accepted Divorce is justified
भुवनेश्वर। ओडिशा हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति को दी गई तलाक की मंजूरी को बरकरार रखा है, जिसकी पत्नी ने उसके और उसके परिवार के खिलाफ 45 से अधिक एफआईआर और कई अन्य कानूनी शिकायतें दर्ज कराई थीं। कोर्ट ने माना कि पत्नी का यह व्यवहार “मानसिक क्रूरता” की श्रेणी में आता है और इस कारण वैवाहिक संबंध पूरी तरह से टूट चुके हैं।
न्यायमूर्ति चित्तारंजन दाश और न्यायमूर्ति बी.पी. राउत्रे की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। इस अपील के माध्यम से वह फैमिली कोर्ट, कटक द्वारा 2023 में दिए गए तलाक के फैसले को चुनौती दे रही थी, जिसमें पति को तलाक प्रदान किया गया था।
यह दंपती 11 मई 2003 को विवाह बंधन में बंधा था और शुरुआत में कटक में साथ रहते थे। बाद में वे भुवनेश्वर, बेंगलुरु, अमेरिका और जापान भी गए। हालांकि, जल्द ही दोनों के बीच का सम्बन्ध जल ही खराब हो गया और विवाह बिगड़ गया। जिसके बाद लंबे समय तक विवाद और मुकदमेबाजी का सिलसिला चला।
जिसके बाद पति ने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका दायर की, जबकि पत्नी ने वैवाहिक सहवास के लिए 2009 में याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया और पत्नी को 63 लाख रुपये की स्थायी गुज़ारा भत्ता भी दिया।
-उसके और उसके परिवार के खिलाफ 45 से अधिक एफआईआर और अन्य मामले विभिन्न स्थानों पर दर्ज कराए;
-उसे कई बार शारीरिक रूप से पीटा, जिसमें डलास (अमेरिका) में हुई मारपीट से उसे सिर पर चोट भी लगी;
-जगतसिंहपुर स्थित उसके बुज़ुर्ग माता-पिता को घर से जबरन बाहर निकलवा दिया;
-कई बार आत्महत्या की धमकी देकर मानसिक दबाव बनाया;
-भारत और थाईलैंड में उसके कार्यस्थलों पर झगड़े किए, जिसके चलते उसे 2024 में TCS की नौकरी छोड़नी पड़ी।
-इन आरोपों का समर्थन मेडिकल रिपोर्ट, पुलिस रिकॉर्ड और पड़ोसियों व रिश्तेदारों के हलफनामों द्वारा किया गया।
वहीं दूसरी तरफ पत्नी के वकील श्री ए.पी. बोस ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल ने जो भी केस दर्ज किए, वे उनके कानूनी अधिकारों का प्रयोग थे और न्याय पाने का प्रयास। उन्होंने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रही मध्यस्थता की प्रक्रिया को नजरअंदाज़ कर जल्दी फैसला सुना दिया।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के चर्चित निर्णय के. श्रीनिवास राव बनाम डी.ए. दीपा और समर घोष बनाम जया घोष का हवाला देते हुए कहा:
“झूठी और बार-बार की गई शिकायतें मानसिक क्रूरता के दायरे में आती हैं।”
“जब जीवनसाथी आत्महत्या या हिंसा की धमकियों का सहारा लेता है, तब वैवाहिक संबंध की नींव ही हिल जाती है।”
कोर्ट ने कहा कि पत्नी की “जानबूझकर की गई प्रताड़नात्मक कानूनी कार्रवाइयाँ,” शारीरिक हिंसा, भावनात्मक शोषण और आर्थिक नियंत्रण ने साथ रहने की संभावनाओं को पूरी तरह समाप्त कर दिया।
कोर्ट ने यह भी माना कि कानून के तहत केस दर्ज करना व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन शिकायतों की मात्रा, विषयवस्तु और प्रसंग यह दिखाते हैं कि उनका उद्देश्य मानसिक कष्ट देना था।
पत्नी की वैवाहिक सहवास की याचिका को कोर्ट ने एक रणनीतिक कदम माना, न कि सुलह की वास्तविक कोशिश;
पति का TCS से त्यागपत्र, जिसमें कार्यस्थल पर पत्नी के कारण उत्पन्न समस्याओं का ज़िक्र था, मानसिक क्रूरता के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया;
पत्नी के पिता द्वारा विवाहिता संपत्ति को अवैध रूप से किराए पर देना और पति को उसके माता-पिता से अलग करने का प्रयास, दबाव बनाने का प्रमाण माना गया।
पत्नी ने 63 लाख रुपये की गुज़ारा भत्ता को अपर्याप्त बताया, लेकिन कोर्ट ने इसे “उचित और न्यायसंगत” ठहराया। कोर्ट ने कहा कि यह राशि पति की आय, संपत्ति और पत्नी की योग्यता (विवाह के दौरान न्यू यॉर्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से M.Sc. की डिग्री) को देखते हुए उचित है।
“कानून किसी व्यक्ति को ऐसे विवाह में बने रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, जो पीड़ा और कष्ट का स्रोत बन चुका हो।”
कोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट का निर्णय कानूनी रूप से सही, तथ्यात्मक रूप से पुष्ट और क्रूरता के प्रबल साक्ष्यों से सिद्ध है।
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